Connect with us

काकोरी से हुई थी नई क्रांति की शुरुआत।

आलेख

काकोरी से हुई थी नई क्रांति की शुरुआत।

(डॉ नीरज कृष्ण)

19 दिसंबर पर विशेष

काकोरी की घटना से अंग्रेजों के अभिमान को गहरा चोट पहुंचा। क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिये सीआईडी इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की पुलिस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इसके लिए पांच हजार रुपये के इनाम की घोषणा हुई। परन्तु काकोरी की घटना को • अंजाम देकर इन क्रांतिकारियों ने पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध एक नई क्रांति का सूत्रपात कर दिया था जिससे आम जनता अंग्रेजी राज से मुक्ति के लिए क्रांतिकारियों की ओर एक उम्मीद से देखने लगी थी।

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का आज 19 दिसम्बर का दिन बड़ा ही ऐतिहासिक है। ब्रिटिश हुकूमत जो स्वतंत्रता स्वाभिमान स्वावलंबन को कुचल कर हिंदुस्तान पर अपना राज कर रही थी उसके खिलाफ संपूर्ण देश लड़ रहा था परन्तु स्वतंत्रता कोई भीख नही होती जो मांगने से मिलती है। स्वतंत्रता स्वाभिमान है, गौरव है, ऐसा जीवन मूल्य है जिसके लिए कुछ भी समर्पित कर देना बहुत ही कम है। ऐसे में भारत की स्वाधीनता के लिये क्रांतिकारी आंदोलन भी एक प्रमुख धारा थी। सन 1857 की क्रांति के बाद चापेकर बंधुओं द्वारा रेंड व आयस्टर की हत्या के साथ सैन्यवादी राष्ट्रवाद का जो दौर प्रारंभ हुआ, वह भारत के राष्ट्रीय फलक पर महात्मा गांधी के आगमन तक निर्विरोध जारी रहा लेकिन फरवरी 1922 में चौरा-चौरी की घटना के बाद गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने से युवाओं को घोर निराशा हुई।

खुदीराम बोस, चाफेकर बंधु, बंगाल का अनुशीलन दल, बारीन्द्र और अरविंदो घोष, श्यामजी कृष्ण वर्मा आदि से जुड़ी क्रांतिकारी गतिविधियां और अनेक जांबाज युवाओं के संगठन अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र रूप से सक्रिय थे वो जान पर खेल जाने वाले दुस्साहसी और स्वाभिमानी युवा गुलामी से मुक्त होने के लिये प्रयासरत थे। शचीन्द्रनाथ सन्याल, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद आदि द्वारा गठित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) पहला क्रांतिकारी संगठन था जिसने आजादी के बाद के भारत के भावी राजनैतिक स्वरूप पर गम्भीरता और स्पष्टता से सोचा था।

स्वाधीनता संग्राम की कालावधि में भारत माता की पावन रज में लोट-लोट कर बड़े हुए युवकों ने मां की आराधना में निज जीवन के सुवासित पुष्प चढ़ाये हैं। हंसते हुए फंसी के फंदों को चूम कर स्वयं गले में धारण कर कंठहार बना लिया तो वहीं कालचक्र की छाती पर निज बीरता की गाथा भी अपने रुधिर से अंकित कर दी। मां भारती को पावन सांसों का अर्घ्य प्रदान किया। इन वीरों में ही एक ऐसा नर-नाहर महनीय व्यक्तित्व है जिसे 27 वर्ष की उम्र में फंसी सजा हुई थी। वह थे मां भारती के अमर पुत्र एवं काकोरी का महानायक अशफक उल्ल खां जिसे सभी क्रांतिकारी स्नेह से ‘कुबर जी’ कहा करते थे।

अशफक का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन के नजदीक एक जमींदार परिवार में हुआ था। पिता मो0 शर्फक उल्ला खां और माता मजहूरुन्निशा बेगम शिशु के जन्म पर फूले न समाये थे। अशफक अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे। इन्हें घर में सभी प्यार से ‘अच्छु’ बुलाते थे। बचपन से ही खेलने, तैरने, घुड़सवारी करने, बंदूक से निशाना साधने और शिकार करने का शौक था। मजबूत ऊंची कद-काठी और बड़ी आंखों वाले सुन्दर गौरवर्णी आकर्षक व्यक्तित्व के धनी अशफक, रामप्रसाद बिस्मिल की ही भांति उर्दू के अच्छे शायर थे। साथ ही हिन्दी और अंग्रेजी में भी कविताएं और लेख लिखते थे। वह हिन्दू- मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। एक बार शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में रामप्रसाद बिस्मिल के साथ बैठे क्रांतिकारी दल के बारे में गहन चर्चा कर रहे थे कि तभी मंदिर को नष्ट एवं अपवित्र करने की मंशा से आये दंगाईयों पर अशफक ने अपनी पिस्तौल तान कर कहा था कि यदि कोई भी आगे बढ़ा और एक भी इंट का नुकसान हुआ तो लाशें बिछा दूंगा। अशफाक का यह रोद्र रूप देख दंगाई उल्टे पांव भाग खड़े हुए।

