आलेख
लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में….
“नीरज कृष्ण“
जिनका दुःख लिखने की ख़ातिर / मिली न इतिहासों को स्याही, / क़ानूनों को नाखुश करके / मैंने उनकी भरी गवाही / चमचम चूनर-चोली पर तो / लाखों ही थे लिखने वाले, / मेरी मगर ढिठाई मैंने / फटी कमीज़ों के गुन गाये ……गोपालदास नीरज
‘नीरज’ का कवि जीवन विधिवत मई, 1942 से प्रारम्भ होता है। जब वह हाई स्कूल में ही पढ़ते थे तो उनका वहाँ पर किसी लड़की से प्रणय सम्बन्ध हो गया। दुर्भाग्यवश अचानक उनका बिछोह हो गया। अपनी प्रेयसी के बिछोह को वह सहन न कर सके और उनके कवि-मानस से यों ही सहसा ये पंक्तियाँ निकल पड़ीं- ‘कितना एकाकी मम जीवन, किसी पेड़ पर यदि कोई पक्षी का जोड़ा बैठा होता, तो न उसे भी आँखें भरकर मैं इस डर से देखा करता, कहीं नज़र लग जाय न इनको।‘ ……..और इस प्रकार वह प्रणयी युवक ‘गोपालदास सक्सेना’ कवि होकर ‘गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ हो गया।
काव्य मंचों के अपरिहार्य, नैसर्गिक प्रतिभा के धनी,प्रख्यात गीतकार, पद्मभूषण से सम्मानित, जीवन दर्शन के रचनाकार, साहित्य की लम्बी यात्रा के पथिक रहे, नीरज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के पुरावली गांव में 4 जनवरी,1925 को हुआ था। गरीब परिवार में जन्मे नीरज जी की जिंदगी का संघर्ष उनके गीतों में झलकता हैं। युग के महान कवि नीरज जी को राष्ट्रकवि दिनकर जी ‘हिंदी की वीणा’ कहते थे। मुनब्बर राना जी कहते हैं-हिंदी और उर्दू के बीच एक पल की तरह काम करने वाले नीरज जी से तहजीव और शराफत सीखी थी।
काव्य पाठ का अनूठे अंदाज में संचालन करने व श्रोताओं से रूहानी रिश्ता कायम करने वाले गीतों के इतिहास पुरुष नीरज जी के गीतों में समूचे युग की धड़कन को सुनना एक अजीव से अनुभूति कराता हैं। गद्य कविताओं के खिलाफ, परम्परागत शैली और गीत काव्य व्यंजना सौंदर्य से निकलकर आमजन की पीड़ा और जनचेतना की अभिव्यक्ति से भरपूर उन्होंने गीत लिखे। परिणामस्वरूप जिनकी साहित्य के अभिरूचि ना भी थी, उनके दिलों में काव्य मंचो द्वारा अपने गीतों से ना केवल जगह बनाई बल्कि साहित्य को जन-जन तक पहुंचाया।
अपने लिखे एक आलेख में लिखा कि “हरिवंश राय बच्चन के पहले कविताएं हवा में थीं। बच्चन साहब ने उसे ज़मीन पर उतारा और एक साधारण आम इंसान के सुख दुख को अपनी कविता में लिखना शुरु किया।” इस विचार को नीरज ने और बढाया।
मंच से सुनायी जाने वाली कविताओं के पितामह के रूप में उनकी बेपनाह ख्याति के सम्मुख कोई खडा नहीं होता। मंच पर उनके आते ही दर्शकों में जो उत्साह उमंग और उष्मा होती वह देखते बनती। उनकी नशीली कविता और लरजती आवाज़ सुन श्रोता मुग्ध हो उठते उनकी कविता को पढते और सुनते हुए ऐसा आभास होता कि आप किसी फिलासफर से बात कर रहे हों।
आकांक्षाओं के इस संसार में जब हर कोई सब कुछ अपनी गठरी में बांधने को उतावला हो रहा हो और उससे अपने बलशाली होने का भ्रम पाले हो तो तब वे सचेत करते हुए कहते हैं “हर घट से अपनी प्यास बुझा मत ओ प्यासे, प्याला बदले तो मधु ही विष बन जाता है“।
