आलेख
मुझे नहीं बनना अमिताभ बच्चन 😏
(व्यंग्य)
____✍️©राजीव नयन पाण्डेय
हांँ, मुझे नहीं बनना अमिताभ बच्चन। यह बात जा कर कोई अमिताभ #बच्चन को चाहे तो बता दे। चाहे मेरे मे और तथाकथित सुपरस्टार मे भले चाहे कितनी ही समानता क्यों न हो…मुझे चाहे कितने ही प्रलोभन क्यों न मिले परन्तु मुझे अब अमिताभ बच्चन नहीं बनना।
वैसे तो अमिताभ बच्चन के बहुत बडे वाले #समर्थक व प्रशंसक रहे है, वो भी तभी तक ..जब तक की #बुद्धि नहीं थी। तब मेरी #लम्बाई के कारण स्कूल के मास्टरजी कहते थे… “लम्बू जी आज भी होमवर्क भूल गये,आईऐ आपको आमलेट बनाना सिखाऊं। फिर बच्चों से कहते…..हांँ तो बच्चों अब बच्चन साहब मुर्गा बनेंगे” सच कहू तो अब भी बच्चन साहेब को देखते हैं, तब तब मास्टर साहब और मुर्गा ही याद आते हैं।
हालांकि मास्टर साहब मानते भी तो बहुत थे..तब शनिवार को दोपहर बाद #बाल_सभा” होता तो फिल्मों के डायलॉग मुझे ही सुनाने को कहते…..फिर.क्या कभी शोले का “जय” बनते, कभी अग्नि पथ का “विजय चौहान”, तो कभी अमर अकबर का “एन्थोनी” ।
बचपन मे अमिताभ बच्चन की फिल्मों को देख कर ही कुछ कुछ #दुनियादारी सीखने का जरा घमंड क्या हुआ…बात मे पता चला ”’ वह तो सवसे बडी #बेवकूफी थी। फिल्म #मर्द मे बच्चन साहब.ने अपने सीने पर चाकू की नोक से मर्द लिखाई थी,तो मैने भी शीशे के सामने खडे़ हो कर काले स्केच पेन से सीने पर “मर्द” लिखा था, यह अलग बात है कि उस लिखाई के एवज मे स्कूल मे खुद को #इकलौता मर्द समझने वाले गुरु जी ने अपनी छडी़ से “मर्द’ को “मर्द”बनने से पहले ही काफी “दर्द” पहूंचाया था। और रही सही कसर घर वालो ने उतारी थी जब जाडे़ की कपकपाती शीत लरह में महीनो बाद नहाने के लिए गलती से गलत जगह शर्ट उतार दी थी…फिर क्या.. #शर्ट के साथ साथ सिनेमा का भूत उतारा था..और उनका भूत उतारना जायज भी था…मैने अपने..हाथों पर लिख जो दिया था “मेरा #बाप चोर हैं”।
एक वक्त तक मुझे अमिताभ बच्चन इतने हद तक पसंद थे कि जवानी के दिनो मे #स्कूल से भाग भाग कर
“झुम बराबर झुम”,”सुरमा भोपाली”, “तुफान”, “अजूबा”, “अकेला”, “जादुगर”, “आज का अर्जुन”, “इन्द्रजीत”, “इंसानियत के देवता”,”कोहराम” और तो और “लाल बादशाह” तक देखी थी। ऐसी फिल्मों के गाने और डायलॉग तो रट से गये थे, परन्तु इसी बच्चन साहेब के सिनेमा के चक्कर मे. मास्टर साहब ने भरे क्लास मे #बूमबूमबुमर” बना दिया था जब उनको पता चला कि…स्कूल से बंक करके “महानायक की “बूम” देखने गया था|
हालांकि बचपन से बच्चन साहब के लिऐ इज्ज्त थी परन्तु फिल्म #निःशब्द ने मुझे निःशब्द कर दिया था। बच्चन साहब की तरह भले ही मै भी गंगा किनारे वाला छोरा हूँ, परन्तु बच्चन साहब इस छोर के और मैं दुसरी छोर का….अब एक छोर का कहलवा कर कौन बेईज्ज़ती करवाए। वे अब कौन सी फिल्म कब शुरू कर दे कौन #भरोसा।
सच कहू तो अब तथाकथित #काल्पनिक सुपरस्टार से नफरत की #रेखा इतनी बड़ी हो चुकी हैं कि वो जिस कम्पनी का विज्ञापन करते है उस कम्पनी का सामान तक ना खरीदु …उनकी सिनेमा देखना तो दूर की बात हैं, परन्तु #नवरत्न ठंडा तेल को छोडकर.. क्योंकि कुछ कुछ फिल्मों और #महामानव की कलाकारी देख कर आँखो में ठंडा तेल ही लगाने का मन करता हैं, वैसे ठंडा तेल आँखो में लगाने से जलन तो बहुत होती हैं, परन्तु वो #जलन “राम गोपाल वर्मा की आग” को देखने के बाद की जलन से कम जलन होती हैं।
बच्चन साहब ने अपनी सफलता के लिए क्या किये और क्या नहीं किये, किसके साथ क्या किये यह कोई मायने नहीं रखता…. परन्तु जो भी किया सरासर गलत किया। और रही सही कसर जहरीले #कैंसर रोग का मूल कारण “गुटका” बेचने का विज्ञापन करना।
यद्धपि कलाकार को कला बेचने की अनुमति होती हैं परन्तु बच्चन साहब ने बुढा़पे में #जमीर बेच ही दी है. ..और गफलत यह कि अगर कोई बुढ़ा कह दे तो “#बुढ़ा_होगा_तेरा_बाप” देखने को कहते हैं।
भारत सरकार एक तरफ तो सफाई अभियान के ब्रांड एंबेसडर के रूप मे #इज्जत देती हैं, वही दुसरी तरफ गुटखा के बिक्री को बढ़ावा देने की कोशिश।
लडकपन, जवानी और अब बुढा़पा मे इनकी कृत्यो से मेरे आस पास वाले दबी जुबान में कहने लगे हैं कि #लम्बे लोगों की #बुद्धि उनके #घुटनों में होती हैं।
खैर, मेरे और अमिताभ बच्चन के बीच समानताएं तो बहुत है उनकी तरह गंगा किनारे वाला मैं भी हूँ,,उनकी तरह लम्बू मैं भी हूँ, सुंदर हूँ, सौम्य हूँ,, सुशील हूँ,,.और भी बहुत सी समानता .. है पर इसी उम्र में अपनी #बेईज्ज़ती कौन करवाऐ,.अब इस उम्र मे दिमाग #घुटने में हैं कौन साबित करे जैसा..अमिताभ बच्चन अपनी करवा रहे है। इसलिए कोई कितनी भी मुझे से सिफारिश कर ले मुझे अपनी इज्ज्त प्यारी है, अब मुझे पहले की तरह अमिताभ बच्चन बनना ही नहीं हैं..
____✍️©राजीव नयन पाण्डेय (देहरादून)