आलेख
“आस्था और विश्वास”
संस्मरण
दीपशिखा गुसाईं (दीप)
देहरादून
यही कोई 11 साल बीत गये,, और शायद तीसरी यात्रा थी उन दो सालों में माता के दरबार में,, लोगों को कई बरस बीत जाते यात्रा प्लान करने पर,, मैं शायद बहुत ख़ुशक़िस्मत थी कि सिर्फ 2 सालों में 3 बार माता की विशेष कृपा से ही कर पाई,,, वजह उस दौरान मैं जम्मू के एक कॉलेज में बीएड में मैथ्स क्लासेज ले रही थी कुछ माह के लिए,,जब वापस आई तो अपने ही घर के पास एडेड स्कूल में पढ़ाने लगी,,थोड़ा दूर था घर से तो वहीँ रूम ले लिया,,
पड़ोस में आयुर्वेदिक हॉस्पिटल में एक मौसी जी काम करती थी,, उनके साथ ही उनकी बेटी का परिवार भी था,, मुझसे विशेष लगाव था उनको,,, उस वक़्त उन्होंने एक इच्छा जाहिर की थी कि मेरा बेटा होता तो मुझे वैष्णों माता के दर्शन करवाता,, मुझे बहुत फील हुआ ये सब कि क्या बेटे ही कर सकते ये सब,,, बस मैंने कहा मेरे साथ चलोगे,, उन्हें पहले तो विश्वास न आया पर उन्हें पता था ये अभी पिछले माह ही वहा से अकेले आई थी,, तो हाँ कर दी,,, फिर माँ को पूछा आप चलोगे उस वक़्त माँ भी घर में अकेली थी,, पापा अपने स्कूल में थे,, पापा मना कर गये कि मेरा स्कूल में रिटायरमेंट के कागज बनाने हैं में न आ पाउँगा,, माँ तैयार हो गई,,याद हैं मुझे स्कूल कि छुट्टियां थी शायद जून की, गर्मी भी बहुत,, रुद्रप्रयाग से तीन टिकेट करवा दिए आने जाने के जम्मू तक के,,,
निकले हम जम्मू वहाँ से कटरा के लिए बस ली,, मासी जी सारे रास्ते दुआएँ देती रही कि तेरी वजह से में बाहर देख पाई वो भी माँ के दरबार जा रही हूँ,, कटरा में मैंने एक धर्मशाला में सामान और फ्रेस होकर निकलने का प्लान बनाया,, जी हाँ हम पहाड़ी किसी भी उम्र में पहुँच जाये बहुत सख्त जान होती है,, मैंने कहा आप दोनों के लिए घोड़ा या पालकी करते हैं दोनों हंसने लगे,, कहा तू खुद के लिए कर ले,, पर में तो दो बार भी पैदल उसमें एक बार नंगे पाँव 14 km जाते वक़्त और 14km आते वक़्त,,, पर एक छाला भी नहीं हुआ था पता था ये माता कि कृपा ही थी,, जबकि में एक कदम नंगे पाँव नहीं चल पाती,,
जी पहुंचे हम पैदल ही माता के दरबार में और आप यकीन नहीं मानोगे दोनों ऐसे चल रही थीं उस उम्र में भी मानो कोई 25 साल का जवान हो,, और में खुद 25 साल की होते हुए बहुत पीछे,, दर्शन इतनी खूबसूरती से हुए मानो माँ हमारी ही राह तक रही हो,, जबकि आरती के वक़्त भी कोई कोई ही जा पाता,, हमें सब देखने को मिला,, मासी जी गदगद हो उठी,, जैसे ही हम बाहर निकले गुफा से तो देखा अब लाइन कई किलोमीटर की लगी है जबकि हमें तो खड़ा भी नहीं रहना पड़ा,,, मंदिर के बाहर भी कई देवी देवताओं कि मूर्तियां,,, मौसी जी ठहरी केदारनाथ के पंडित परिवार से,, उनको हर जगह पूजा करनी थी,, अब हम भी थोड़ा रुक गये और वो पूजा करने लगी,, जब देर हुई तो माँ को कहा आप यही रुको मैं मौसी जी को ले आती हूँ शोर ज्यादा था शायद माँ ने सुना आप चलो में उन्हें ले आती हूँ,, बस फिर क्या था उनको लेकर जैसे ही वापस आई माँ नहीं मिली,, भीड़ इतनी कि ढूंढंना मुश्किल,,
