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पुस्तकालय वर्धनशील संस्था है…

आलेख

पुस्तकालय वर्धनशील संस्था है…

राष्ट्रीय पुस्तकालय सप्ताह (14 से 20 नवंबर)

नीरज कृष्ण

भारत में पुस्तक संस्कृति का महत्व बहुत पुराना है। वेद, उपनिषद्, पुराणों, गीता, रामायण जैसे ग्रंथों की यहां पूजा तो होती ही है, साथ ही उनके मर्म को जीवन में उतार कर उसे आत्मसात करने की सलाह हमें दी जाती है। जब लिखने के साधन नहीं थे, तो इस ज्ञान को कंठस्थ कर सदियों से गुरु-चेला परम्परा अथवा पारिवारिक धरोहर मानकर इस ज्ञान को सहेज कर रखा जाता था। जब लेखन की परंपरा आरंभ हुई तो ज्ञान को लिखित रूप में भी सहेजने की परंपरा शुरू हो गई। लेखनी व स्याही के साथ जब कागज उपलब्ध न था तो वनस्पति से प्राप्त पत्ते ! भोजपत्र आदि) छाल व अन्य भागों से प्राप्त भागों का उपयोग किया गया। मिश्र की सभ्यता में पेपायरस के रूप में किया जाने का उपयोग कागज के रूप में किया जाने का उल्लेख हैं।

अंग्रेजी के पेपर शब्द का उपयोग भी संभवतः इसी आधार पर हुआ। कागज के प्रयोग को आरंभ करने का श्रेय यदि चीन को दिया जाता है तो आधुनिक छपाई (प्रिंटिंग) आरंभ कर्ता के रूप में जर्मनी के गुटेनबर्ग को इसका आविष्कारक माना जाता है। यद्यपि प्राचीन ग्रंथों की पांडुलिपियों का महत्व आज भी बना हुआ है, मगर उनके ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने में कागज व प्रिंटिंग टेक्नॉलोजी की भूमिका का महत्व स्वीकार करना ही होगा।

ज्ञान समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक नई शाखा है जिसका लक्ष्य ज्ञान की सत्यता की खोज करना है। ज्ञान ऐसे विचारों के समूह को कहा जाता है जो कि चिन्तन की विषयवस्तु के वास्तविक प्रकृति के अनुरूप हो। वर्तमान समाज में ज्ञान का विकास एवं आयोजन विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से सम्पन्न होता है। आज समस्त सामाजिक कार्यों एवं संगठनों का संस्थाकरण किया जा चुका पुस्तकालय इन्हीं संस्थाओं में एक प्रमुख संस्था है जो ज्ञान समाजशास्त्र के विकास में एक सतत् योगदान दे रहा है। पुस्तकालय जैसी संस्था ही प्रलेखों में अभिलेख बद्ध सूचना या ज्ञान का संग्रहण, भंडारण, प्रक्रियाकरण, व्यवस्थापन, वितरण तथा प्रसारण का कार्य करती है। चूंकि ज्ञान एवं सूचना मानव के सर्वागीण विकास के लिए आवश्यक होते हैं अतः पुस्तकालय एवं अन्य संस्थाएं जो सूचना तथा ज्ञान की व्यवस्था तथा निष्पादन करती है, महत्वपूर्ण होती है।

शिक्षा के किसी भी युग या भविष्य में भी पुस्तकालय के बिना शिक्षा का अस्तित्व असंभव हैं। क्योंकि पुस्तकालय शिक्षा का मुख्य केंद्र है जहां दुनियाभर का ज्ञान निहित है समय के साथ, इसका महत्व सर्वोपरि हो गया है। पुस्तकालयों में देश का सुनहरा भविष्य तैयार होता है। विश्व में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा शिक्षा संस्थान वाला भारत देश है। अगर देश की शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना है, तो पहले पुस्तकालयों को बेहतर बनाना होगा। पुस्तकालय जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा है और यह विद्वानों के जीवन का एक अभिन्न अंग है, अध्ययन, अनुसंधान, किसी प्रश्न का हल ढूंढना, या विश्व के किसी भी प्रकार के विषयों पर नवनवीन ज्ञान प्राप्ति के लिए पुस्तकालय हमेशा हमारे साथ होते हैं। पुस्तकालय सूचना विज्ञान क्षेत्र में नितनए आविष्कार हो रहे हैं जो पाठकों के ज्ञान की तृष्णा को शांत करने के लिए तत्पर हैं, आज, पुस्तकालय अनुसंधान केंद्र के रूप में कार्य कर रहे हैं।

