आलेख
“रस्किन बॉन्ड” : जन्मदिन विशेष।
‘द नाइट ट्रेन एट देवली’ पढ़कर लगता है कि प्लेटफार्म पर बांस की टोकरी बेचती रस्किन से मिली उस अनाम लड़की की बेहद काली आंखों की अधीरता ही उनके प्रेम की असली नायिका है।
अपनी एक बेहद लोकप्रिय कहानी “ब्लू अंब्रेला” में दुकानदार रामभरोसे के लिए लिखे संवाद “मेरा भी दिल है और मैं इसकी खूबसूरती को अपनाना चाहता हूं” की तरह ही रस्किन बांड ने भी पहाड़ों की रानी मसूरी और देहरादून की वादियों को हमेशा के लिए दिल में रख लिया
अपने मौसम और हरियाली के अलावा देहरादून और मसूरी की एक और विशेष पहचान हैं मशहूर अंग्रेजी लेखक – रस्किन बॉन्ड।
दूसरे शब्दों में कहें तो रस्किन बॉन्ड का साहित्य भी बहुत हद तक दोनों पहाड़ी शहरों के विश्व प्रसिद्ध ख्याति का परिचायक है।
1934 में कसौली में जन्म और देहरादून में सत्रह वर्षीय नवयुवक होने तक का समय गुजारने के बाद दूसरे कई अंग्रेजों की तरह ही रस्किन भी रोजी-रोटी की तलाश में लंदन चले गए थे । यह 1951 के आसपास की बात है जब भारत आजाद हो चुका था। लेकिन खूब घने पेड़ों के बीच बसा हुए उनकी दादी के घर में बिताए हुए बचपन के दिन और हिंदुस्तानी साथियों की याद ब्रिटेन में हमेशा के लिए बस जाने से उनका मोहभंग करती रहती । यही यादें सहारा बनीं “द रुम ऑन द रूफ” उपन्यास लिखने में। उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुआ और इससे उनकी जो कमाई हुई, उन पैसों से उन्होंने ‘स्वदेश’ यानी भारत वापसी की। उपन्यास की कथावस्तु का केंद्र देहरादून शहर था जिस पर उन्हें अपने समय का एक प्रसिद्ध पुरस्कार भी प्राप्त हुआ । उसके बाद जीवन यापन के लिए उन्होंने लेखन को ही सहारा बना लिया। रस्किन बॉन्ड की लेखन शैली बेहद सहज और सरल रही इसलिए जल्द ही वह बेस्टसेलर लेखकों में शामिल हो गए।
तब उन्होंने ‘द काइट’, ‘द थीफ’, ‘व्हेन डार्कनेस फॉल्स, ‘अ फेस आन द डार्क’, द काइट मेकर, द टनल , अ फ्लाइट्स ऑफ पिजन, द वुमन आन प्लेटफार्म, मोस्ट ब्यूटीफुल, डेल्ही इज नॉट फार, एंग्री रिवर …. जैसी पांच सौ से भी अधिक कहानियां,उपन्यासों, लेख और कुछ कविताओं की रचना की। कथावस्तु बहुत सामान्य और सरल होने के बावजूद भी उनकी हर रचना दिल पर एक खास प्रभाव छोड़ जाने में कामयाब रहती है।
कुछ भुतहा कहानियां भी उन्होंने लिखी। लेकिन उनमें भी ऐसा असामान्य कहीं नहीं कि पाठक डर के मारे आधे में ही में ही किताब छोड़ देने को मजबूर हो जाएं। ‘टोपाज’ की नायिका हमीदा के प्रेतात्मा होने का रोमांच और सुरमई शाम के अंधेरे में एक दूसरे में खोए लेखक और उसके बीच- “यह समय नहीं है जो बीत रहा है । यह हम और तुम हैं” जैसे संवाद की कसक टोपाज को हमीदा जैसी ही बेहद खूबसूरत और यादगार कहानी बना जाती है। इसी तरह “सुजैन’स सेवन हस्बैंड” भी है, जिस पर सात खून माफ नाम से हिंदी फिल्म भी बनी है। हां, “अ फेस इन द डार्क” जरूर सिहरन पैदा करने में कामयाब हो जाती है।
अपने पिता की मृत्यु के बाद अकेले रह गए रस्किन को और अधिक उदास किया उनकी मां की दूसरी शादी और देहरादून में उनके गार्जियन बने मिस्टर हैरिसन के परिवार ने। भारतीयता के रंग में रंगे रस्टी को पक्का अंग्रेज बनाने में वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। इसलिए वह अक्सर रस्टी की पिटाई भी कर देते थे। तब एक दिन विरोध में अपने संरक्षक पर हाथ उठा रस्टी घर से भाग गया।
यह सब कुछ बहुत दुखद था। लेकिन इन सब विपरीत परिस्थितियों ने उनके हृदयस्पर्शी लेखन के लिए अच्छी जमीन तैयार कर ली। “द रुम ऑन द रूफ” इन्हीं घटनाओं की परिणति है।
“एक नन्हा दोस्त” कहानी के शीर्षक से लगता है कि ये जरूर किसी छोटे बच्चे से उनकी दोस्ती की कहानी होगी। लेकिन नहीं यह तो एक नन्हा चूहा है जो अकेले कमरे में काम से लौटे थके हारे रस्किन का इंतजार करने वाला साथी है। मकान मालकिन के नाराज होने के बावजूद भी रस्किन उसके लिए फर्श पर ब्रेड और चीज का चूरा बिखरा कर रखते हैं। सुखद लगता है रस्किन का उसके भाग्य पर ईर्ष्यालु हो जाना जब कमरा खाली कर जाने से पहले चूहे को एक चुहिया का साथ मिल जाता है।
