कविता
“डोली”
निशा गुप्ता
सपनो की डोली सजी
लेकर चले कहार ।
तन मन डूबा प्रेम में
उतरी साजन द्वार ।।
ये घर अब अपना लगे
सपने सजे हजार ।
अपना सब कुछ वार कर
सौंप दिया सब भार ।।
कहने को कुछ है नहीं,
करती तुमसे प्यार ।
सपनो की डोली सजी
लेकर चले कहार ।।
देह सँवारी प्रेम से
ताने सहे हजार ।
पकड़ रखे रिश्ते सभी
जो जीवन आधार ।
माँगा तुमसे कुछ नहीं,
जीवन दिया सँवार ।
सपनो की डोली सजी
लेकर चले कहार ।
जब तक सहती सब रही
बन जीवन संसार ।
कह दी अपनी बात तो
लगने लगती खार ।।
कौन यहाँ समझा कभी,
मुझको अपना प्यार ।
सपनो की डोली सजी
लेकर चले कहार ।
समझा सबने ही मगर
अरमानों को भार ।
सहते सहते उठ गई
देखो अर्थी यार ।
छोड़ चली मैं सब यहीं,
करना जरा विचार ।
सपनो की डोली सजी
लेकर चले कहार ।
निशा”अतुल्य”(देहरादून)