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“एन इक्वल शेयर”

आलेख

“एन इक्वल शेयर”

“प्रतिभा की कलम से”

वो रोज रात को आयें और नारियल के पेड़ों से नारियल पानी पी के रफ़ूचक्कर हो जाया करें । मालिक परेशान । आखिर क्यों वो किसी को अपनी जमीन में उगने वाली चीजों में हिस्सा दे ?

एक व्यक्ति था, समुद्र तट स्थित एक फॉर्महाउस का मालिक । समय – समय पर फार्महाउस में तरह -तरह के फल, सब्जियाँ भरपूर मात्रा में उगाई जातीं । मालिक देखकर खुश होता । लेकिन नाखुश भी रहता,जब देखता कि सब्जियों का कुछ भाग कीड़े-मकौड़े और चींटियाँ भी खा जाती हैं । पेड़ पर लगे फल देखकर उसका दिल झूम उठता, कि इतने में उसे डाल पर बैठे फल खाते पंछी भी दिख जाते तो वह मन मसोस कर रह जाता । उसकी खुशी इसी में थी कि वो पंछी और कीड़े-मकौड़ों से अपने फार्म हाउस की सारी फल – सब्जियों को बचा कर रखे । लिहाजा उसने कीटनाशक,गुलेल और एअरगन का इंतजाम कर लिया । कर दिया छिड़काव। मार दिये कीड़े । भगा दिये पक्षी भी।
लेकिन फिर भी कोई था जो उसकी रातों की नींद पर अब भी डाका डाले हुए था । चमगादड़ !
वो रोज रात को आयें और नारियल के पेड़ों से नारियल पानी पी के रफ़ूचक्कर हो जाया करें । मालिक परेशान । आखिर क्यों वो किसी को अपनी जमीन में उगने वाली चीजों में हिस्सा दे ?
क्या करूं ? ये सवाल सुनते ही उसका चचेरा साला अपनी भरी हुई बंदूक लेकर जीजा की खिदमत में हाजिर हो गया। उसको मालूम था कि सारे चमगादड़ दिन के समय गाँव के एक पुराने बरगद के पेड़ पर उलटा लटककर आराम करते रहते हैं ।
तो चचेरा साला और उसकी बहन बंदूक ले के पंहुच गये बरगद के पेड़ के पास चमगादड़ों को ठिकाने लगाने ।
कितनी देर लगती सबको गोली से उड़ाने में ! एक घंटा ? दो घंटा ?
नहीं ! यहाँ तो सुबह से शाम होने को आयी,लेकिन वो दोनों भाई – बहन तो घर ही नहीं लौटे अब तक ।
चिंतातुर मालिक खुद उनकी ढूंढ़ में निकला । बरगद के पेड़ के पास पंहुच देखता क्या है कि उसका चचेरा साला और पत्नी दोनों बरगद के पेड़ से बंधे उलटे लटक रहे हैं , और ! गाँववाले उन पर बंदूक ताने खड़े हैं ।
पूछने पर गुस्साये गाँववाले बताते हैं कि चमगादड़ों में हमारे मृत पूर्वजों की आत्मा निवास करती है । इसलिए हम इन्हें नहीं मारने देंगे । और इन दोनों दुष्टों को भी अपने तरीके से समझायेंगे कि क्या होता है चमगादड़ों को मारने का अंजाम !
फार्महाउस के मालिक की अकल ठिकाने लग चुकी थी अब तक । समझ आ गया उसे कि सिर्फ मूल्य चुका दिये जाने भर से ही धरती का टुकड़ा उसका नहीं हो जाता। उन सब जीव-जन्तुओं का भी इस पर उतना ही अधिकार है, जो इसमें निवास करते हैं ।
ये कहानी हम सबके लिए एक संदेश है कि इस धरती का सुख अगर हम सबके साथ मिलकर नहीं बाँट सकते तो कुदरत फिर हमें कोरोना के खौफ में अकेले रखकर दुखी होने पर मजबूर कर देती है ।

प्रतिभा नैथानी

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