आलेख
बुराँश के फूलों से श्रृंगारित पहाड़….
✍️✍️✍️राघवेंद्र चतुर्वेदी
“बुरांश केवल प्रकृति का सौंदर्य नहीं, बल्कि पहाड़ी जीवन की आत्मा है। यह ऋतुओं का संदेशवाहक है, जो बताता है कि सर्दियों का कठोर समय बीत चुका है और अब जीवन एक बार फिर खिलने को तैयार है। यह प्रेम का प्रतीक भी है, जो बताता है कि सच्ची सुंदरता न तो किसी आभूषण में होती है, न ही किसी बनावटी श्रृंगार में, बल्कि अपने प्राकृतिक रूप में खिलने में होती है।”

बुरांश… पर्वतों की गोद में खिला एक लाल सपना, जो हर बसंत अपनी अनुपम छटा बिखेरता है। यह कोई साधारण फूल नहीं, बल्कि पहाड़ों का श्रृंगार है, जो हर वर्ष अपने लाल, गुलाबी और कभी-कभी बैंगनी आभा से प्रकृति को एक नया रूप देता है। हिमालय की ऊँचाइयों पर, जहाँ हवा पतली हो जाती है और सूरज की किरणें अधिक तीव्र लगती हैं, वहीं बुरांश खिलता है….मौन, मगर अपनी उपस्थिति का एहसास कराता हुआ।
यह फूल केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और स्वास्थ्य का भी अभिन्न हिस्सा है। पहाड़ी गाँवों में जब बुरांश के फूल शाखाओं पर मुस्कुराने लगते हैं, तो मानो पूरी प्रकृति एक नए उत्सव में डूब जाती है। बच्चे इन्हें तोड़कर खेलते हैं, महिलाएँ इनसे रस निकालकर स्वास्थ्यवर्धक पेय बनाती हैं, और वृद्ध इसकी छाँव में बैठकर पुरानी यादों को दोहराते हैं। बुरांश का रस, जिसका स्वाद मीठेपन और हल्की खटास का अद्भुत संगम होता है, केवल स्वाद की दृष्टि से नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी अनमोल माना जाता है। दिल को मजबूत करने वाला, शरीर को ऊर्जा देने वाला और रक्तसंचार को बेहतर करने वाला यह रस, पहाड़ी जीवनशैली का एक अभिन्न अंग बन चुका है।

बुरांश केवल एक औषधीय पौधा नहीं, यह पहाड़ों के हृदय में धड़कने वाला एक कोमल एहसास है। जब इसके फूल पूरी तरह खिल जाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे पहाड़ों ने अपने हृदय को खोलकर रख दिया हो….लाल, उज्ज्वल और प्रेम से भरा हुआ। दूर से देखने पर ये वृक्ष किसी नववधू के समान प्रतीत होते हैं, जो अपनी लाज से गुलाबी आभा में लिपटी हो। यह दृश्य केवल आँखों को सुकून नहीं देता, बल्कि आत्मा तक को स्पर्श करता है।
बचपन में जब पहली बार बुरांश को खिलते देखा था, तो ऐसा लगा था जैसे पेड़ पर अनगिनत लाल दीपक टंगे हों। धूप जब उन पर पड़ती, तो उनकी आभा और भी गहरी हो जाती। वे हवा में हिलते तो ऐसा प्रतीत होता जैसे कोई प्रेम से सिर हिला रहा हो, कोई कानों में कोई मीठा रहस्य फुसफुसा रहा हो। और जब ये फूल झरते, तो पहाड़ी रास्ते मानो एक सुर्ख गलीचे से ढक जाते। इन पंखुड़ियों पर चलने का अनुभव वैसा ही था, जैसा किसी सपने में चलते हुए महसूस होता है…हल्का, मुलायम और अविश्वसनीय।
बुरांश केवल प्रकृति का सौंदर्य नहीं, बल्कि पहाड़ी जीवन की आत्मा है। यह ऋतुओं का संदेशवाहक है, जो बताता है कि सर्दियों का कठोर समय बीत चुका है और अब जीवन एक बार फिर खिलने को तैयार है। यह प्रेम का प्रतीक भी है, जो बताता है कि सच्ची सुंदरता न तो किसी आभूषण में होती है, न ही किसी बनावटी श्रृंगार में, बल्कि अपने प्राकृतिक रूप में खिलने में होती है।
यही कारण है कि लोकगीतों में बुरांश को विशेष स्थान प्राप्त है। पहाड़ी प्रेम कहानियों में इसका जिक्र आता है…कभी किसी प्रेमी ने अपनी प्रेयसी को बुरांश के फूल भेंट किए, तो कभी किसी ने इसके रंग में अपनी भावनाओं को डुबो दिया। कुछ लोककथाएँ तो यह भी कहती हैं कि जो प्रेमी अपने प्रियजन के लिए बुरांश लाता है, उसका प्रेम सदा अमर रहता है।
बुरांश केवल प्रेम और सौंदर्य की कथा नहीं, यह संघर्ष की कहानी भी कहता है। जलवायु परिवर्तन के इस युग में, जब मौसम असंतुलित हो रहा है, बर्फ कम गिर रही है और तापमान बढ़ रहा है, तब बुरांश के खिलने का समय भी प्रभावित हो रहा है। कभी जो पेड़ ठंडी ऊँचाइयों में खिले रहते थे, वे अब निचले इलाकों में भी दिखने लगे हैं, जो इस बदलाव का संकेत है। परंतु बुरांश की जिजीविषा इसे हर स्थिति में खिला रहने की प्रेरणा देती है। यह हमें सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों, हमें खिलना नहीं छोड़ना चाहिए।
कभी-कभी सोचता हूँ, अगर इंसान भी बुरांश की तरह होता…हर कठिनाई के बाद फिर से खिल उठता, हर मौसम में अपनी पहचान बनाए रखता और हर गिरावट को एक नए सृजन का अवसर मानता….तो जीवन कितना सुंदर हो जाता। बुरांश हमें यह सिखाता है कि जीवन का सार केवल जीने में नहीं, बल्कि खिलने में है।
जब भी पर्वतों की ओर जाना हो, और बुरांश खिला मिले, तो एक पल ठहरना। उसकी लालिमा को महसूस करना, उसकी कोमल पंखुड़ियों को छूना, और उसकी सौंधी महक को अपने भीतर भर लेना। क्योंकि यह केवल एक फूल नहीं, यह हिमालय की आत्मा का एक अंश है….जो हर बसंत हमें प्रेम, संघर्ष और सुंदरता का सबसे अनमोल पाठ पढ़ाने के लिए खिलता है।
राघवेंद्र चतुर्वेदी (बनारस)