पारंपरिक पुस्तकालय से लेकर आज के वर्चुअल पुस्तकालय तक इस क्षेत्र के हर पहलू में बहुत सारे प्रगतिशील बदलाव हुए हैं, क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग पुस्तकालय होते हैं जैसे राष्ट्रीय पुस्तकालय, सार्वजनिक पुस्तकालय, , व्यावसाथिक पुस्तकालय, शैक्षिक पुस्तकालय, सरकारी पुस्तकालय इसके अलावा विषय विभाग के अनुसार विशेष पुस्तकालय हैं जैसे चिकित्सा पुस्तकालय, रेलवे पुस्तकालय, बैंक पुस्तकालय, जेल पुस्तकालय, विभागीय पुस्तकालय, विभिन्न मंत्रालयों के पुस्तकालय, प्रांतीय पुस्तकालय, जिला पुस्तकालय, कानून पुस्तकालय, समाचारपत्र पुस्तकालय, अन्ध पाठक हेतु पुस्तकालय, संगीत पुस्तकालय, बाल पुस्तकालय, सेना पुस्तकालय एवं मोबाइल (सचल) पुस्तकालय आदि ऐसे प्रत्येक क्षेत्र और विभाग का अपना पुस्तकालय होता है दुनिया में किसी भी देश के अत्यंत दुर्लभ ग्रंथों, ताम्रपत्र लेखन, फिल्मों, पत्रिकाओं, मानचित्र, हस्तलिखित पत्रों व ग्रंथों, ग्रामोफोन अभिलेख, दृश्य- श्रव्य अभिलेख, ऐतिहासिक दस्तावेज, विश्व के मशहूर हस्तियों के दस्तावेज जैसे डायरी, पत्र, वार्तालाप रिकॉर्ड, मुहर आदेशपत्र, विधिलिखित निर्णय और से करोड़ों वर्ष पुराने ऐसे अनेक अमूल्य साहित्य भी पुस्तकालय से हमें इंटरनेट द्वारा एक क्लिक पर तुरंत उपलब्ध हैं, इसके साथ ही दुनिया भर मेंस भी क्षेत्रों में विकसित साहित्य, घटित घटनाओं, अनुसंधान, पेटेंट ववर्तमान गतिविधियों का पूरा लेखा-जोखा पुस्तकालय द्वार उपलब्ध होता है। पाठकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए संसाधन उपलब्ध हो रहे हैं जो गुणवत्तापूर्ण ज्ञान के साथ ही पाठकों के समय की भी बचत करते हैं।

आज हम आधुनिक युग में जी रहे हैं, विश्व भर में पुस्तकालयों ने तेजी से प्रगति की है हमारे देश के आई आई टी आई आई एम एम्स जैसे केंद्रीय संस्थानों के पुस्तकालय या कुछ बड़े निजी संस्थानों के पुस्तकालय विकसित नजर आते हैं। लेकिन जब हम अपने आसपास के पुस्तकालयों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि पुस्तकालयों का विकास कहां है? देश के हजारों छोटे-बड़े पुस्तकालय अविकसित दिखते हैं जबकि देश का सबसे बड़ा पाठक वर्ग इन पुस्तकालयों से है, इन पुस्तकालयों में पाठकों के लिए अत्याधुनिक संसाधन देखना तो दूर आधारभूत पुस्तकालय सेवाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। कई पुस्तकालयों में साहित्य के नाम पर कुछ अखबार ही दिखाई देते हैं, सरकार ने हर क्षेत्र, विभाग, स्कुल, कॉलेज, संस्थान, समाज के लिए पुस्तकालय के महत्व को माना है लेकिन पुस्तकालय के विकास में हम अब भी बहुत पिछड़े हैं।