प्रतीकों के माध्यम से वह मानव मन को सुझाव देते चलते है जो ख्याली आदर्श पर आधारित न हो कर अनुभव जन्य है। संवादात्मक स्टाइल में लिखी गयी उनकी कविताएं मानस को झकझोर देती हैं। उनकी कविता जीवन की अतल गहराइयों में जा कर जीने की कला सिखलाती हैं। वे मानते है कि मनुष्य के हाथ में प्रेम की बांसुरी है जिससे वह इस यात्रा को सहज और सुंदर बना सकता है। कविता को उद्देश्यपूर्ण, मार्गदर्शी, और मनस्वी बनाने के वे हिमायती थे।
कविता को किताब से जुबान पर लाने वाले नीरज जी ने अपनी कलम गीत, कविता, दोहे, शेर में भी आजमाई। सात दशकों तक देश में ही नहीं विदेशों में काव्य मंचो पर गीतों से श्रोताओं से रूहानी रिश्ता कायम रखने में सफल हुए। चर्मोंतकर्ष पर उनकी काव्याभिव्यक्ति में उपनिषद व चिंतन को अपनी गजलों के जरिये व्यक्त किया। सदा बहार गीत लिखने वाले नीरज जी के गीतों में जीवन संघर्ष व जीवन जीने के रहस्य सरलभाषा में व्यक्त किये।
‘नीरज’ को हिन्दी के प्रख्यात लोकप्रिय कवि श्री हरिवंश राय बच्चन का ‘निशा निमंत्रण’ कहीं से पढ़ने को मिल गया। उससे वह बहुत प्रभावित हुए था। इस सम्बन्ध में ‘नीरज’ ने स्वयं लिखा है – ‘मैंने कविता लिखना किससे सीखा, यह तो मुझे याद नहीं। कब लिखना आरम्भ किया, शायद यह भी नहीं मालूम। हाँ इतना ज़रूर, याद है कि गर्मी के दिन थे, स्कूल की छुटियाँ हो चुकी थीं, शायद मई का या जून का महीना था। मेरे एक मित्र मेरे घर आए। उनके हाथ में ‘निशा निमंत्रण’ पुस्तक की एक प्रति थी। मैंने लेकर उसे खोला। उसके पहले गीत ने ही मुझे प्रभावित किया और पढ़ने के लिए उनसे उसे मांग लिया। मुझे उसके पढ़ने में बहुत आनन्द आया और उस दिन ही मैंने उसे दो-तीन बार पढ़ा। उसे पढ़कर मुझे भी कुछ लिखने की सनक सवार हुई।…..’
‘बच्चन जी से मैं बहुत अधिक प्रभावित हुआ हूँ। इसके कई कारण हैं, पहला तो यही कि बच्चन जी की तरह मुझे भी ज़िन्दगी से बहुत लड़ना पड़ा है, अब भी लड़ रहा हूँ और शायद भविष्य में भी लड़ता ही रहूँ।’ ये पंक्तियाँ सन् 1944 में प्रकाशित ‘नीरज’ की पहली काव्य-कृति ‘संघर्ष’ से उद्धत की गई हैं। ‘संघर्ष’ में ‘नीरज’ ने बच्चन जी के प्रभाव को ही स्वीकार नहीं किया, प्रत्युत यह पुस्तक भी उन्हें समर्पित की थी।
‘नीरज’ का काव्यकलागत दृष्टिकोण भाषा, शब्दों के प्रयोग, छ्न्द, लय, सन्दर्भ, वातावरण और प्रतीत-योजना आदि सभी दृष्टि से इस पीढ़ी के कवियों में सर्वथा अलग और विशिष्ट स्थान रखता है। ‘नीरज’ ने अपनी रचनाओं में सभी प्रकार की भाषा का व्यवहार किया है। वह अपनी अनुभूतियों के आधार पर ही शब्दों, मुहावरों और क्रियाओं का प्रयोग करता है। यही कारण हैं कि उसके काव्य में हमें जहाँ संस्कृतनिष्ठ शैली दृष्टिगत होती है, वहाँ उर्दू जैसी सरल और सादी शब्दावली का व्यवहार ही देखने को मिलता है। उसकी रचनाओं को हम शैली की दृष्टि से दार्शनिक, लोकगीतात्मक, चित्रात्मक, परुष और संस्कृतनिष्ठ आदि विभिन्न रूपों में विभक्त कर सकते हैं।
