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प्रेम में ये कैसी श्रद्धा…

आलेख

प्रेम में ये कैसी श्रद्धा…

नीरज कृष्ण

आसान शब्दों में कहें तो लव जिहाद या जिहाद मुस्लिम पुरुषों द्वारा गैर- मुस्लिम समुदायों : से जुड़ी महिलाओं को इस्लाम धर्म में परिवर्तित कराने के लिए प्रेम का ढोंग रचना है। यदि मुस्लिम लड़का हिन्दू लड़की से करेगा तो हिन्दू लड़की ही मारी जाएगी और हिन्दू लड़का यदि मुस्लिम लड़की से प्यार करेगा, तो या तो हिन्दू लड़का मारा जाएगा यह एकतरफा रास्ता क्यों हैं ?

बाबू जी धीरे चलना, प्यार में जरा संभलना, बड़े धोखे हैं इस राह में पचास की दौर की फिल्म आर-पार का गाने की तरह आज भी प्यार में धोखे की कहानी लगातार जारी है। प्यार एक सुखद एहसास होता है। प्यार में रहने वाला कभी हिंसक नहीं हो सकता। प्यार तो हिंसक व्यक्ति को भी सामान्य इंसान बना देता है। हवस और प्यार में फर्क होता है। लेकिन नई पीढ़ी इस फर्क को समझ नहीं पाती और इसकी वजह से कई बार जान देकर उस नासमझी की कीमत चुकानी पड़ती है।

लव जिहाद दो शब्दों से मिलकर बना है। अंग्रेजी भाषा का शब्द लव यानि प्यार मोहब्बत या इश्क और अरबी भाषा का शब्द जिहाद जिसका मतलब होता है किसी मकसद को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देना। जब एक धर्म विशेष को मानने वाले दूसरे धर्म की लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उस लड़की का धर्म परिवर्तन करवा देते हैं तो इस पूरी प्रक्रिया को लव जिहाद का नाम दिया जाता है। आसान शब्दों में कहें तो लव जिहाद या जिहाद मुस्लिम पुरुषों द्वारा गैर-मुस्लिम समुदाय से जुड़ी महिलाओं को इस्लाम धर्म में परिवर्तित कराने के लिए प्रेम का ढोंग रचना है।

यदि मुस्लिम लड़का हिन्दू लड़की से प्यार करेगा तो हिन्दू लड़की ही मारी जाएगी और हिन्दू लड़का यदि मुस्लिम लड़की से प्यार करेगा, तो या तो हिन्दू लड़का मारा जाएगा। यह एकतरफा रास्ता क्यों हैं? यह जानें इतनी सस्ती क्यों हैं? क्यों ऐसा होता है कि कोई भी लड़का कोई भी रूप धरकर लड़की को बस इस्लाम में मतांतरित कर देना चाहता है?

उत्तरप्रदेश सरकार विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020′ लेकर आई है। इस अध्यादेश की धारा-3 में झूठ, छल-प्रपंच, कपटपूर्ण साधन, प्रलोभन देकर कराए जा रहे धर्म परिवर्तन को गैर कानूनी घोषित किया गया है। उल्लेखनीय है कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी अन्य उपासना- पद्धत्ति का चयन करता है तो उस पर इस क़ानून में कोई आपत्ति नहीं व्यक्त की गई है। सर्वविदित है कि धर्म परिवर्तन की घटनाओं में सक्रिय एवं संलिप्त विदेशी चंदे से चलने वाली धार्मिक संस्थाएँ आर्थिक दृष्टि से कमजोर एवं वंचित समाज को ही अपना आसान शिकार बनाती हैं। इसलिए इस क़ानून के अंतर्गत महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मामलों में धर्म परिवर्तन पर अधिक कठोर दंड के प्रावधान किए गए हैं। यह समाज के कमजोर एवं वंचित वर्ग की सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रथमिकता एवं प्रतिबद्धता का परिचायक है।

