कविता
“इश्किया बिरयानी”
“दावत-ए-इश्क़”
अंकुर श्रीवास्तव “रंगरेजा”
चलो इश्क़ के दावत पर तुमको आज रात बुलाता हूँ,
एक पुराने रिश्ते की देगची मुझे कई दिनों के बाद, बन्द कमरे में धूल और यादों के जालों से भरी मिली है,
इसको तुम्हारी गुनगुनी हँसी से मांजूंगा तो खिलखिला के चमक उठेगी,
चलो तुम्हारी पसंदीदा बिरयानी बनाता हूँ।
तो पहले मुलायम बातों से गोश्त को marinate करते हैं, उसमें तुम्हारी चुटकी लेने वाली हल्की खट्टी दही मिलाते हैं,
त्योरियां चढ़ा के जिस तरह हक़ का तेवर दिखाती हो, वैसा तीखा पैना तेजपत्ता मिलाता हूँ,
तुम्हारी पुरानी चाँदी के पायल के कुछ काले पड़े घुँघरू जैसे काली मिर्च के दानों से इसको सजाता हूँ,
अब बारी आएगी हमारे रिश्ते के नमक की, ये इसकी लज़्ज़त बढ़ा देगा,
इसमें चुटकी भर तुम्हारी कई रातों से जगी आँखों के जैसा सुर्ख़ लाल रंग लिए पिसी लाल मिर्च से इसका स्वाद बढ़ाता हूँ,
अब थोड़ी देर इसको दोपहर की तन्हाई में छोड़ देते हैं ताकी ये सब आपस में हमारी तरह घुल जाएं और इनका स्वाद एक होजाए जैसे मैं और तुम हैं।
शाम का रंग और तुम्हारा गुस्सा चावल को उबालने के काम आएगा, तुमको ज़र्दा रंग पसन्द है न।
अब मैंने देगची में मोहब्बत से लबरेज़ मुझसा~तुमसा ख़ालिस देसी घी डाल कर चावल और गोश्त को मिला कर ढ़क दिया है, दम लगाने के लिए,
जैसे मैं और तुम, तुम्हारी पश्मीना शॉल में सिमट के ढ़क जाते हैं और सुकूँ से भरे लम्हे में दम भरते हैं,
बस यही “दम”, हमारी “मोहब्बत की बिरयानी” की लज़्ज़त बढ़ा देगा,
पर,
अब यहाँ तुम आगयी हो, मेरा हाथ रोक लिया है और अपने साँसों के केवड़े की महक से पूरी बिरयानी के लज़्ज़त की ख़ुश्बू पर हमारे होने की मोहर लगा दी है।
..तो चलो आओ “इश्किया दावत” को नोश फ़रमाते हैं।
- अँकुर श्रीवास्तवा “रंगरेज़ा”
परिचय : अँकुर श्रीवास्तवा “रंगरेज़ा”
दिल्ली एनसीआर….
पेशे से एक फ़िल्म मेकर , थिएटर डायरेक्टर , राइटर , शायर और शेफ…
पेशे से एक फ़िल्म मेकर , थिएटर डायरेक्टर , राइटर , शायर और शेफ