कविता
‘होरि एैग्ये”…
हरदेव नेगी
फागुंण चैत कि रंगीली बहार फूलु मा सौरी गे,
रंगों कु सजीलु त्यवार होरि एैग्ये।।
होरी एैग्ये, हो…. री एैग्ये,,,,ऐ…..!
धारा पंदेरो मा पांणी कि छर्वोळी एैग्ये।।।
क्वी बुराँसे सि लाल क्वी फ्योंली सि पिंगळी व्होंई,
होरि का गीतोंन् संगती रंगमत व्हंई।।
पिचकार्यों की छपाक् गाति लरतर कैग्ये,
गौं ख्वोंळों सैरु बजारु कन रंगत एैग्ये।
होरी एैग्ये, हो…. री एैग्ये,,,,,ऐ……ऐ!
धारा पंदेरो मा पांणी कि छर्वोळी एैग्ये।।।
होरि का होळ्यार ढ्वलकि बंजौंणा,
एक हैंके गल्वाड़ी रंगोंन रंगोंणा।।
द्यूर भोजू कि ठटा मजाक छतपत कैग्ये,
दीदी भुल्यों तैं भारि कतामति कैग्ये,
होरी एैग्ये, हो…. री एैग्ये,,,,,ऐ……ऐ!
धारा पंदेरो मा पांणी कि छर्वोळी एैग्ये।।।
लुका छिपी भौत व्हेगे क्वी कख दि जालू,
भलु बूरो सब्यों तैंई रंगैई जालू,,
मायादार अपड़ी माया मा रंगी गे,
हौंस ऊलार द्येखि मन नाचणं लैग्ये।
होरी एैग्ये, हो…. री एैग्ये,,,,,ऐ……ऐ!
धारा पंदेरो मा पांणी कि छर्वोळी एैग्ये।।।