अकेलेपन से घबराकर खुद को तबाह कर देने वालों के किस्सों से दुनिया भरी पड़ी है, रस्किन जैसे विरले ही उदाहरण कहीं मिलते हैं जिन्होंने इसे गले लगा कर खुद को कामयाबी की मिसाल बना दिया।
ऐसा नहीं है कि रस्किन की जिंदगी में अच्छे पलों की कमी रही हो। देहरादून में हर साल अपनी दादी के घर में बिताई गई गर्मी की छुट्टियों के दिन भी रस्किन की कई कहानियों में हमें तरोताजा करते हैं। रस्किन लिखते हैं कि उनकी दादी बहुत अच्छी कुक थीं। वो रस्किन का बहुत ख्याल रखती थीं। कभी-कभी उनसे मिलने दादी के भतीजे केन अंकल भी आया करते थे। केन निठल्ले किस्म के आदमी थे। उनके साथ रस्टी की नोंक-झोंक और केन अंकल के अजीब कारनामों से भरी “क्रेजी टाइम्स विद अंकल केन” में लिखी हुई कहानियां आज भी बच्चों को बहुत पसंद आती हैं।
हां ! अपनी दादी के बारे में रस्किन बांड ने एक कविता भी लिखी है -ग्रैंडमा क्लांइब्स ए ट्री। आठ बरस की उम्र से शुरू कर बासठ बरस की उम्र तक कितनी भी ऊंचाई के किसी भी प्रकार के पेड़ पर आसानी से चढ़ जाने वाली दादी मां के अनोखे शौक के बारे में पढ़कर पाठक हैरानी से भर उठते हैं। चढ़ जाने के बाद पेड़ से ना उतर पाने वाली एक दुर्घटना के बाद रस्टी के पिता द्वारा उनकी मां की इच्छा पर तुरंत एक ट्री टॉप हाउस तैयार करवा देने पर होठों पर अनायास ही मुस्कान भी फैल जाती है।
बच्चों के लिए लिखी अपनी एक और कहानी ‘द चेरी ट्री’ में अच्छे-बुरे अनुभवों को झेलते हुए एक चेरी के बीज की फलदार पेड़ बन जाने तक की जीवन यात्रा को देखते हुए आठ साल के नन्हे राकेश के बालमन में उपजी यह पंक्तियां चकित कर देती हैं कि “भगवान होने पर शायद ऐसी ही अनुभूति होती होगी” ।
बाल साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया । 2014 में वह पद्म विभूषण से भी सम्मानित हुए हैं।
अविवाहित रहने के सवाल पर रस्किन शरारती जवाब देते हैं -अभी कहां देर हुई है ? आपने कभी किसी लड़की से प्यार किया है ? पूछे जाने पर भी रस्किन चुटीले अंदाज में कहते हैं – ‘हम तो बहुत लड़की से प्यार किया, मगर वो हमको वापिस नहीं प्यार किया। और जब किया तो बहुत लेट हो गया’ ! हां इसी रोचक अंदाज में हिंदी बोलते हैं रस्किन ।
‘टोपाज’ की रसभरे होठों वाली हमीदा, ‘द आईज हैव इट’ में लंबे बालों में महकती खुशबू वाली नेत्रहीन लड़की, ‘हैंडफुल आप नट्स’ की इंदु, ‘द रूम आन द रूफ’ की मिसेज मीना कपूर हो या कि फिर ‘टाइम स्टॉप्स एट शामली’ में लेखक की पुरानी परिचिता मिस्टर दयाल की पत्नी सुशीला के लिए बरसों पहले वाला ज्यागा प्यार !
‘द नाइट ट्रेन एट देवली’ पढ़कर लगता है कि प्लेटफार्म पर बांस की टोकरी बेचती रस्किन से मिली उस अनाम लड़की की बेहद काली आंखों की अधीरता ही उनके प्रेम की असली नायिका है।
अपनी एक बेहद लोकप्रिय कहानी “ब्लू अंब्रेला” में दुकानदार रामभरोसे के लिए लिखे संवाद “मेरा भी दिल है और मैं इसकी खूबसूरती को अपनाना चाहता हूं” की तरह ही रस्किन बांड ने भी पहाड़ों की रानी मसूरी और देहरादून की वादियों को हमेशा के लिए दिल में रख लिया।
अभी अगर पूछिए कि आप अगले जन्म में क्या बनना चाहते हैं तो वह कहते हैं “मैं तोता बनकर किसी पेड़ पर रहना चाहूंगा”।
हरियाली और पेड़-पौधों के प्रति उनका लगाव, उनकी आसक्ति इस कदर उनके लेखन में रच-बस गई कि ‘अवर ट्रीज स्टिल ग्रोज इन देहरा’ के लिए उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाजा गया। यह किताब चौदह बेहतरीन कहानियों का संकलन है।
हां! अपने पिता द्वारा लगाए कटहल और आम-नींबू के पेड़ों वाले पुराने देहरादून शहर को याद करते हुए एक मर्मस्पर्शी कविता भी किताब के आखिरी पन्ने पर उन्होंने लिखी है।
… These trees- old family trees- are growing still in Dehra ! हमारा शहर देहरादून और प्रिय लेखक रस्किन बॉन्ड के बीच यादों का ये खूबसूरत बंधन हमेशा बना रहे।
87 वें जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं आपको।
प्रतिभा की कलम से