कविता
सपनों की उड़ान
“कविता”
(हरदेव नेगी)
उड़े हम सपनों की उड़ान,
गिरे बिस्तर से धड़ाम।।
हम ऊईईईई माँ चिल्लाए,
माँ जी दरवाजा खटखटाए
बोली, क्या हुआ हे राम,
हम बोले, गिरे बिस्तर से धड़ाम
लगादो कमर में बाम।।
उड़े हम…. ………..धड़ाम
माँ का हूँ मैं राजा बेटा,
बापू ने हर रोज कूटा,
पैदल ही जाता मैं कॉलेज,
ना दिलाया कभी बाईक स्कूटर क्रेटा।।
ताने सुनता हूँ रोज सुबह और शाम,
सिलैंडर व आटा थैला लाना रह गया मेरा बस काम,
उड़े हम…. ………..धड़ाम
कॉलेज का प्रोसपैक्टस देखकर लिया दाखिला,
चार साल की इंजीनियर में सिंगल ही रहा काफिला,
वो जो फ्रेशर पार्टी में बंण ठंण के आयी थी क्यूट सी मुटियार,
किसी केटीएम वाले के पीछे रहती थी सवार।।
हर सैमेस्टर में बैकपेपर के नाम पर था बदनाम,
हर शनिवार होस्टल में लगता था जाम ही जाम
उड़े हम…. ………..धड़ाम।।
कॉलेज प्लेसमैंट में हो गये हम रिजैक्ट,,
टीचर बोले ये होता है गलत फ्रैंडशिप का ईफैक्ट।।
बैंक पीओ एस एस सी सीजीएल है अब सहारा,
इंजीनियरिंग के सपनें से कर लिया किनारा,
घर बैठे बैठे बापू रोज करते मेरी नाकामी का चीरहरण,
आस पड़ोस के पैरेंटस के लिए बनगया एक उदाहरण,
किताबें छत पर लेकर ताकता रहता हूँ नीला आसमान,
उड़े हम…. ………..धड़ाम
एक रात सपने में मैरिट लिस्ट में अपना नाम देखा,
अपने जज्बातों को हमने न रोका,
चिल्लाकर बोले, बापू नालायक बेटा बन गया बैंक मनीजर,
अब ना कहेगा कोई मुझे नालायक इंजीनियर,,
इस बार बापू ने दरवाजा खटखटाया
फिर से कूटा और छत पर सुलाया,
ऐंसी सपनों की उड़ान से निकला जा रहा है दम,
फिर मेहनत करेंगे सपनों को हकीकत कर देंगे हम।।।
हरदेव नेगी, गुप्तकाशी(रुद्रप्रयाग)