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अनूठी परंपरा “धनोळी” पूजन

आलेख

अनूठी परंपरा “धनोळी” पूजन

कविता मैठाणी भट्ट

महा शिवरात्रि (शिव पार्वती का विवाह दिवस) की शाम को सभी घरों में पंय्यां की टहनियों से एक डोली बनाकर इस पर बुरांश के फूल लगाये जाते हैं। इस डोली को धनोळी कहा जाता है।

भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती से केदारघाटी का गहरा लगाव और विशेष संबंध रहा है। यहां शिव पार्वती को ईश्वर कम और अपने परिवार का सदस्य अधिक समझा जाता है। बचपन से देखती आयी हूं कितने सहज, सरल ,भोलेपन से बाबा केदार , मध्यमहेश्वर ,तुंगनाथ से केदारघाटी वासी अपने दुख दर्द परेशानियां साझा करते हैं। शिकायत करते हैं । ये सब तो छोड़िये,डांटते भी हैं।


महादेव पार्वती से केदारघाटी के इसी खूबसूरत संबंध को दर्शाती एक अनूठी परंपरा है धनोळी_पूजन।
महा शिवरात्रि (शिव पार्वती का विवाह दिवस) की शाम को सभी घरों में पंय्यां की टहनियों से एक डोली बनाकर इस पर बुरांश के फूल लगाये जाते हैं। इस डोली को ही धनोळी कहा जाता है। मिट्टी से शिव , पार्वती और गणेश बनाये जाते हैं।उन पर जौ के बीज चिपकाये जाते हैं । मरछा के लंय्यां और भूने हुए भट्ट , धूप दीप से मिट्टी से बनाये गये शिव, पार्वती ,गणेश और धनोळी की पूजा करके,सबकी सुख समृद्धि की कामना करते हुए धनोळी को घर के बाहर टांग दिया जाता है। सुबह इन तीनों लिंग स्वरूपों को धारे के मूलस्रोत( मुळ्याण) में विसर्जित किया जाता है।
भले ही पलायन की मार झेलते गांवों में अब बहुत कम लोग ही रह गये हैं किंतु भगवान शिव और पार्वती से केदारघाटी के स्नेह व संबंध को दर्शाती यह परंपरा आज भी गांवों में जीवित है।
मेरे मायके की कुछ तस्वीरें जहां बड़े प्रेम और श्रद्धा से धनोळी पूजन किया जाता है।

कविता मैठाणी भट्ट
(कवियित्री, गायिका,शिक्षिका)
उखीमठ(रुद्रप्रयाग)


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