आपदा
वरुणावत पर्वत को लेकर उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक दी यह जानकारी,सावधानी बरतने की दी सलाह।
संवादसूत्र देहरादून: वरुणावत पर्वत पर जहां भूस्खलन हुआ है, वहां अभी भी मलबा फंसा हुआ है। गिरे हुए पेड़ों में भी कुछ मलबा और पत्थर फंसे हुए हैं। जो बारिश में नीचे आ सकते हैं। लेकिन इनके सुरक्षा के लिए पूर्व में लगाई गई लोहे की रेलिंग को पार कर आबादी क्षेत्र में आने की संभावना कम ही है। बस सावधानी बरतने की जरूरत है।
यह कहना है कि उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र (यूएलएमएमसी) के निदेशक डॉ.शांतनु सरकार का। डॉ.शांतनु सरकार ने गत बृहस्पतिवार को आपदा प्रबंधन सचिव के साथ वरुणावत पर्वत पर हुए भूस्खलन का जायजा लिया। उन्होंने बताया कि वरुणावत पर्वत पर जहां वर्तमान में भूस्खलन हुआ है, वह ज्यादा बड़े नहीं, छोटे से क्षेत्र में हुआ है। ड्रोन की जो तस्वीरें देखी हैं, उसमें चट्टान दिखी है। कुछ मलबा जरूर गिरा हुआ है, हालांकि यह ज्यादा मात्रा में नहीं है। केवल लगभग एक दो मीटर का ही है। बताया कि भूस्खलन वाले इलाके में गिरे पेड़ों में कुछ मलबा और पत्थर अटके हुए हैं, जो थोड़ा-बहुत बारिश में नीचे आ सकते हैं। लेकिन घबराने की बात नहीं है, यह पूर्व में सुरक्षा के लिए लगाई गई लोहे की रेलिंग में ही अटक जाएंगे।
उन्होंने बताया कि आबादी क्षेत्र की सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग से ऊपर की ओर एक ओर रेलिंग लगाने के लिए कहा गया है। उन्होंने वरुणावत पर्वत पर वर्तमान में हुए भूस्खलन के भविष्य के लिए बड़ा खतरा होने से इंकार किया। कहा कि नीचे आबादी होने से सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्होंने सुरक्षा के लिहाज से खासतौर पर शाम के वक्त ऊपर वाले रास्ते आवाजाही न करने की बात कही।
डीएम डॉ.मेहरबान सिंह बिष्ट ने वर्ष 2003 में वरुणावत भूस्खलन के बाद मस्जिद मोहल्ले के ऊपर लगाई गई लोहे की करीब 150 मीटर लंबी रेलिंग का दायरा भी बढ़ाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा के मध्येनजर लगाई गई रेलिंग का दायरा बढ़ाया जाएगा, जिससे भूस्खलन होने पर आबादी क्षेत्र में मलबा और पत्थर आने से रूकेंगे।
यूएलएमएमसी के निदेशक डॉ.शांतनु सरकार ने कहा कि वरुणावत पर्वत की मैपिंग की जाएगी। उनके केंद्र की टीम वरुणावत पर्वत की मैपिंग करेगी। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन ने भी भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्थान से वरुणावत पर्वत की मैपिंग कराने की बात कही है।