कविता
मैने तुमको देखा है…
“गढवाली कविता“
हरदेव नेगी

मैने तुमको देखा है, रतब्यांणी घाम की झौळ में,
मैने तुमको देखा है, दोफरा का तैला घाम में।।
मैने तुमको देखा है, रोटि पाथते धुयेंणा रसुड़ा में
मैने तुमको देखा है, न्यैळदा गुडदा पुंगड़ा में,
मैने तुमको देखा है, बंण पैटदी ब्वे -चाची -बौडियों की तांद में,
मैने तुमको देखा है, डांडा बिटि पीठी में खड़ुआ – ऊळा के भारा में ।।
मैने तुमको देखा है, सौर्यास पैटिदि धियांणियों के आँसुओं में,
मैने तुमको देखा है, मैतुड़ा बेदने के हौंस उलार में।।
मैने तुमको देखा है, दूर परदेश व बौडरों में तैनात अपड़ा भैज्यों की खुद में,
मैने तुमको देखा है, भै बैंण्यों के राखुड़ी त्यौहार में।।
मैने तुमको देखा है, मौळ्या थौळों की बार में,
मैने तुमको देखा है, चूड़ी फौंदि मुल्याती बाजार में।।
मैने तुमको देखा है, ब्याखुनि बगत छ्वीं लगाती हुई दादियों की खुंकली में,
मैने तुमको देखा है, पैल – पैली मामा द्वारा लाई गई धगुली पैरणें में।।
मैने तुमको देखा है, अपड़ा छ्वोटा भै – बैंण्यों को स्कूल पैटांणें में,
मैने तुमको देखा है, स्कूल से लौटते बगत ब्याखुनि साटि की घांण फणगने में ।।
मैने तुमको देखा है, सब्योर धांण न करने पर सासू की गाळी में,
मैने तुमको देखा है, व्हौडा बिठा की धांण काज संट्याने में।।
मैने तुमको देखा है, तीलू रौतेली के औतार में,
मैने तुमको देखा है, नया भारत की स्वांणी सूरत बनाने में।।
मैने तुमको देखा है…..
हरदेव नेगी,गुप्तकाशी (रुद्रपयाग)