अशफक का परिवार बहुत पढ़ा लिखा नहीं था जबकि ननिहाल पक्ष के लोग उच्च शिक्षित और महत्वपूर्ण नौकरियों में थे। ननिहाल के लोगों ने 1857 की पहली स्वतंत्रता की लड़ाई में साथ नहीं दिया था तो लोगों ने गुस्से में उनकी कोठी में आग लगा दी थी जो आज भी ‘जली कोठी’ नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

वर्ष 1920 में अपने बड़े भाई रियासत उल्ला खां के सहपाठी मित्र रामप्रसाद बिस्मिल के सम्पर्क में आने के बाद अशफक के मन में भी अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना भर गई और वह अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए युवाओं को जोड़ने लगे थे। इसी बीच बंगाल के क्रान्तिकारियों से भी संपर्क बना और एक संगठन बनाने का निर्णय लिया गया। विदेश में रह रहे लाला हरदयाल भी बिस्मिल से सम्पर्क साधे हुए थे और संगठन बनाकर उसका संविधान लिखने का निर्देश दे रहे थे। इसी बीच अशफ़क कॉंग्रेस दल में अपने लोगों की सहभागिता चाहते थे।
1920 के अहमदाबाद अधिवेशन में और अन्य साथियों के साथ अशफक शामिल हुए। लौटकर भी सम्पर्क बना रहा और 1922 के गया अधिवेशन में भी जाना हुआ। लेकिन गांधी जी द्वरा बिना किसी से पूछे असहयोग आंदोलन वापस लेने से युवाओं का मन खराब हुआ और वहां से लौटने के बाद अपना एक दल बनाने की बात हुई। और तब 1924 में बंगाल से आये क्रान्तिकारियों के सहयोग से ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ अस्तित्व में आईं। 1 जनवरी, 1925 को ‘दि रिवोल्यूशनरी’ नाम से अंग्रेजी में चार पन्ने का एक विचार पत्र निकाला गया जो एक प्रकार से दल का घोषणा पत्र ही था। जिसमें प्रत्येक पन्ने पर ऊपर लिखा हुआ था, “चाहें छोटा हो या बड़ा, गरीब हो या अमीर, प्रत्येक को मुफ्त न्याय और समान अधिकार मिलेगा।” इस पत्रक को पूरे देश के प्रमुख शहरों और सार्वजनिक स्थानों पर चिपकाया गया। ताकि अधिक से अधिक जनता पढ़ सके। दल के काम को बढ़ाने के लिए धन की आवश्यकता थी लेकिन दल को कोई भी सेठ-साहूकार चन्दा नहीं दे रहा था। संयोग से इसी बीच योगेश चन्द्र बनर्जी और शचीन्द्रनाथ सान्याल पर्चों के साथ बंगाल जाते समय पकड़ लिए गये। अब दल की पूरी जिम्मेदारी बिस्मिल और अशफक पर आ गई।

धन प्राप्ति के लिए अमीरों के यहां दो डकैतियां भी डाली गईं लेकिन पर्याप्त धन नहीं मिल सका और दो आम लोगों की न चाहते हुए हत्या भी हो गईं। इससे बिस्मिल का मन बहुत ध्षुब्ध हुआ और आईन्दा राजनैतिक डकैती न डालने का निश्चय कर अब सरकारी खजाना लूटने की योजना बनी।

बैठक में बिस्मिल ने प्रस्ताव रखा कि काकोरी से ट्रेन द्वारा जाने वाले खजाने को लूटा जाये। बैठक में उपस्थित सभी साथी सहमत थे लेकिन अशफक ने यह कहते हुए इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया कि अभी हमारी ताकत अंग्रेज सरकार से सीधे लड़ने की नहीं है और खजाना लुटने के बाद पुलिस हमारे पीछे पड़ जायेगी और दल बिखर जायेगा। इस पर अशफक को कायर और मृत्यु से डरने वाला कहा गया। अन्ततः अशफक ने सहमति देते हुए कहा कि वह मौत से नहीं डरते और यह समय ही तय करेगा।

