आलेख
अत्याधुनिक_रावण
(व्यंग्य)
___✍️राजीव नयन पाण्डेय
क्या रावण ने इस बार मना कर दिया जलने से ?
जंगल में आग की तरह फैलती गयी थी यह खबर… जो भी सुने वो सुनने पर विश्वास करने से इंकार कर रहा था।
“जो रावण त्रेतायुग से बिना किसी संकोच के आज तक जलते आया हो, जिसे हम पीढियों से जलते देखते आऐ हो वो आज जलने से मना कर हा है अब तो ये वाकई घोर कलयुग हैं” रावण दहन प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष ने धारा प्रवाह मनकीबात ऐसे कही जैसे आजकल मन की बात कहने वाले कहते हैं भले कोई सुने या ना सुने। पर रावण जी मना क्यों कर रहे इस बार दहन होने से ? रावण दहन प्रचारिणी सभा के पंडितजी रावण के प्रति इस आशय से इज्जत पूर्वक आदर दिखाते हुए कारण जानने की जैसे पंचायत चुनाव के पहले मतदाता के सामने प्रत्याशियों का उनका शुभचिंतक दिखाने की होती हैं।
रावण को जलता हुऐ देखने के लिऐ मैदान में आम जनता की.भीड़ बढंती ही जा रही थी..भीड़ में सोशल डिस्टेंस के नियम का उतनी ही #ईमानदारी से पालन हो रहा था जितनी ईमानदारी से सड़क बनाने में सड़क का ठीकेदार यानि सब भगवान भरोसे।
रावण ने जलने से मना कर दिया क्योंकि उसे भी लाँकडाउन में मल्टीमीडिया फोन की आदत हो गयी हैं वह भी जान गया हैं गूगल बाबा के सहयोग से अपने सतयुग के अनजाने पाप को। रावण दहन प्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष ने कान से ईयर फोन हटाते हुऐ जोर से कहा, मानो उनकी तरह बाकी सभी को कम सुनाई देता हो।
समिति के सभी सदस्यों की चिंता बढ़ती जा रही थी कि अब तो कोई उपाय हो ताकि शंका का समाधान हो।
रावण दहन समिति के अध्यक्ष जी ने सभी सदस्यों के साथ मंत्रणा करते हुऐ रावण के पूतले के समक्ष से स्वीकार किया कि आज रावण के पूतले के साथ साध शेष सभी रावणअंशियों का भी दहन होगा यानि आधुनिक रावण के चेहरो अर्थात सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार, अराजकता सत्ताका दुरुपयोग, परिवारवाद, बिगडैल नौकरशाही, कमजोरोंपरअत्याचार, किसान वर्ग का शोषण का।
इतना सुनते ही रावण ने अपने दहन की सहमति यह सोच कर दी कि मेरे दस सिर के बराबर तो इन मनुष्यों के चेहरे हैं.और.सबसे बड़ा चेहरा तो #सोशल_मीडिया का है जिसपर भक्त भी हैं और चम्मचे भी हैं। आधुनिकता का लबादा ओढ़कर घूट घूट कर जीने से बेहतर हैं जल जाना…वाकई कलयुग हैं।
त्रेतायुग के रावण ने जलाने के लिए आधुनिक रावण रूपी नेताजी के हाथो प्रतिकात्मक रूप से स्वीकार किया था.. जिन्होंने कुछ घंटे पहले अपने पाप का पश्चाताप करने के लिऐ लंकादहन प्रचारिणी_सभा का आतिथ्य हर्षित हो कर स्वीकार किया था। वही आम जनता में रावण के धु धु जलने से अधिक चर्चा तो आधुनिक रावण की खुशूर-फुसूर शुरू थी।
___✍️@राजीव नयन पाण्डेय(देहरादून)