पिछले कुछ दशकों में धार्मिक पहचान छिपाकर अंतधार्मिक विवाहों के अनगिनत मामले शासन- प्रशासन के संज्ञान में आते रहे हैं। इसके कारण समाजिक सौहार्द का वातावरण बिगड़ता रहा है। सांप्रदायिक हिंसा की संभावनाएं पैदा होती रही हैं, न्यायालयों के समक्ष विधिसंगत जटिलताएँ खड़ी होती रही हैं। इसलिए इस अध्यादेश में इन समस्याओं के समाधान के लिए भी ठोस एवं निर्णायक पहल की गई है। इसकी धारा-6 के अंतर्गत पीड़ित पक्ष न्यायालय को प्रार्थना पत्र देकर ऐसे विवाह को निरस्त करा सकता है। और यह अधिकार सभी धर्मों के स्त्री-पुरुषों को समान रूप से दिया गया है। भय, धोखा, प्रलोभन या धमकी जैसे तत्त्वों को समाप्त करने के लिए इसकी धारा-8 में निर्देशित किया गया है कि धर्म परिवर्तन करने वाले हर व्यक्ति को कम से कम 60 दिन पूर्व जिला न्यायाधीश को सूचना देनी होगी। उसमें उसे शपथपत्र देकर यह घोषणा करनी पड़ेगी कि वह बिना किसी बाहरी दबाव के धर्म परिवर्तन कर रहा है। जिला न्यायाधीश प्रस्तुत साक्ष्यों एवं प्रमाणों के आधार पर यह सुनिश्चित कर सकेंगें कि धर्म परिवर्तन स्वेच्छा एवं स्वतंत्र सहमति से किया गया है।

लव-जिहाद का मामला सबसे पहले दिग्गज वामपंथी नेता वी. एस अच्युतानंदन ने आज से दस वर्ष पूर्व उठाया था। फिर केरल के ही कॉंग्रेसी मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने उसकी पुष्टि करते हुए 25 जून, 2012 को विधानसभा में बताया कि गत छह वर्षों में प्रदेश की 2,667 लड़कियों को इस्लाम में धर्मातरित कराया गया। बल्कि केरल के ही उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के टी शंकरन ने 2009 में लव-जिहाद पर सुनवाई करते हुए यह माना कि झूठी मुहब्बत के जाल में फँसाकर धर्मातरण का खेल केरल में संगठित और सुनियोजित रूप से वर्षों से चलता रहा है।

कुछेक राजनैतिक दलों के नेताओं ने लव जिहाद के विरुद्ध कानून लाए जाने का विरोध किया है। और उससे भी अधिक आश्चर्य इस बात का है इस देश में बुद्धिजीवी एवं सेकुलर समझा जाने वाला एक ऐसा धड़ा है जो यों तो ऐसे मामलों में तटस्थ दिखने का अभिनय करता है पर जैसे ही कानून की बात सुनते ही इन्हें सेकुलरिज्म की सुध हो आती है, संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार याद आने लगते हैं, निजता के सम्मान सरोकार की स्मृतियाँ जगने लगती हैं। क़ानून लाने की सरकार की घोषणा सुनते ही मौन साधने की कला में माहिर ये तबका पूरी ताकत से मुखर हो उठता है। जिन्हें लव जिहाद के तमाम मामलों को देखकर भी कोई साजिश नहीं नजर आती, कमाल यह कि उन्हें सरकार की मंशा में राजनीति जरूर नजर आने लगती है।

फिर वे अपने तरकश से अजब-गजब तर्कों के तीर निकालना प्रारंभ कर देते हैं। मसलन- कानून बनाने से क्या होगा? क्या पूर्व में बने कानूनों से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध कम हो गए, जो अब हो जाएँगे? क्या अन्य किसी कारण से महिलाओं पर जुल्म ज्यादती नहीं होती? क्या अब सरकारें दिलों पर भी पहरे बिठाएगी? क्या प्यार को भी मजहब की सरहदों में बाँधना उपयुक्त होगा? क्या दो वयस्क लोगों के निजी मामलों में सरकार का हस्तक्षेप उचित होगा, आदि-आदि?

