कविता
चल फिर वो सब दोहराते हैं…
कविता (यादें)
“हरदेव नेगी“
कागज़ की कश्ती लिए
दरिया तर आते हैं,
आसमां की ऊंचाई को
पन्नों से छू जाते हैं,
चल फिर वो सब दोहराते हैं।।
भरी दोपहर में सड़कों पर
साइकिल से निकल जाते हैं,
माॅं जब लाख मना करे तो भी
अपनी जिद्द पर अड़ जाते हैं,
चल फिर वो सब दोहराते हैं।।
बिना शर्म लिहाज़ के
गांव के तालाबों में नहला आते हैं,
किसी बगिया में आम के पेड़ों पर
पत्थर उछाल कर फल तोड़ आते हैं,
चल फिर वो सब दोहराते हैं।।
गुल्लकों से सिक्के चुराके
मटका कुल्फी खा आते हैं,
बीमारी का बहाना करके
आज स्कूल नहीं जाते हैं,
चल फिर वो सब दोहराते हैं।।
बाबू जी की मार पर
मॉं से कुछ यूं लिपट जाते हैं,
दादा-दादी की दुलार से
जब हम मन को बहलाते हैं,
चल फिर वो सब दोहराते हैं।।
ममता से बनी रोटी को
चीनी के संग खाते हैं,
मेहमानों की प्लेट से
कुछ बिस्कुट चुरा आते हैं,
चल फिर वो सब दोहराते हैं।।
चल फिर बचपन को दोहराते हैं
चल फिर वो सब दोहराते हैं।।
हरदेव नेगी गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग)।