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कहो तो कुछ मीठा हो_जाऐ ।

आलेख

कहो तो कुछ मीठा हो_जाऐ ।

व्यंग्य

✍राजीवनयन पाण्डेय

हम भारतीय विशेष कर आदमी बात बात में “कुछ मीठा हो जाऐ” करने की आदत होती है। हम सभी को मीठा इतना पसंद है कि बम्बईयाॅ सिनेमा वाले भी हर बार रटा रटाया कुछ लाईने सिनेमा में जरूर डाल देते है .. “आज तुम्हारी पसंद की खीर बनी हैं”… “माॅ आज अपनी पसंद का गाजर का हलवा बना दो, बहुत पसंद हैं, “आते ही कहेगा माॅ लड्डू” और तो और सेट मैक्स वाले ‘ठाकुर भानू प्रताप’ की आखिरी पसंद भी “मीठी खीर” ही थी।

यूॅ तो मीठा और मिठाई की बातो का असर घर~घर अब इतना घर चुका है कि पिछले दिनो वाले “अमेजन” के ग्राम सभा फुलेरा वाले “सचिव जी” ने परिवार नियोजन के प्रचार प्रसार के प्रोत्साहन हेतु “दो बच्चे मीठी #खीर, उससे ज्यादा बवासीर” जिस पर काफी बवाल हुआ भी था, में भी मीठास ढूंढ ली थी… शायद इसी मीठास का असर अब इतना हो गया है कि लोग मीठा खाने से भी परहेज रखने लगे है विशेष कर उनके पहले से ही दो बच्चे हो।

खैर, जब से ये मीठास वाला यानि त्योहारो वाला मौसम शुरू हुआ है तब से हर तरफ मीठा और मिठाई की ही बाते हो रही है। हर कोई एक दुसरे का मूॅह मीठा करा रहा हैं, भले उस मिठाई का मालिक कोई और हो।

सोचो ऐसा कही होता है कि जो जीत गया हो बस वही मिठाई का हकदार हैं ? क्या वो मिठाई का हकदार नहीं जो पदक से या परीक्षा में अच्छे नम्बरो से कुछ दूर रह गया हो ?
कहने का तात्पर्य यही है कि जो 100% अंक ला रहा उसके लिऐ तो ना तो मिठाई खिलाने वालो की कमी होती है और ना ही सम्मान की। परन्तु उस छात्र को कोई नहीं पूछता जो 90% + अंक हासिल किया हो या पदक तो न जीता हो पर सबका दिल जरूर जीता हो।

एक बात यह नहीं समझ आती है कि पिछले दिनो प्रतिभागियो के ऑलम्पिक पदक जीतते ही राजनेताओं और विभिन्न संस्थाओं ने करोड़ो रूपये की धनराशि, नौकरी व अन्य की धड़ाधड़ घोषणाएं करनी शुरू कर दी थी यानि माहौल मीठा करने से पीछे कोई नहीं रहना चाहता था।
परन्तु, उन योद्धाओं को शायद किसी ने मुॅह मीठा या मिठाई खिलाने की बात कही हो या सोची हो… जो पदक जीतते जीतते रह गये… कहने को है कि हर एक प्रतिभागी ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया परन्तु कतिपय कारणों से उनको पदक नही मिला.. तो क्या वे प्रोत्साहन के अधिकारी नहीं है।
आज सब विजेताओं की जयजयकार लगा रहे है परन्तु कोई सामान्य सा व्यक्ति भी उन 127 वीर योद्धाओं का नाम नहीं ले रहा जिन्होने ऑलम्पिक में भारत और भारतीयता का प्रतिनिधित्व किया हो।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर खेल में अपना सर्वश्रेष्ठ देने वाली #गोल्फर अदिति अशोक हो या #तैराकी के साजन प्रकाश, श्रीहरि नटराज, माना पटेल, #कुश्ती के दीपक पुनिया,सीमा बिस्ला, अंशू मलिक , #टेनिस के सुमित नांगल, अंकित रैना, #तीरंदाजी के दीपिका हो या उनके पति देव, #टेबल टेनिस की मनिका बत्रा, #घुड़सवारी के मिर्जा..और.ऐसे बहुत सै खिलाड़ी और उनके कोच, टीम मैनेजर जो नेपथ्य में रह कर भी पदक जीताने में महती भूमिका निभायी हो।


आखिर ऐसा क्यों कि मीठा मीठा गप्प, कड़वा कड़वा थू थू.। जबकि सही मायनो में हारे हुए निराश प्रतिभागियों का, परीक्षा में असफल विद्यार्थियो को उत्साहित करना अति आवश्यक होता है। किसी निराश मन में ऊर्जा भरना सबसे बड़ा पुण्य का काम होता हैं।

इसलिए जब भी मौका मिले उसे ही मीठा खिलाया जाऐ… जिसे सही में मीठा की जरूरत हो . अपने आस-पास के भविष्य में सफल होने वाले योद्वाओं, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रो का उत्साह वर्धन करने हेतु बस मुस्कुराते हुए जरूर पूछे .. कहो तो कुछ मीठा हो जाऐ, आप अगली बार जरूर अच्छा करोगे आप ही पदक लाओगे . ऐसा .. कर के देखिये आपको अच्छा लगेगा….

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