मेरी धड़कन तेज,,, अनाउंस भी करवाया तीन बार पर पता था कोई फायदा नहीं होगा क्यूंकि अनाउंस तो करते हैं वो लोग पर आवाज़ क्लियर नहीं होती, और फ़ोन तो हम तीनों के पास थे पर कोई फायदा नहीं जम्मू के रूल्स के अनुसार किसी अन्य राज्य के प्री पेड पर कोई रोमिंग सुविधा भी नहीं होती थी,,मैं बहुत घबरा गई कि अब माँ खो गई,, रोने लगी पर बाहर नहीं दिखाया एक आस थी कि में ढूंढ़ लूंगी,, उस वक़्त मैंने माता रानी को कितनी बार याद किया ये भी नहीं पता,, और मैं कभी किसी भी यात्रा में जाती हूँ कभी कुछ नहीं मांगती,, सिर्फ हाथ जोड़कर वापस आती हूँ,, आदत मेरी,,पर इस बार कितनी बार ही अपनी सभी की गई यात्राओं का फल मांगने लगी,,
तभी एक औरत ने देखा मैं बहुत घबराइए हुई हूँ पूछा तो बताया मैंने,, बोली बेटा यात्रा पूरी कर अपनी जरूर माँ मिल जाएगी यहाँ से कोई दुखी होकर न गया आज तक,, मैंने सोचा यात्रा पूरी?? तब याद आया कि भैरों देव के दर्शन के बिना यात्रा पूरी नहीं मानी जाती,,हमारी बात भी यही हुई थी कि माता रानी के दर्शन के बाद हम वहीँ जायेंगे,, तो हम दोनों निकले भेरों बाबा के मंदिर की तरफ वहाँ पूरे रास्ते जो मिला उसे मोबाइल से माँ की फोटो दिखाकर पूछने लगी,, अब रोना भी नहीं रोका जा रहा था,, पर फिर भी मन में था में जरूर ढूंढ़ लुंगी, उस वक़्त उम्र ऐसी होती कि हिम्मत अधिक और डर कम होता था,, जैसे ही भैरों बाबा के गेट पर पहुंचे माँ गेट पर बैठी दिखी तो खूब डांटा भी और खूब रोइ भी,, माँ कहने लगी मैं भी डर गई थी पर सोचा तुम यहाँ जरूर आओगी तो गेट पर ही बैठ गई,, बस फिर क्या था जो हम पूरे दिन और रात से भूखे माँ के दर्शन के लिए चले थे वो थकान और भूख उस ख़ुशी के पल ने तुरंत ही मिटा दी,,,आज भी मानती हूँ कि माता की वो कृपा थी और उस औरत ने जो रास्ता दिखाया शायद माता रानी के कहने पर ही दिया होगा जरूर,,, उस वक़्त लगा था कि फिर कोई इस तरह किसी लड़की पर भरोसा नहीं करेगा कि अकेले भी बहुत कुछ कर सकती है,,उस वक़्त कश्मीर के हालात भी ठीक ं थे और कोई वहाँ अकेले जाने की सोचता न था फिर एक लड़की,,, आज भले अकेले लड़कियां विदेश घूम आई पर वो वक़्त कुछ और था,, मेरी उस वक़्त यही सोच थी कि मैं अकेले भी बहुत कुछ कर सकती हूँ,,
उसके बाद तो ख़ुशी ख़ुशी जम्मू आकर मैंने उन्हें रघुनाथ मंदिर के दर्शन करवाये और फिर रात की ट्रेन से वापस,, आज भी जब वो घटना याद करती तो रोंगटे से खड़े होते कि यदि माँ सच में खो जाती तो,,, और मासी जी तो अभी तक दुआएं दे दे कर बलाएं लेती,,बस यही तो कमाई है,,, और साथ ही इस घटना के बाद माता रानी पर विश्वास और भी मजबूत हुआ मेरा,,
“दीप”