आलेख
सम्बन्ध..प्रकृति और मानव का।
【सुनीता भट्ट पैन्यूली】
हम क्यों भेद करते हैं प्रकृति और प्रकृति से जुड़े मानवीय अस्तित्व में,जबकि हकीकत यही है कि प्रकृति हमारी है और हम प्रकृति के, इसलिए हमें प्रकृति के प्रति उदार होना चाहिए।
चित्र:गूगल
ड्राइंगरुम की दीवार पर पेंटिंग चस्पा है।पेंटिंग में पेड़ की कलाकृति अलंकृत है।पेड़ के ऊपर मेरी प्रश्नाकूल दृष्टि अकस्मात गिरकर पेड़ से नहीं मुझसे उत्तर मांग रही है कि वास्तव में अगर यह पेड़ कभी रहा होगा तो क्या उसी जगह पर मिलेगा? जहां यह उगा था? संभवतः हां भी और ना भी.. मैं जब-जब सघन जंगलों की खोह की ओर प्रवृत्त हुई,पेड़ मेरे दांये -बांये और आगे-पीछे खड़े हुए मेरे लिए हमेशा ही कौतुक बने रहे, फिर भी मुझे महसूस हुआ कि पेड़ का जीवन दो भागों में बंटा हुआ है।आधा धरित्री के ऊपर और आधा धरित्री के भीतर ।पेड़ के ऊपर जीव-जंतुओं और पाखियों का लहलहाता संसार है।पेड़ के नीचे जड़ो का आपस में गुथा-मथा ,सुगठित,प्रायोजित जीवन जहां खनिज-लवण द्वारा एक-दूसरे को पोषित करने का स्वच्छ प्रक्रम चलता है । दरअसल, पेड़ की नसों में पोषक तत्त्व नहीं आत्मीयता और सौहार्द से युक्त रसतत्व बहता है।पेड़ केवल संरचना ही नहीं व्यवहार्यता के संयोजक भी होते हैं।कुछ प्राचीन पेड़ इतने जीवट हैं कि हमारे मानव जीवन के इतिहास,युद्ध, विभीषिका,संस्कृति,धार्मिक अनुष्ठानों के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं।पेड़ शाश्वत हैं क्षिति के अवांतर इनकी जड़ें अनंत हैं।पेड़ मर्मज्ञ हैं जीवन के रहस्यों की गुंजलक इनके सानिध्य में स्वयं खुलती जाती है।पेड़ों के समीप क्षणिक रूककर पेड़ से बातें करें तो पेड़ पथ प्रदर्शक भी हैं जीवन को आलोकित करने के संदर्भ में।पेड़ उपदेशक भी हैं जन्म,ज्ञानप्राप्ति और निर्वाण के, पेड़ सदियों से कला की विभिन्न विधाओं में जीवित हैं किंतु यह विडंबना ही है कि पेड़ वर्तमान के जीवन में मर रहे हैं ।यह चिंतनीय है कि पेड़ नहीं होंगे तो ना हवा होगी,ना बादल होंगे, ना वर्षण होगा, ना ही सृजन होगा और इंसान स्वयं एक गयी- बीती घटना होगा कहीं गडमड प्रकृति के खंडित गर्भ में।आकाश जैसे भेद नहीं करता है परवाज़ भरने वालों के लिए धरा भी परहेज़ नहीं करती है अपने यहां आश्रय लेने वालों से।
हम क्यों भेद करते हैं प्रकृति और प्रकृति से जुड़े मानवीय अस्तित्व में,जबकि हकीकत यही है कि प्रकृति हमारी है और हम प्रकृति के, इसलिए हमें प्रकृति के प्रति उदार होना चाहिए।
सुना है पेड़ अपना सुख-दुख अपने तनें के चक्रोंं में सहेज लेते हैं। पेड़ की सच्ची ताकत उसकी शारीरिक संरचना में नहीं अपितु उसकी कोशिकाओं में एकत्रित पोषक तत्त्व यानि आक्सीजन को बाहर उलीचने की क्षमता में है।
पेड़ों में देवत्व है। पेड़ ऋषियों का अधिष्ठान हैं इसलिए सनातन हैं।पेड़ों से कुछ चाहिए तो पेड़ों के नीचे बैठ जायें,पेड़ों से बातें करें इनके पास हमारी हर जिज्ञासा का उत्तर है। एक निर्भीक व साहसी पेड़ ही पहाड़ के दुर्गम ढलानों पर उगता है तथा पेड़ का छ:महीने बर्फ से आच्छादित रहना पेड़ की धीरता है।पेड़ पर पतझड़ का आना और बसंत का लौटना सुख और दुख के वृत का परस्पर अनुगमन है।पेड़ के भीतर ज्ञान का तत्व है।पेड़ विचार है,पेड़ मार्गदर्शक भी है जो बाह्य आपदाओं को सदियों से झेलते हुए अप्रभावित होकर प्राचीन धरोहर की सर्वोच्च उपाधि प्राप्त करता है।
पेड़ मुझसे कहता है कि जंगलों से गुजरा करो।जंगल से गुजरकर जाने वाला रास्ता जीवन की कई रहस्यमयी परतों को उजागर करता है। मैं अनगिनत संतानों का पिता हूं।मैं अपने बीजों का श्रम और जीवन का रहस्य जानता हूं
किंतु मैं संसार के हर कोने में प्रस्फुटित हो चुके अपनी सभी संतानों का जीवन-रक्षक नहीं हो सकता। तुम मुझमें ईश्वर का अक्स देखो और इस वृक्षविहीन होते जगत में वृक्षों के देवालय बनाओ तुम महसूस करोगे कि ईश्वर मुझसे तुम्हारे भीतर प्रतिष्ठित हो गया है।
(सुनीता भट्ट पैन्यूली)