क्या एक चुनी हुई सरकार का अपने राज्य की बहन-बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु पहल करना उचित और स्वागत योग्य कदम नहीं है? क्या लव-जिहाद के कारण उत्पन्न विवाद और विभाजन के कारणों को दूर कर उनके समाधान के लिए निर्णायक पहल और प्रयास करना सरकार का उत्तरदायित्व नहीं है? क्या क्षम वेश में बदले हुए नाम, पहचान, वेश-भूषा, चाल, चेहरा, प्रतीकों के साथ किसी को प्रेमजाल में फँसाना धूर्त एवं अनैतिक चलन नहीं? रूप बदलने में माहिर इन मारीचों का सच सामने आने पर क्या ऐसे प्रेम में पड़ी हुई युवतियाँ या विवाहित स्त्रियों स्वयं को ठगी – छली महसूस नहीं करती?

क्या ऐसी स्थितियों में उन्हें अपने सपनों का घरौंदा टूटा-बिखरा नहीं प्रतीत होता? क्या छल-क्षम की शिकार ऐसी विवाहित या अविवाहित स्त्रियों को न्याय आधारित गरिमायुक्त जीवन जीने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए? और उससे भी अच्छा क्या यह नहीं होगा कि वे प्रपंचों एवं वंचनाओं की शिकार ही न हों, अतः ऐसी पहल एवं प्रयासों में क्या बुराई है?

विडंबना ही है कि एक ऐसे दौर में जबकि तमाम बुद्धिजीवी बहुसंख्यक समाज की स्त्रियों पर हो रहे कथित अत्याचार, असमानता, भेद-भाव आदि पर तथाकथित एक्टिविस्टों के स्वर में स्वर मिलाते हॉ, स्त्री सशक्तिकरण, स्त्री-स्वतंत्रता, स्त्री अधिकारों आदि की बातें बड़े जोर-शोर से करते हो, प्रायः अंतर्धार्मिक विवाहों के संदर्भ में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार या स्त्रियों के जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने को लेकर मौन साध लेते हैं। और तो और नारीवादियों के मुख से भी इस मुद्दे पर विरोध का एक स्वर नहीं निकलता !

चूँकि अंतर्धार्मिक सभी विवाहों में जोर धर्म बदलवाने पर ही होता है, इसलिए इसे लव जिहाद कहना मर्तथा रचित एवं तर्कसंगत है। जैसे सशस्त्र जिटात भाज परी तलिया के लिए एक वैश्विक समस्या है वैसे ही लव जिहाद इस पर अंकुश लगाना सरकारों की जवाबदेही भी है और जिम्मेदारी भी ।

ध्यान रहे कि मर्द, औरत की आजादी नहीं बल्कि औरत तक पहुंचने की आजादी चाहता है। आजकल औरत की आजादी के अच्छे-अच्छे नारे बहुत लग रहे हैं। पश्चिम की अंधाधुन नकल की जा रही है। जीनत छुपाने वाला बुर्का भी चला गया, बुर्का दकियानूसी चीज करार हो गया, फिर चादर आई वो भी चली गई। दुपट्टा भी सर से ठुलक कर गले में आ गिरा और आहिस्ता आहिस्ता ये भी गायब हो गया। परिधानों ने एक नया रूप धारण किया। लिबास चुस्त और छोटा होता चला गया। आखिर इस सब फैशन का मकसद क्या है? परिणाम, फिर मर्द भी ऐसी लड़कियों के पीछे लग जाते हैं। और इन्हे हासिल कर के इनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं।

श्रद्धा और उसके जैसी हजारों लड़कियां जो इस मकड़जाल में फंस कर साजिश का शिकार हो रही हैं। वह उस व्यक्ति से, जिसे वह अपने जान से ज्यादा चाहती होंगी, जिसके अंधे प्रेम में रीझ कर अपने माँ-बाप और घरों को छोड़ कर उने साथ लीव इन रिलेशन में रहने लगती है, यही न कहती होंगी कि तुम अब तक मेरे जिस्म से खेलते रहे हो, शादी का वादा किया अब तुम शादी क्यों नहीं करते?