लोकगीतात्मक शैली में प्राय: फक्कड़पन रहता है, और ऐसी रचनाओं में वह प्राय: ह्रस्व-ध्वनि प्रधान शब्द ही प्रयुक्त करते हैं। उनकी लोकगीत-प्रधान शैली से लिखी गई रचनाओं में माधुर्य भाव की प्रचुरता देखने को मिलती है। ‘नीरज’ की लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वह जहाँ हिन्दी के माध्यम से साधारण स्तर के पाठक के मन की गहराई में उतरे हैं वहाँ उन्होंने गम्भीर से गम्भीर अध्येताओं के मन को भी गुदगुदा दिया है। यही कारण है कि ‘भदन्त आनन्द कौसल्यायन’ यदि उन्हें हिन्दी का ‘अश्वघोष’ घोषित करते हैं, तो ‘दिनकर’ जी उन्हें हिन्दी की ‘वीणा’ मानते हैं। अन्य भाषा-भाषी यदि उन्हें ‘संत कवि’ की संज्ञा देते हैं, तो कुछ आलोचक उन्हें निराश मृत्युवादी समझते हैं।
नीरज जी अपने गीत के माध्यम से सकारात्मक प्रवृत्तियों को मनुष्य के भीतर जगाते हुए पिछली बातों पर दुख न प्रकट करने का संदेश मूल रूप से अभिव्यक्त किया है। वे कहते हैं कि जो गुज़र चुका और जिस चीज़ की हानि हो चुकी है, उसकी पूर्ति तो नहीं की जा सकती है, लेकिन इस हानि को सीने से लगाए रखने से कोई लाभ नहीं होने वाला। इसलिए हमें आगे बढ़ाना चाहिए और जीवन के सकारात्मक पक्ष को देखना चाहिए।
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहें, अपने पहले नाक़ामयाब प्यार के अरमानो की उठती डोली पर अपनी अंतर्व्यथा को कुछ इस तरह बया किया- ‘कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है’। वे लिखते हैं कि- “किसी दीप के बुझ जाने से आँगन नहीं मारा करता।” उनका मानना है कि खोने के लिए हमारे पास अधिक नहीं, लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है और इस पाने के प्रयत्न को जीवन से किसी भी विपत्ति के होते तिरोहित नहीं करना चाहिए।
जीवन का सबसे बडा टर्निंग पाइंट उस समय आया जब एक कवि सम्मेलन में प्रसिद्ध अभिनेता देवानंद बतौर मुख्य अतिथि के रूप में यह कह कर आये कि उद्घाटन कर कुछ समय में चले जाएंगे लेकिन आयोजकों ने नीरज को काव्य पाठ के लिये खडा कर दिया। तब वें उन्हें सुने ही नहीं बल्कि घंटों तक सुनते रहे और हर कविता पर दाद तक सुनते रहे और हर कविता पर दाद देते रहे घंटों बाद चलने को हुए तो पास बुला कर कहा हम जल्द साथ काम करेंगे।
उन दिनों देवानंद फिल्म “प्रेम पुजारी“ की प्लानिंग कर रहे थे। देवानंद ने उन्हें संगीत निर्देशक एस डी बर्मन से परिचय करवाते हुए कहा नामी कवि हैं इनसे गीत लिखवाने हैं। एस डी बर्मन ने अपने पास रखी हुई एक धुन जो उन्हें बहुत प्रिय थी और उसे फिल्म में शामिल करने का फैसला कर चुके थे सौंपते हुए कहा कि इसके अनुसार गीत लिख लाइये कई बार धुन को कई सुन कर जो गीत लिखा अभी भी वह अपनी मिठास और छकास को बिखेरता है ” रंगीला रे तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन छलिया रे ना ज कैसा रे कैसा रे साथी दीया तो झुमे है, रोये है बाती “ गीत को सुन कर एस डी बर्मन इतने प्रसन्न हुए कि अपने पान दान में से पान निकाल कर उन्हें भेंट किया।
इसके बाद नीरज और देवानंद की दोस्ती इतनी बडी कि वे उन्हे बेहतरीन रोमांटिक हीरो मानने लगे उनके अनुसार देवानंद उस वटवृक्ष का नाम रहा जिसके अंतर्गत कई प्रतिभाओं को फलने फूलने का अवसर मिला। “अपने लिखे गीत “ शौकियों में घोला जाए फूलों का शबाब उसमें फिर मिलाई जाए थोडी सी शराब होगा यूं नशा जो तैयार, वो प्यार है “ गीत सुन देवानंद इतने खुश हुए कि कहा नीरज आपने कमाल कर दिया। उनके अनुसार मेरे जीवन की सबसे बडी रायल्टी भी उन्हीं से मिली।
