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म्यारा भैजी की स्याळी।

आलेख

म्यारा भैजी की स्याळी।

हरदेव नेगी.

अब आप लोगूं दगड़ा अपड़ी व्यथा क्या लगौं? मुझे म्यारा भैजी की स्याळी का सुभौ ढंग से जचा ही नहीं, जबकि भ्यना और स्याळी की ठठा-मजाक अपने आप मैं खूब रंगीलो और नखुरू वाला होता था, पर अब ये जमना ईं सब दूर हो गया, इसीलिए मैने पहले अपनी एक कविता मे जिक्र किया था कि ” बौजी दगड़ी मजाक कनौ अर् स्याळी पर ढसाक मनो” ये जमना सग्वोर चैंद. ना ये सग्वोर मुझ में था ना ये टैलैंट म्यारा भैजी की स्याळी में… किलै कि मैं ठेठ क्यदार घाटी के गाँव का बैख और स्याळी देस्वाळी मुलक की,
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अब हुआ यूंँ कि एक दिन म्यारा भैजी की स्याळी ने मुझे व्हट्स अप पर पहली बार मैसिज किया कि :-

Hi Jiju, How r u ?
ये मैसिज पढ़कर मि थौड़ा चचला गया, कि आज यु घाम कख बटि आया,
मैने रिप्लाई किया, और लिखा “झिज्यौला त्येरु कपाळ”. पहले तो म्यारा भैजी की स्याळी ये बता ये ” hi Jiju क्या हुआ, ढंग से सर्वाळी (आदर से बोलना) लगा, ये जिजु क्या शब्द है, पहली बार में जिजु बोल रही है भ्वोळ तेरा बस चले तो “जुजु” भी बोल देगी, आदर व सत्कार के हाव भाव वाले भाषा बोल, जैंसे कि भ्यना / भेना / भिना जी सेमन्या बोल नहीं आती गढ़वळि तो “जीजा जी” प्रणाम बोल, यु कुड़बकि शब्द कख बटि सीखा त्वेने, मेरे घर गाँव में जब छोटा बच्चा रोता है तो उसे चुप करवाने के लिए घर वाले बोलते हैं कि चुप हो जा नहीं तो जिझू खा जायेगा,, तुझे क्या मैं जिझू लगता हूँ।। सही शब्द का उच्णरण कर, कैंसा लगेगा अगर मैं तुझे स्याळी / स्याली / साली की जगह Hi Seelu (हाई सीलू) लिखूं. कन कळजुग आया ये जमना मा, सब जगह बड़ी “ऊ” की मात्रा लगा रहे हैं, सब सर्वाळी खराब कर दी, मामू, चाचू, दादू , सिस ब्रो, मोम डैड, ज्ये करला तुम तब.
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स्याळी ने फिर रिप्लाइ किया अरे जीजु यार ये Modern Lifestyle है यहां सब ऐंसे ही बोलते हैं.
फिर मैने रिप्लाई किया और लिखा कन Modern? तुमरि मर्वोड़ म्वोडला” जब भी मुझे मैसिज करेगी तो जीजा जी या भ्यना जैंसे आदर शब्दों से बात करना, नहीं तो मुछळा से डाम कर त्येरा जिझू जिझ्या दूँगा।।

और सु दिन है ओर आज का दिन है “म्यारा भैजी कि स्याळी” मुझसे हेट करने लगी, और बात करना बंद मेरा नंबर ब्लौक करके मुझे “ब्लौक परमुख बना दिया” और भ्यना स्याळी का मजाक सर्वाळी का कारण शुरु होने से पहले बंद हो गई।
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खैर आप लोग नयु गीत सूंणा भौत दिनु बटि भ्यना अर स्याळी पर क्वे रसीलु, रंगीलु गीत आई।।।

हरदेव नेगी, गुप्तकाशी( रुद्रप्रयाग)

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