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भारत लहराएगा चांद पर अपना परचम,बस कुछ घण्टों का इंतजार और।

उत्तराखण्ड

भारत लहराएगा चांद पर अपना परचम,बस कुछ घण्टों का इंतजार और।

आप भी लाइव प्रसारण देख सकते हैं।

संवादसूत्र देहरादून: चंद घण्टों का इंतजार बाकी और भारत चांद पर आपना परचम लहराने वाला है। बताया जा रहा है कि विक्रम लैंडर की लैंडिंग का लाइव प्रसारण इसरो के यू ट्यूब चैनल व डीडी नेशनल पर दिखाया जाएगा। उत्तराखंड के आवासीय विद्यालयों में आज शाम को विक्रम लैंडर की लैंडिंग का लाइव प्रसारण किया जाएगा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में अपर राज्य परियोजना निदेशक समग्र शिक्षा डॉ. मुकुल कुमार सती में इस स्कूलों में प्रसारण की व्यवस्थाओं के लिए आदेश जारी किए हैं। उन्होंने समस्त जिला मुख्य शिक्षा अधिकारियों को भेजे पत्र में बताया कि विक्रम लैंडर की लैंडिंग का लाइव प्रसारण इसरो के यू ट्यूब चैनल व डीडी नेशनल पर दिखाया जाएगा।

बताया जा रहा है कि बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 चांद की सतह पर उतरेगा। स्पेसक्राफ्ट का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा और फिर इससे रोवर प्रज्ञान, जो कि एक रोबोट है, चांद की सतह पर उतरकर चांद की मैपिंग करेगा। यह 500 मीटर से 1 किलोमीटर चलेगा। इसे बग्गी का रूप दिया गया है और इसमें 6 पहिए हैं।

गौरतलब है कि 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से चंद्रयान 3 को लॉन्च किया गया था। चांद की कक्षा में पहुंचकर इसने चांद की तस्वीर भी भेजी थी। प्रेरणा कहती हैं, लैंडर और रोवर दोनों ही साइंस इंस्ट्रुमेंट्स से लैस हैं, इसे चंद्रयान 2 के मुकाबले अपग्रेड भी किया गया है। चांद की सतह, क्रेटर्स (गड्ढे) का जायजा लेंगे, वहां के खनिज, पानी, बर्फ और भविष्य के ऊर्जा स्रोत की संभावनाओं के साथ कई महत्वपूर्ण अध्ययन करेगा।

फ्यूल के बारे में…

इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने इस बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा था कि चंद्रयान-3 में लॉन्चिंग के समय यानी 14 जुलाई को 1696.4 किलो फ्यूल भरा गया था। इसे हम किलो में इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि जिस तरह के फ्यूल का इस्तेमाल चंद्रयान-3 में किया गया है उसे आप किलो में लिख सकते हैं. आपको बता दें, इस इंटरव्यू के दौरान एस सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 में अभी भी लगभग 150 किलो से ज्यादा फ्यूल बचा हुआ है, जो उसे लंबे समय तक काम करने की स्थिति में रखेगा?

किसी भी स्पेस शटल या स्पेस क्राफ्ट को चलाने के लिए जिस फ्यूल की जरूरत होती है, उसे लिक्विड हाइड्रोजन कहते हैं. लिक्विड हाइड्रोजन दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा लिक्विड है. इसका तापमान माइनस 252.8 डिग्री सेल्सियस होता है. चंद्रयान-3 में भी इसी फ्यूल का इस्तेमाल किया गया है. नासा जैसी स्पेस एजेंसियां भी जब अपना कोई स्पेस शटल लॉन्च करती हैं तो इसी फ्यूल का इस्तेमाल करती हैं।

दुनियाभर में इस फ्यूल को लेकर रिसर्च चल रहा है कि क्या इसका इस्तेमाल गाड़ियों में भी किया जा सकता है. भारत सरकार भी ग्रीन हाइड्रोजन नाम के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. अगर उसे इसमें सफलता मिल गई तो वो दिन दूर नहीं जब दुनिया डीजल पेट्रोल और उसके प्रदूषण से मुक्त हो जाएगी।

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