कविता
गदगद हो जाती हूँ जब पहाड़ों से मिलती हूँ
मधुबाला पुरोहित
गदगद हो जाती हूँ जब पहाड़ो से मिलती हूँ……..
दिल के तारों को मै आज भी टटोलती हूँ,
मै आज भी अपनी भावनाओं को कहाँ खोल पाती हूँ ।
जीवन की उन मर्मस्पर्शी यादों को
मन ही मन यूँ ही गुनगुनाती हूँ:::::::।।
हाँ गदगद हो जाती हूँ जब पहाड़ो से मिलती हूँ::::::।
बचपन ,अल्ल्ह्ड़ जवानी हर रंग में रंगी मेरी कहानी
बादलो सा लहराना
हवाओं सा झूमना
सरसराती पत्तों की आवाज का
चुपके से मेरे कानों में कुछ कह जाना
तेरे हर आलम की मदहोशी में एक ही पल मे जी जाती हूँ::::::।।
हाँ गदगद हो जाती हूँ जब पहाडों से मिलती हूँ ।।
भाव जब कभी अकेलेपन का आए:::
अडिग हिमालय पर्वत से तुम कहते जीवन का उद्धार करो
मेरे जेेेसा जीवन जी कर तुम भी मूल्यवान बनो।।
पिता बन कर हर पल आभास दिलाते हो ।।
हे!हिम के शिखर तुम गौरव का प्रतीक कहलाते हो::::::।।
गदगद हो जाती हूँ जब पहाडों से मिलती हूँ:::::।।