और वह बेगैरत इंसान मुस्कुरा कर सोचता है कि जो मेरे पास आ सकती है वो पता नहीं किस किस के पास गई होगी? ये सोच ही अय्याश मर्दों की मंशा रहती है। ऐसे मर्द जिस्म के भूखे होते हैं, ऐसे इंसान को हैवान बनने में देर नहीं लगती लेकिन इसे ऐसा बनने का मौका औरत देती है। और समझती है कि मेरी इज्जत का रखवाला बनेगा। लेकिन वो ये नहीं सोचती कि जब वो खुद अपनी इज्जत की हिफाजत नहीं कर सकी तो गैर कैसे करेगा? प्रेम के इस दिलकश खेल से बचें हर मर्द, मर्द नहीं होता शैतान भी होते हैं। अपनी इज्जत करना सीखें।

आज पश्चिम की महिलायें आज़ाद हो कर ज्यादा परेशान हो गई क्योंकि मर्द के नजरिए में अब तक कोई बदलाव नहीं आया है, चाहे वह कितना ही शिक्षित क्यूँ न हो गया हो। महिलाओं ने आजादी हासिल कर के बहुत कुछ गवां दिया। और इसके बदले बहुत ही कम फायदा हासिल किया। पुरुष और ज्यादा आजाद हो गया। लेकिन नतीजा बेहद भयानक निकला दोनों अपना सुकून गंवा बैठे। औरत मर्दों के हाथों में खिलौना बन कर रह गई औरत और मर्द की इस आज़ादी की सजा बच्चों को भुगतनी पड़ती है। मां एक होती है तो बाप कोई और होता है। यही कारण है कि आज पश्चिम में बच्चे न तो मां की कद्र करते है न बाप की।

वक्त के साथ जरूर बदलाव आने ही चाहिए। वक्त के हिसाब से अपडेट ( आधुनिक) रहना चाहिए। यह जुमला बड़ा अच्छा है, लेकिन हम से इसके निहितार्थ को समझने में भूल हुई है। हमारे आधुनिक होने का यह अर्थ हरगिज नही कि हम अपनी संस्कृति को ही भूल जाएं, अपने एटिट्यूड में ऐसे खोए रहें कि आस-पास के अपनो तक से बेखबर हो जाएं। अगर अपडेट ही रहना है तो अपडेट रहिए तेजी से बदलते हालात को समझने में, अपडेट रहिए तेजी से बदलते शिक्षा पद्धति के सिलसिले में, अपडेट रहिए बच्चों के मनोविज्ञान / अभिरुचियों को समझने में, अपडेट रहिए उनकी शिक्षा के तरीक़ों को जानने में, लेकिन बात जहां अपनी परंपराओं, अच्छी आदतों संबंधों और जीवन शैली की आए तो इन चीज़ों में हम जितनी कट्टरता से अपनी बुनियादों से जुड़े होंगे, हम उतने ही कामयाब होंगे।

सआदत हसन मंटो की पंक्ति को उद्धृत करना समीचीन होगा हम औरत उसी को समझते हैं, जो हमारे घर की हो। बाकि हमरे लिए कोई औरत नहीं होती, बस गोश्त की दुकान होती है और हम इस दुकान के बाहर खड़े कुते की तरह होते हैं, जिसकी हवस जदा नजरें हमेशा गोश्त पर टिकी रहती है।

आफताब जिन हाथों से कभी श्रद्धा को गुलाब के फूल दिया करता था, प्यार से उसके गाल सहलाया करता था, उन्हीं हाथों से उसने आरी पकड़ी और उसके बेजान शरीर के 30 से 40 टुकड़े कर दिए। इस जघन्य कृत्य से हम सभी को सबक लेने की जरूरत है। रिश्तों में ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

श्रद्धा की हत्या न ही पहली थी और न ही आख़िरी । यह हिन्दू लड़कियों के साथ होने वाला लगातार षड्यंत्र हैं, और साथ ही उन लड़कियों की भी स्थिति अच्छी नहीं है जो मुस्लिम हैं और अपने अनुसार जीवनसाथी चुनना चाहती हैं। यह मजहबी कट्टरता के वर्चस्व की जिद्द है, जिसका शिकार हिन्दू लड़कियां और कुछ मुस्लिम लड़कियां भी हो रही हैं।

नीरज कृष्ण

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