कविता
धै लगा धवड़ि लगा।
गढ़वाली कविता
【हरदेव नेगी】
धै लगा – धवड़ि लगा, आंदोलन की जोत जगा,
उठ्ठा ज्वानों एक जुट ह्वा, भ्रष्टाचार्यों तैं सबक सिखा,
सत्ताधार्यों तैं चितै द्यावा, अपड़ा हक्क कि लड़ै लड़ा,
धै लगा – धवड़ि लगा, आंदोलन की जोत जगा ।।
जै दिन बटी यु राज्य बणीं, भ्रष्टाचार की भैंट चड़ी
द्वी दलों की सांठ गांठ मा, घुसखोर्यों की मवसी बणीं,
तौं शहीदों कि कसम खव्वा, यूँ कि मनसा तैं रचंण ना द्या
धै लगा – धवड़ि लगा, आंदोलन की जोत जगा ।।
नौकरी- चाकरी सब बिकी छन्न, ज्वानू का सुपिन्या बगणां तन,
मिनगत करि क्या होलु जन? आयोग तैं चैंणू बल कमीशन,
दिल्ली बटी देरादूंण तक, यूँ कि कुरसी हिलै द्यावा,
धै लगा – धवड़ि लगा, आंदोलन की जोत जगा ।।
अरे कब तक यनि लाटा रौंला, कब तक यनि कांणा रौला
भौत सेलि अर भौत सुंणिली, अब अपड़ा खून मा उमाळ ल्यौंला,
चला हिटा अब खुटा पसारा, सड़क्यों मा क्रांति ल्यव्वा,
धै लगा – धवड़ि लगा, आंदोलन की जोत जगा ।।
हरदेव नेगी गुप्तकाशी(रुद्रप्रयाग)