उनकी कविता “ राज मार्ग के पद यात्री “ को सुन राज कपूर इतने प्रभावित हुए कि अपनी प्रसिद्ध फिल्म “ मेरा नाम जोकर ” में गीत लिखने की गुजारिश की। नीरज ने अपनी कलम से लिखा “ ए भाई ज़रा देख के चले आगे भी नहीं पीछे भी ”, “ कन्यादान “ में लिखे गीत “ लिखे जो खत तुझे ,वो तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गये “ , “ बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं “ , “ खिलते हैं गुल यहां खिल के बिखरने को , “ कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे “ , “ मेरा मन तेरा प्यासा “ जैसे गीतों की चमक ऐसी बिखरी कि लगातार तीन वर्षों तक उन्हें सर्व श्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर अवार्ड प्राप्त हुआ। उन्होंने फिल्मों में 130 गीत लिखे।
अंततः यश भारती और विश्व उर्दू पुरूस्कार से सम्मानित नीरज जी पहले ऐसे शख्स थे जिन्हे शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो बार 1991 में ‘पद्मश्री’ तथा पुनः 2007 में “पद्मभूषण” से नवाजा।
“इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में” जैसी उन्मुक्त पंक्तियों के रचनाकार गोपालदास ‘नीरज’ की प्रकाशित कृतियाँ :- इस प्रकार हैं: संघर्ष (1944), अन्तर्ध्वनि (1946), विभावरी (1948), प्राणगीत (1951), दर्द दिया है (1956) बादर बरस गयो (1957), मुक्तकी (1958) , दो गीत (1958), नीरज की पाती(1958), गीत भी अगीत भी (1959) आसावरी (1963), नदी किनारे (1963) ,लहर पुकारे (1963), कारवाँ गुजर गया (1964), फिर दीप जलेगा (1970), तुम्हारे लिये (1972), नीरज की गीतिकाएँ (1987)
‘नीरज’ जी की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वह फ़िल्मी दुनिया में सबसे ज्यादा लिख कर भी फ़िल्मी गीतकार नहीं कहलाये। उनका साहित्यिक मूल्य व स्तर हमेशा बरक़रार रहा और रहेगा, जबकि बाकी गीतकारों को साहित्य की दुनिया में कोई स्थान नहीं प्राप्त हुआ। नीरज जी ने कभी भी किसी भाषाई या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ कोई समझौता नहीं किया। उनके गीतों में भावनाएं और अध्यात्म सहज रूप से उभर कर आ जाता था जो श्रोताओं के दिलो-दिमाग में घार कर जाता था।
पुरस्कार और बड़े अलंकरण उनके शौर्य के समक्ष दीये के सामान प्रतीत होते हैं। जीवन के अंतिम समय में लिखी उनकी यह पंक्तियां जन्म और मृत्यु के सत्य को स्पर्शी रूप से प्रस्तुत करती हैं “ कफन बढ़ा तो किस लिये, नज़र तू डबडबा गयी सिंगार क्यूं सहम गया बहार क्यूं लजा गई, न जन्म कुछ, न मृत्यु कुछ, बस इतनी ही तो बात है / किसी की आंख खुल गई, किसी को नींद आ गई “ इस महान शब्द शिल्पी ने 19 जुलाई 2018 को इस भव जगत को त्यागा।
शब्द और संगीत कभी नहीं मरता है, वह अमर हो जाता है। उसी तरह ‘नीरज’ भी अपने गीतों के मध्याम से हमेशा जिन्दा रहेंगें- हमारे दिलों-दिमाग में। शब्द कभी नहीं मरते। नीरज जी अपनी कविताओं और गीतों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे। अपने पीछे गीतों और कविताओं के ऐसे खज़ाने को छोडा जिसकी चमक कभी फीकी नहीं होगी क्योंकि उसमें जीवन की संजीवनी बसी है इसलिये उनके यशस्वी रचना संसार पर उन्ही के लिखे गीत की पंक्ति लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में मौजूं लगती है।