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राज्य के विभिन्न जन संगठनों और बुद्धिजीवियों ने आवाज़ उठाई – नफरत नहीं, रोज़गार दो!

उत्तराखण्ड

राज्य के विभिन्न जन संगठनों और बुद्धिजीवियों ने आवाज़ उठाई – नफरत नहीं, रोज़गार दो!

संवादसूत्र देहरादून: आज देहरादून, टिहरी, चमियाला, अल्मोड़ा, रामनगर, रामगढ़ और राज्य के अन्य जगहों में सैकड़ों लोगों ने धरना दिया। “नफरत नहीं, रोज़गार दो!” के नारा के साथ उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि जब राज्य में बेरोज़गारी और गरीबी बढ़ोतरी पर है, इन मूल समस्याओं पर युद्धस्तर पर काम करने के बजाय नफरत और हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है।

कुछ दिन पहले राज्य के विभिन्न वरिष्ठ आंदोलनकारियों और बुद्धिजीवियों ने खुल्ला खत लिख कर उत्तराखंड राज्य में गंभीर स्थिति बनने के बारे में आवाज़ उठाया था। उनके आव्हान पर आज के धरना को आयोजित किया गया था।

धरना में वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड की जनता आज महंगाई, बेरोज़गारी, और प्राकृतिक आपदाओं से कराह रही है। भू कानून को कमजोर कर खेती की जमीन माफिया और कॉर्पाेरेट के लिए खोल दी गई है। महामारी में हज़ारों लोगों ने अपनी जान दी और लाखों लोग बेरोजगार हो गये। वन अधिकार कानून का उल्लंघन कर प्राकृतिक संसाधन बेचे जा रहे हैं । श्रम कानूनों को बदल कर मज़दूरों के हक खत्म किये जा रहे हैं।

लेकिन पिछले कुछ समय से एक षड़यंत्र चल रहा है कि सारे मूल मुद्दों को एक किनारे कर लोगों के बीच नफरत फैलाया जाये। करोड़ों रुपये खर्च कर हर रोज़ हर व्यक्ति के पास फेसबुक, व्हाट्सप्प जैसे सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा ऐसे ही खबरें पहुँचायी जा रही हैं। यह भी सन्देश दिया जा रहा है कि हिंसा भी मान्य है। सांप्रदायिक धमकी, मार पीट, भीड़ की हिंसा के वीडियो व्यापक रूप से शेयर किये जा रहे हैं और इस हिंसा को महिमामंडित किया जा रहा है।

वक्ताओं ने कहा कि आज राज्य के सामने दो रास्ते हैं। एक रास्ते पर हम नफरत में दुब कर जनता के हकों का हनन, हिंसा और गुंडागर्दी, महामारी और आपदाओं में लोगों के मरने और बर्बाद होने पर चुप बैठे रहें। दूसरा विकल्प यह है कि हम रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और असली लोकतंत्र के लिए लड़ें।

धरना द्वारा हिमाचल की तरह भू कानून; मनरेगा के दिन 200 किया जाये और शहरों में भी रोज़गार गारंटी लागु किया जाये;
खाली पड़े सरकारी पदों को तुरंत भरें; वन अधिकार कानून को पूरी तरह लागू कर स्थानीय संसाधनों के आधार पर हर गाँव में गांववासियों को रोज़गार देने के लिए योजना बनाये; मज़दूरों के लिए बनाये गए कल्याणकारी योजनाओं को पूरी तरह से अमल किया जाये; इनकम टैक्स भरने वाले परिवारों को छोड़ कर सारी महिलाओं को आर्थिक सहायता दिया जाये और अगले छः महीने के लिए बिजली और पानी के बिलों को माफ किये जाये; उच्चतम न्यायालय के 29 मई के आदेश के अनुसार हर परिवार को मुफ्त राशन मिलें; 4 अक्टूबर 2021 को रासुका को ले कर आदेश लिया जाये; जुलाई 2018 के उच्चतम न्यायलय के आदेश के अनुसार, अगर कहीं पर भी हिंसा होती है या नफरत को बढ़ावा देने का बयान दिया जाता है, उसके खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही तुरंत करें; इन मांगों को उठाया गया।

धरने में उत्तराखंड लोक वाहिनी के राजीव लोचन साह; उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट और पद्मा घोष; चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, विनोद बडोनी, सुनीता देवी, अशोक कुमार, सुवा लाल, प्रभु पंडित, पप्पू, अशोक कुमार; दून नागरिक राहत समिति के भार्गव चंदोला और अन्य संगठनों के लोगों के साथ सैकड़ों लोग शामिल रहे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता ईश्वर पाल सिंह भी शामिल रहे।

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