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अगले जन्म मोहे कुत्ता ही कीजो।

आलेख

अगले जन्म मोहे कुत्ता ही कीजो।

व्यंग्य

✍राजीव_नयन_पाण्डेय

छुट्टियों में कुछ न करने की सोच सोफे पर असामान्य ढंग से बैठ टेलिविजन को देखना शुरू किये।वैसे भी सोफे पर केवल मेहमान ही ठीक व सलीके से बैठते है बाकी तो.. बस वैसे ही मैं भी बैठा।

खैर टेलिविजन पर सप्ताहिक देश~प्रेम वाला दिखावा खत्म था। देश प्रेम वो ठाकुर भानू प्रताप की खीर तो है नहीं कि जब मन तब परोस दिया…और वो खत्म क्यो न हो आखिर अकेले “ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह” कब तक गैंडा स्वामी की मिसाईलो से फ्यूज निकाल कर “तिरंगा” लहराते रहेंगे और दादा ठाकुर के तिलंगे #डाॅ डेन से बदला लेते रहेंगे।

बस यू ही रिमोंट से में आगे पीछे चैनलों को देखने की शुरूआत किया तो.. “मोती” आगे आगे और “बादल” पीछे पीछे और बादल के पीछे “मर्द” और ये वही मर्द है जिसे देखा देखी बचपन में मैने भी अपने सीने पर लिखा था “मर्द” दिग़र यह कि वो काला स्कैच पेन से ही था.।
अगले चैनल पर “मोती यानी ब्राऊनी” राम बाबू यानि जैकी श्राफ के हत्यारे अत्याचारी ठाकुर विजय सिंह यानि अमरीशपुरी को कुत्ते की मौत मार रहा था।
कुछ देर देखने के बाद अगले चैनल में “बोल राधा बोल” में “मोंटी बैंगेंजा और किशन मल्होत्रा के बीच हीरो बने मोती को देख।”

गजब का संयोग का एहसास हुआ माने सारे ग्रह~नक्षत्र सब मिल कर कुछ एहसास दिलाना चाह रहे हो.. हर चैनल पर “कुत्तो की अमर कहानियाॅ” ही चल रही थी.
कही पर “पाॅमेरियन टफी” पूछ रहे थे कि “हम_आप_के_है_कौन” जिनके बिना वो फिल्म ही अधूरी थी काहे का सलमान और काहे की माधुरी।

जिस चैनल पर “कुत्ते” की फिल्मे नहीं आ रही थी वहाॅ कुत्तो के प्रयोग करने वाले “आईटम” का विज्ञापन आ रहा था. कही उनके शैम्पू का तो कही नये स्वादिष्ट स्वाद वाले पिडिग्री का। मगर यह नही समझ आया कि आखिर पिडिग्रि के स्वाद की शिकायत की किसने ?

इतनी देर से कुत्ता और कुत्ते की कहानियाँ देख मन ही मन सोचने लगा कि क्या लाजवाब किस्मत होती है कुत्तो की ना पढाई की फिक्र, ना ऑफिस जाने की चिंता ना कैरियर की चिंता , ना लोन का झंझट और ना ही पडोसियों की काॅय कीच।

वाकई किसी कुत्ते की जिंदगी के बारे में सोच के देखे तो यही दिखता है कि कितना सरल जीवन है कुत्तो का…। बस कुत्ता ही हैं जिसके खाना पाने के लिए …कुछ नहीं करना होता है.. वही मुर्गी को अंडा, गाय को दूध, तोता को रटना होता है।

कुत्तो का तो जब मन तब सो जाते है, तब मन उठ जाते है..ना भाषा की चिंता ना परिभाषा की. ना अंग्रेजी की चिंता और ना ही मंडेरिन, ना स्पेनिश की… बोलना तो बस एक ही भाषा… भौ भौ .. भौ।

ना जाति की ना समाज की ना ऊॅच की ना नीच की… बस अपनी गली में शेर बनना है यही बहुत है…जैसे कुछ पुरूष बनते है घर में बीबी के सामने और बाहर भींगी बिल्ली।

ना बीपी की ना सुगर की, ना कोरोना की ना फंगश की..ना शादी की चिंता , ना दहेज की चिंता और ना मेहमान नवाजी की चिंता…और तो और ना गोरा होने की और ना ही काला होने की… ना गंजा होने की और ना बालो पर बैट्री फोड़ कर काला करने की .. किसी भी तरह की कोई चिंता ही नहीं.. बस आराम से कुत्ता बन कुत्ते की तरह रहना.और तो और कई बार ऐसी ऐसी जगह बैठने का मौका.. जो शायद किसी ने सोचा हो.।

वैसे भी कुत्तो की इज्जत शादी शुदा पुरूषो से ज्यादा.. विशेष कर जिस घर में कुत्ते हो तो..कुत्तो के लिए अलग से कमरा… अलग से नर्म बिछौना….. “टाॅमी सैक हैंड”… यानि इज्जत से…”टाॅमी डोंट बार्क” .. भले ही पतिदेव से देशज भदेह भाषा में बात चीत हो।

कई शादी शुदा दोस्तो की जिंदगी कुत्तो सी देख मन तो यही कहता है कि कुत्ते पना से बेहतर तो कुत्ता ही बनना सही है। कुत्ते की जिंदगी, उनकी जिम्मेदारारियाॅ व दायित्व को देख मन में स्वतः ही ख्याल आने लगे कि हे ईश्वर अगले जन्म मोहे कुत्ता ही किजो. बस काम के नाम पर खाना खुजाना और बत्ती बुझाना…और बोलना बस भौं भौं भौं भौं भौं… गुर्र गुर्र..भौं भौं …..

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