पुस्तकालय में पाठकों को केवल इस क्षेत्र का विशेषज्ञ ही बेहतर सेवाएं प्रदान कर सकता है लेकिन देश के कई राज्यों के स्कूलों, विभागों में बरसों से पुस्तकालय कर्मचारियों की भर्ती ही नहीं हुई है, कर्मचारी सेवानिवृत्त होते रहते हैं लेकिन नए कर्मचारी नहीं आते, कई स्थानों पर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के भरोसे पुस्तकालय चल रहे हैं, कुशल कर्मचारी वर्ग, अच्छे पाठ्य साहित्य सामग्री, सुविधाओं, पर्याप्त निधि का अभाव है, स्थानीय प्रशासन ( महानगर पालिका, नगरपालिका) के । ‘ सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थिति भी ऐसी ही है। पाठक बुनियादी सेवाओं से भी वंचित है। अन्य विषय क्षेत्रों केपुस्तकालयों की स्थिति भी चिंताजनक है। इस तरह के पुस्तकालयों में न ही अप-टू- डेट संसाधन हैं, और न ही पुस्तकालय नियम के हिसाब से काम किया जाता है, एक तरफ हम शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं और दूसरी तरफ पुस्तकालयों के विकास की अनदेखी कर रहे हैं।

देश के हजारों पुस्तकालय अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं अर्थात कई पुस्तकालय पर्याप्त निधि और बेहतर प्रबंधन की कमी के कारण खत्म होने के कगार पर हैं, वहां की बहुमूल्य पाठ्य साहित्य सामग्री खराब हो रही है, कई पुस्तकालयों में पाठकों के लिए पर्याप्त मेज, कुर्सियां, पंखे, रोशनी, पीने का पानी, शौचालय, बिजली भी नहीं है और पुस्तकालय भवन की खिड़कियां, दरवाजे, दीवारें कमजोर हो गई हैं। बारिश में छत से पानी टपकता है। पुस्तकालय भवन जर्जर हालत में है। यह स्थिति छोटे गांवों से लेकर बड़े शहरों तक हर जगह नजर आती है फिर भी ऐसे हालात में भी पाठक बड़ी संख्या में पुस्तकालयों का उपयोग कर रहे हैं, उज्वल भविष्य के लिए बेहतर पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं के कारण पुस्तकालय के प्रति युवाओं का झुकाव बढ़ा है। पुस्तकालय, पाठकों को स्कूल से जीवन के अंत तक साथ देते है और आज ऐसे कई पुस्तकालय खुद ही अपने अंतिम दिनों में पहुंच गए हैं।

यदि शिक्षा प्रणाली को उन्नत करना है, तो पुस्तकालयों के विकास पर ध्यान देना बहुत है। केंद्रीय, राज्य, स्थानीय प्रशासन को शिक्षा के अलावा अपने बजट में पुस्तकालय के लिए बड़ी मात्रा में वित्तीय सहायता प्रदान करना चाहिए। देश के सभी प्रकार के पुस्तकालयों में हर साल आवश्यकता अनुरूप कर्मचारी भर्ती होनी ही चाहिए जिस प्रकार नगर अब एक महानगर का रूप ले रहे हैं, व जनसंख्या के अनुसार, शहर बढ़ रहे हैं उस हिसाब से पुस्तकालयों की संख्या नहीं बढ़ रही है, पुस्तकालय में पढ़ने के लिए छात्र दूर-दूर से आते हैं, देश में पुस्तकालयों की बहुत कमी है अतः पुस्तकालयों का विस्तार किया जाना अत्यावश्यक हैं, आई आई एम / टी के पुस्तकालय के जैसे गुणवत्तापुर्ण पुस्तकालय हर शहर में चाहिए।

प्रत्येक जिले में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का पुस्तकालय होना चाहिए जिससे उस के सभी कस्बों और गांवों के सभी पुस्तकालय इससे पूर्णतया जुड़े हों ताकि हर गांव के पाठकों को गांव में ही अंतराष्ट्रीय पुस्तकालय की सुविधा संसाधन साझाकरण और इंटरनेट द्वारा मिल सके और हर गांव में, शहर के हर वार्ड में पुस्तकालयों की स्थापना होनी चाहिए मोबाइल पुस्तकालय को गति देनी होगी। बच्चों को स्कूली शिक्षा के शुरुआती दिनों से ही पुस्तकालय के महत्व को बतलाया जाना चाहिए, प्रत्येक विश्वविद्यालय वे पुस्तकालय को अंतरराष्ट्रीय मानक व पुस्तकालय बनाकर प्रत्येक विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को अन्तराष्ट्रीय मानक का पुस्तकालय बनाकर, विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक कॉलेज के पुस्तकालय से ऑनलाइन जोड़ा जाना चाहिए, प्रत्येक स्कूल और महाविद्यालय अन्य शैक्षिक विभाग के पुस्तकालय कोई पुस्तकालय बनाना होगा, जो अपने संस्था के साहित्य को ऑनलाइन अपलोड कर इसे डिजिटल पुस्तकालय का स्वरूप दें अपने संस्थान को ई- रिपॉजिटरी स्थापित करे, हमारे देश में राज्यों को स्कूल पुस्तकालयों और सार्वजनिक पुस्तकालयों की हालत गंभीर है इसे सुधारने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर पुस्तकालय सूचना विज्ञान के क्षेत्र में अनुभवी विशेषज्ञों की समितियों का गठन किया जाना चाहिए। यह समिति विभिन्न स्तरों के पुस्तकालयों का मूल्यांकन कर सरकार को इसके विकासात्मक पहलुओं पर सुझाव देगी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पुस्तकालय के निर्माण के लिए कार्यपद्धति पर नजर रखेगी।