योजनानुसार 26 अगस्त की शाम को “8 डाउन लखनऊ-सहारनपुर पैसेन्जर ट्रेन” में 10 क्रांतिकारी सवार हुए। जैसे हो काकोरी से खजाना लादकर ट्रेन आगे बढ़ी तो राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने जंजीर खींच दी। अशफाक ने लपक कर ड्राईबर की कनपटी में माउजर धर दिया। गार्ड ने मुकाबला करने की कोशिश की लेकिन बिस्मिल ने उसे जमीन पर आधे मुंह गिरा कर काबू में कर लिया। खजाने की तिजोरी उतारी गई लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी ताले नहीं खुले। समय जाता देख अशफक ने अपनी माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ाकर घन से तिजोरी तोड़ने को पिल पड़े। अशफक के जोरदार प्रहारों से तिजोरी में एक बड़ा छेद हो गया। चांदी के सिक्के और रुपया चादरों में समेटा गया और निकल गये। लेकिन जल्दबाजी में एक चादर छूट गई जो बाद में पुलिस की खोजबीन में क्रान्तिकारियों को पकड़ने का अहम जरिया बनी।

इस घटना से अंग्रेज सरकार की बहुत किरकिरी हुईं। और क्रान्तिकारियों को पकड़ने के लिए ईनाम घोषित किये गये। पुलिस की जांच एवं खुफिया खोजबीन से पूंरे देश में एक साथ 26 सितम्बर 1925 को क्रान्तिकारियों के कई ठिकानों पर छापा मारकर 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन पुलिस तब भी अशफक और चन्द्रशेखर आजाद को पकड़ने में नाकाम रही। अशफक पुलिस को चकमा देकर नेपाल चले गये। वहां से कानपुर आकर गणेश शंकर विद्यार्यी के प्रेस में भी रहे फिर बनारस, राजस्थान, बिहार, भोपाल होते हुए दिल्ले पहुंचे। उनकी योजना पासपोर्ट बनवाकर देश से बाहर जाने की थी। लेकिन दिल्ली में किसी मित्र के विश्वासघात के कारण खुफिया पुलिस अधिकारी इकरामुल हक द्वारा पकड़े गये।

हालांकि अदालत द्वरा काकोरी काण्ड का फैसला 6 अप्रैल 1926 को दिया जा चुका था। लेकिन अशफक और शचीन्द्रनाथ बख्शी के विरुद्ध फिर से पूरक केस दायर किया गया। जिसका फैसला 13 जुलाई को आया जिसमें रामप्रसाद बिस्मित, अशफक उल्ला खांराजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी एवं 16 अन्य को चार वर्ष से लेकर काले पानी तक की सजाएं दी गईं।

अदालत के आदेश के पालन करते हुए 19 दिसम्बर 1927, सोमवार को फैजाबाद जेल में अशफक को फंसी दे दी गई। स्वतंत्रता की बलि बेदी पर मां भारती के एक और सपूत ने अपनी आहुति देकर जननी की कोख को गौरव प्रदान किया। आने वाली पीढ़ियां आपसे प्रेरित होती रहेंगी।

शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ देश के महान स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहु- भाषाविद् व साहित्यकार भी थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी।

अपनी क़लम के माध्यम से ब्रिटिश हुक़ूमत की आँख की किरकिरी बन गए। ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसा अमर गीत लिखकर बिस्मिल ने क्रांति की वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया। राम प्रसाद बिस्मिल ने ‘बिस्मिल अज़ीमाबादी’ के नाम से भी काफ़ी शायरी की। जीवन के अंतिम सफ़र में जब इनको गोरखपुर जेल भेजा गया तो वहीं पर इन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी।

ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले काकोरी काण्ड को इन्होंने ही अंजाम दिया था। 19 दिसम्बर, 1927 को आपको देशभक्ति के अपराध में फाँसी दी गई।
जिसे पता हो की अगले दिन हमें मरना है, वह आत्मकथा लिख रहा हो, सोचिये, है न जिगर की बात ! नमन ऐसे व्यक्तित्व को ! विडंबना की आज क़ोई भी सरकारी अमला इनको याद नहीं कर रहा है।

आज हमें वाकई अपने को गौरांवान्वित होना चाहिए कि हम भी उसी धूल में खिल कर बड़े हुये हैं जिन रास्तों से ये वीर सेनानी गुजरे हैं। आज वे पंक्तियाँ याद आती हैं माखनलाल चतुर्वेदी जी की “मुझको तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फ़ेंक, जिस पथ जायें वीर अनेक”।

94वें शहादत दिवस पर शत शत नमन !!💐💐

Continue Reading
You may also like...

More in आलेख

Trending News

Follow Facebook Page

About Us

उत्तराखण्ड की ताज़ा खबरों से अवगत होने हेतु संवाद सूत्र से जुड़ें तथा अपने काव्य व लेखन आदि हमें भेजने के लिए दिये गए ईमेल पर संपर्क करें!

Email: [email protected]

AUTHOR DETAILS –

Name: Deepshikha Gusain
Address: 4 Canal Road, Kaulagarh, Dehradun, Uttarakhand, India, 248001
Phone: +91 94103 17522
Email: [email protected]