आलेख
“एक वेलेंटाइन डे ऐसा भी…”
लघुकथा
(प्रभात तिवारी)
मालती आफिस में बाॅस के केबिन से बाहर निकालते हुए बहूत हो गया अब नही मैं यहां ज्यादा दिनों तक काम नही करने वाली।
यह बात उसके साथ काम करने वाली और उसकी सहेली रमा ने सुन ली।
रमा : क्या बड़बड़ कर रही हो।
मालती: हद हो गई आज चार महीने हो गए मुझे इस आफिस में आज बाॅस बोल रहे है मेरे सामने वाली केबिन से अपना काम किया करो, जिससे कि मैं हमेशा उनकी नजर की शिकार होती रहूं।
रमा : उन्होंने कुछ कहा तो नही ??
मालती: मेरे परिवार की सारी जानकारी ले रहे थे कौन -कौन है घर में मैं खाली समय में क्या करती हुं। उन्हें इस बात से क्या लेना-देना।
रमा: सभी मर्द एक जैसे रहते है।
मालती: बहुत हो गया अब।
मालती रमा से: दुसरे दिन पूछ रहे थे जनाब
कि चौदह तारीख को क्या प्रोग्राम है
आफिस के बाद घर रहोगी या बाहर का प्रोग्राम बनाया है।
रमा :चौदह तारीख को ऐसा क्या है?
मालती झल्लाते हुए ,अरे वेलेंटाइन डे और क्या।
रमा :तो महाशय को इश्क का बुखार चढ़ रहा है।
मालती : लग तो ऐसा ही रहा है।
फिर चौदह तारीख की शाम एक कार मालती के घर के सामने रूकती है। मालती अरे यह तो यहां भी आ पहुंचे , भगवान मेरे पति भी आते होंगे मैं कैसे करूं अब घर में सास ससुर भी है।
अरे इनके साथ तो इनकी पत्नी भी और लड़का भी दिख रहा है।
बाॅस : अरे भाई मालती अंदर आने नही कहोगी,
मालती : जी जी आईए।
बाॅस : ऐसा है मालती मेरी पत्नी को एक ननद और मेरे बेटे को एक बुआ की कमी बहुत दिनों से खल रही है मेरी कलाई भी पिछले चार सालों से सुनी हो गई है।
मैंने जब से तुम्हें देखा मेरी छोटी बहन ही तुम में दिखाई दे रही है उसका एक अपघात में देहांत हो गया था।
आज चौदह तारीख को उसका जन्मदिन है यह अलग बात है कि आज वेलेंटाइन डे भी दुनिया मनाती है।
मैंने सोचा इसी दिन मैं तुमको अपने पत्नी की ननद और बेटे की बुआ बनने के लिए और मेरी सुनी कलाई में राखी बांधने के लिए सिर्फ आग्रह कर सकता हूं।
अगर तुम्हें ऐतराज न हो तो सभी के लिए यह वेलेंटाइन डे का तोहफा देना तुम्हारे हाथ में है।
मालती स्तब्ध खड़ी अपनी सोच को गलत होती हुई देखती है।
पीछे से मालती के पति सास-ससुर भी हसंते हुए आते है बोलते हैं
ऐसा वेलेंटाइन डे हम जिंदगी में भूल नही सकते।
मालती रमा को फोन लगाती है………..____________________
प्रभात तिवारी
नागपुर