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सलीम अली तुम लौट आओगे ना !

आलेख

सलीम अली तुम लौट आओगे ना !

प्रतिभा की कलम से

चिड़ियों की चहचहाहट से कोई अनजान नहीं, लेकिन कुदरत की नीरवता के साथ पंछियों के कलरव की इस जुगलबंदी का आनंद लेने जो लोग केवलादेव घाना पक्षीविहार,भरतपुर (राजस्थान) जाते हैं,उन्हें बता दें कि साइबेरियाई सारसों के झुंड के बीच आपको दूरबीन गले में लटकाए हुए किसी धवल आत्मा का भी एहसास हो तो समझ लीजिए यही डॉक्टर सलीम अली हैं।

केरल राज्य में सैरन्ध्री नाम की घाटी से होकर गुजरती हुई कुंती नदी के किनारे के जंगलों में वाष्पीकरण अन्य स्थानों की तुलना में अधिक होता है और वायुमंडल शीतल रहता है । फिर इसी जलवाष्प के संघनन से यह मैदानी इलाकों में अच्छी वर्षा का कारण बनती है । विविध प्रकार के फूल-पौधे,पशु-पक्षियों,तितलियों की आश्रय स्थली इस निर्जन घाटी का नाम भी शायद ही किसी को पता रहा होगा । किंतु अज्ञातवास में पांडवों का वासस्थान बनने के कारण इस वन का नाम द्रौपदी के नाम पर सैरंन्ध्रीवनम पड़ गया और नदी का नाम माता कुंती के नाम पर कुंती नदी पड़ गया। 1847 में एक अंग्रेज वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट वाइट ने इसे दोबारा खोजा । हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा जैव-विविधता से भरपूर इस घाटी में इतनी अनोखी शांति देखकर उसने इसका नाम सैरन्ध्रीवनम से बदलकर साइलेंट वैली कर दिया। शांति के साथ शोर को शामिल करने के फितूर में सन १९७० में यहां एक बांध परियोजना के निर्माण की मंजूरी दे दी गई ।
जिन्होंने पक्षियों की चहचहाहट बचाने को ही अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया था,उन्हें मालूम था कि बाँध के शोर के बाद इस घाटी से फिर कोई और न बँधा रह पाएगा । उन हजारों किस्म के सुंदर पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की आवाज़ बनकर तब डॉक्टर सलीम अली तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी से मिले । ‘चौधरी साहब गांव की मिट्टी पर पड़ने वाली पानी की पहली बूंद का असर जाने वाले नेता थे’ ।
पर्यावरण के संभावित खतरों का जो चित्र सलीम अली ने उनके सामने रखा,उसने उनकी आंखें नम कर दीं ।

अपने नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे सलीम मोईनुद्दीन अब्दुल अली के सर से मां-बाप का साया तभी छिन गया था जब वह सिर्फ एक वर्ष के थे । उनकी परवरिश मुंबई में उनके मामूजान ने की । एक बार उन्होंने सलीम को एक एयरगन भेंट की और तब सलीम की बंदूक के निशाने से एक गौरैया जमीन पर आ गिरी । गोरैया,गोरैया जैसी ही थी लेकिन उसकी गर्दन पीली थी । गर्दन के उस पीले रंग को स्पष्ट करने की जिज्ञासा के उत्तर में उनके मामूजान ने उन्हें पक्षीविज्ञानी डब्ल्यू एस मिलार्ड के पास भेज दिया , जिन्होंने नन्हे सलीम को पक्षियों से संबधित ‘कॉमन वर्ड्स ऑफ मुंबई’ नामक किताब दी । हाथ में पक्षियों की किताब आई तो एयरगन छूट गयी और फिर शुरू हुआ सलीम अली का पक्षीविज्ञानी बनने का सिलसिला, जिन्होंने अपनी मशहूर किताब ‘द फॉल ऑफ ए स्पैरो’ में इस घटना का विवरण दिया है । जीवन और स्वास्थ्य की तमाम विसंगत परिस्थितियों के कारण उनकी पढ़ाई-लिखाई में भी अनेक बाधाएं आईं, लेकिन पक्षियों के विज्ञान पर उनके नजरिए को विकसित होने से उन्हें कुदरत भी ना रोक सकी । बर्मा के घने जंगल हो या बर्लिन यूनिवर्सिटी,लंदन प्रवास हो या मुंबई ! तमाम उम्र दुनिया की सैर में उन्होंने सिर्फ प्रकृति और पक्षियों के लिए ही काम किया। उन्हीं पर पढ़ा,उन्हीं पर लिखा । पर्यावरण और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबें हर प्रकृति प्रेमी की पहली पसंद हैं ।
कभी शिकारी बनने की चाह रखने वाले सलीम अली ने बिना घायल किए पक्षियों को पकड़ने की सौ से भी अधिक विधियां ईज़ाद की , जिन्हें आज हर पक्षीविज्ञानी अपनाता है । सलीम अली पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षीसर्वेक्षण का आयोजन किया । उनके इसी योगदान के आभारस्वरूप पद्मविभूषण डॉ सलीम अली के नाम पर भारत सरकार ने कोयंबटूर में SACON (saalim Ali center for orinithilogy and natural history ) अर्थात पक्षीविज्ञान एंव प्राकृतिक इतिहास केन्द्र स्थापित किया ।
चिड़ियों की चहचहाहट से कोई अनजान नहीं, लेकिन कुदरत की नीरवता के साथ पंछियों के कलरव की इस जुगलबंदी का आनंद लेने जो लोग केवलादेव घाना पक्षीविहार,भरतपुर (राजस्थान) जाते हैं,उन्हें बता दें कि साइबेरियाई सारसों के झुंड के बीच आपको दूरबीन गले में लटकाए हुए किसी धवल आत्मा का भी एहसास हो तो समझ लीजिए यही डॉक्टर सलीम अली हैं। उन्होंने वहां सरकार से दख़ल लेकर जलपक्षी के शिकार और गांववालों के मवेशियों द्वारा चारागाह चुगने पर रोक लगवाई । इस पक्षीविहार को 1985 में यूनेस्को ने भी विश्व विरासत घोषित किया ।

आज सलीम अली नहीं है । चौधरी साहब भी नहीं है। कौन बचा है जो अब सौंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा ? कौन बचा है जो अब हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत करेगा? 20 जून 1987 को उनकी मृत्यु पर जाबिर हुसैन साहब ने लिखा कि – जब तक वह नहीं लौटते, क्या उन्हें गया हुआ मान लिया जाए? सलीम अली तुम लौट आओगे ना ?

प्रतिभा नैथानी

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