कहानी
झाड़-फूंक
“लघुकथा“
निशा गुप्ता
दुलारी डर कर चिल्ला उठी नहीं माँ कुछ नहीं हुआ मुझे मैं ठीक हूँ मुझे कोई झाड़फूंक नहीं करवाना है माँ, ये सामान्य बुखार है इस बार थोड़ा ज्यादा समय ले रहा है ठीक होने में आप समझती क्यों नहीं ? दुलारी ने डर कर माँ के पीछे छुपते हुए काले मुसन्ड झूमते बाबा को देख कर कहा ।
लाल लाल आँखे कर उसने खाने वाली आँखों से दुलारी को देखते हुए उसके बाल पकड़ धुँए की ओर खींच उसका मुँह धुनि में घुसा दिया ।
दुलारी को लगा उसका दम निकल जाएगा उसने पूरा दम लगा कर अपने शरीर को ऊपर की ओर धक्का दिया सामने पड़े गंडासे पर उसकी निगाह गई उसने झटके से गंडासा उठा बाबा पर तान दिया और चिल्ला कर बोली खबरदार अगर आगे बढ़ा कोई भी, बाबा की गर्दन अलग कर दूँगी, सारी खड़ी बाहर जनता दुलारी का रूप देख चकित हो गई और अंधविश्वास की पट्टी में छेद भी साफ दिख रहा था जब वो दुलारी से अपने ही प्राणों की भीख माँगता दिखा ।
बाबा को घसीटते हुए दुलारी गंडासा लहराती चल पड़ी पुलिस स्टेशन की ओर ।
निशाअतुल्य