Connect with us

“राम-कौआ”

आलेख

“राम-कौआ”

प्रतिभा की कलम से

‘सीता चरण चोंच हतिभागा।मूढ़ मंद मति कारन कागा।। चला रूधिर रघुनायक जाना।सीक धनुष सायकसंधाना’।।

प्रभु राम का स्मरण होता रहे की कामना से राम उपसर्ग वाले रामसिंगार,रामवृक्ष,रामधन,रामफल,रामकिशन, रामचरण, रामसेवक,रामलखन,रामस्वरूप, रामानुज .. इत्यादि जैसे हजारों नामों से भरपूर हमारा देश,जो जहां किसी से मिलने पर राम-राम से अभिवादन करता है तो संसार से किसी की अंतिम विदाई पर भी ‘राम-नाम सत्य है’ का ही घोष करता है। लेकिन अधिकाँश लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि वाल्मीकि रामायण से पहले ही इस संसार का रामकथा से परिचय विद्वान काकभुशुण्डि के रूप में कौवे ने करवाया था। राम-रावण युद्ध में जब मेघनाथ ने राम को नागपाश में बांध लिया था तो राम की सर्पों से मुक्ति के लिए नारद जी,गरुड़ जी को लिवाने गये । गरुड़ जी ने चुन-चुन का समस्त नागों को खा तो लिया किंतु उनके मन में राम की शक्ति के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया । इसी संदेह को दूर करने के लिए कागभुशुण्डि ने शंकर जी द्वारा पार्वती जी को सुनाई गई राम कथा ‘अध्यात्म रामायण’ के रूप में गरुड़ जी को सुनाकर उनके मन में पुन: ईश रूप में राम को स्थापित किया । इसलिए कौए की कर्कश काँव-काँव में भी राम-नाम महसूस कर हमें उसे दिल में ठाँव देना ठीक रहेगा , न कि मेहमान आने की आशंका में कंकड़ मारकर भगा देना । कागराज पर श्रद्धा उत्पन्न होने पर अब फिर संदेह राम पर हो सकता है कि फिर क्यों उन्होंने कौवे की आँख पर बाण चलाकर उसे सदैव के लिए एकपक्षीय कर दिया था?
तो,कथा यह कहती है कि इंद्र के पुत्र जयंत जो राजा दशरथ का मंत्री भी था,के मन में एक बार राम की शक्ति परखने का विचार आ गया क्योंकि उसकी दृष्टि सीता पर मोहित हो चुकी थी। वनवास के समय जब चित्रकूट में एक दिन राम अपनी कुटिया में सीता के केशों पर फूलों की वेणी सजा रहे थे तो जयंत कौए का रूप धारण कर वहां पहुंच गया । ईर्ष्यावश उससे यह सुंदर दृश्य देखा ना गया और वह सीता के पाँव पर अपनी चोंच से गंभीर चोट मार कर भाग गया ।

‘सीता चरण चोंच हतिभागा। मूढ़ मंद मति कारन कागा।।
चला रूधिर रघुनायक जाना । सीक धनुष सायक संधाना’ ।।

जयंत का दु:स्साहस और सीता की पीड़ा देखकर राम का रक्त खौल गया । उन्होंने तुरंत कुशा यानी घास का बाण बनाकर जयंत पर छोड़ दिया । जयंत भागा…भागा । शरण के लिए उसने अपने पिता इंद्र समेत सभी देवी-देवताओं की देहरी पर माथा टेका पर उसे किसी ने शरण न दी । देते भी क्यों ? वह राम का अपराधी जो था। किसी अन्य देवता का अपराध करने पर उसे क्षमादान मिल भी सकता था, किंतु यहां उसने एक असाधारण व्यक्ति का अपराध किया था जो अपनी मर्यादा,कर्तव्य-परायणता, वीरता,साहस,धर्म,अधर्म पर विवेक,अविवेक के उचित बोध से समस्त लोकों में देव तुल्य हो गया था। तब नारद जी ने जयंत को सलाह दी कि जिनका बाण काल बनकर तुम्हारा पीछा कर रहा है उन्हीं की शरण में जाओ । जयंत राम के चरणों में गिर पड़ा ।

“अनुज बधू,भगिनी,सुत नारी। सुन सठ कन्या सम ए चारी।।
इनहिं कुदृष्टि विलोकहिं जोई । ताहि बधै कछु पाप न होई” ।।
… समझाकर किष्किंधा में बालि को वैकुंठधाम पंहुचा देने वाले राम ने उस दिन चित्रकूट में पक्षी रूप जयंत की प्रार्थना पर उसे प्राणदान दे ही दिया, किंतु घास का ही सही रामबाण लक्ष्य पर पंहुचे बिना लौट कैसे सकता था ? सीता पर कुदृष्टि डालने के दंड स्वरूप उसने काग रूप जयंत की एक आंख फोड़ कर अपनी सार्थकता सिद्ध की । श्री राम जहां रहे थे कभी,उस चित्रकूट के आसमान ने तब से आज तक किसी कौए को वहां मंडराने की इजाजत न दी । इसीलिए कहा जाता है कि ‘काग विहीन चित्रकूट वन’ ।
दिन-प्रतिदिन बढ़ती राक्षसी प्रवृत्तियों के बोलबाले के बीच भी हमारे मन में राम के प्रति आस्था जीवित है इसलिए प्रतीक्षा में भव्य मंदिर भी बनवा रहे हैं, लेकिन तुम्हारे आने का संदेशा जो लाए उसकी चोंच सोने से मढ़ देने का वचन हम किस तरह पूरा करेंगे ! जबकि कौए तो इस दुनिया में अब आखिरी साँस ले रहे हैं।

प्रतिभा नैथानी

                                             
Continue Reading
You may also like...

More in आलेख

Trending News

आलेख

मोक्ष

Follow Facebook Page

About Us

उत्तराखण्ड की ताज़ा खबरों से अवगत होने हेतु संवाद सूत्र से जुड़ें तथा अपने काव्य व लेखन आदि हमें भेजने के लिए दिये गए ईमेल पर संपर्क करें!

Email: [email protected]

AUTHOR DETAILS –

Name: Deepshikha Gusain
Address: 4 Canal Road, Kaulagarh, Dehradun, Uttarakhand, India, 248001
Phone: +91 94103 17522
Email: [email protected]