आज के वैश्विक समाज में पुस्तकालय एक ऐसी सामाजिक संस्था के रूप में कार्य कर रही है जहाँ ज्ञान एवं सूचनाप्रद सामग्री को एक व्यवस्थित ढंग से रखा जाता है ताकि व्यक्ति द्वारा इसका अधिकतम उपयोग किया जा सके। प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली ने भी जनशिक्षा, प्रौढशिक्षा और पुस्तकालय जनित शिक्षा पर बल देकर भी पुस्तकालयों की स्थापना एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह एक ऐसी संस्था है जो समाज के सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के पाठ्य एवं अन्य सूचना सामग्री उपलब्ध कराता है जिससे उनका शैक्षणिक एवं नैतिक विकास हो सके। पुस्तकालय और समाज का एक घनिष्ठ संबंध है। पुस्तकालय समाज के लिए है और समाज ही पुस्तकालयों की स्थापना एवं उनका विकास करता है। “पुस्तकालय वर्धनशील संस्था है”, जिसका विकास समाज में ही संभव है।

समाज की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का कार्य पुस्तकालय द्वारा ही किया जाता है। यह मानव जाति की सांस्कृतिक धरोहर एवं उपलब्धियों को सुरक्षित रखता है जो वस्तुतः पुस्तकों तथा अन्य प्रलेखों में निहित होती है। पुस्तकालय द्वारा व्यक्तियों को उन पुस्तकों को सुलभ कराया जाता है जो उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा की अभिव्यक्ति में सहायक सिद्ध होता है और उनमें सौन्दर्य बोध और मूल्यांकन की क्षमता को विकसित करता है। इसके द्वारा अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है जो समुदाय के सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध और सशक्त बनाता है। औपचारिक शिक्षा के लिए तो समाज में अनेक संस्थाएँ रहती है जबकि अनौपचारिक शिक्षा सिर्फ पुस्तकालय संस्था द्वारा ही संभव है। सार्वजनिक पुस्तकालय व्यक्तियों के बीच सामुदायिक भावना को भी जागृत करता है एक ऐसा स्थान होता है जहाँ सभी वर्गों के लोग एक साथ बैठकर पठन- पाठन करते हैं जिससे उनके बीच स्वतः सामाजिक संबंध विकसित हो जाते हैं।

सामाजिक अनुसंधान द्वारा ही आधुनिक समाज में ज्ञान की खोज और सत्यता की परख संभव है क्योंकि हमारी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और जीवन स्तर की प्रगति इसी पर निर्भर करती है। पुस्तकालय सामाजिक अनुसंधान के लिए उपयुक्त वांछित सामग्री एवं संसाधन उपलब्ध कराती है। वर्तमान युग में सामाजिक शोधकर्ता, प्रबंधन, वैज्ञानिक तथा तकनीकि शोधकर्ता अपने शोध कार्य को पुस्तकालयों के माध्यम से ही पूरा करता है। समय-समय पर शोधकर्ताओं द्वारा किये एक शोध प्रतिवेदन अन्य प्रकार के ज्ञान को सही ढंग से व्यवस्थित कर पुस्तकालय नए शोधकर्ता को उपलब्ध कराते हैं क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर समय-समय पर अध्ययन विषय से संबंधित शोध- कर्ताओं को अनुक्रमणिकाओं, सार संक्षेप, संदर्भ ग्रंथ सूचियों, दुर्लभ पुस्तकों और समय-समय पर होने वाले शोध प्रतिवेदनों की आवश्यकताएं होती है और यह सामग्री उन्हें केवल पुस्तकालयों में ही उपलब्ध हो सकती है अतः सामाजिक शोधकर्ताओं के लिए पुस्तकालय एक प्रयोगशाला के रूप में कार्य करती है।

नीरज कृष्ण

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