कविता
विडंबनाओं में जीवन…
गीत
(निशा गुप्ता)
विडंबनाओं में जीवन की
बाँसुरिया भी टूटी-टूटी ।
विडंबनाओं में जीवन की
बाँसुरिया भी टूटी-टूटी ।
सुर ताल नहीं साथ निभाते
किस्मत लगती क्यों कर फूटी ।।
घिरी निराशा घोर अँधेरा
लिखते जाते आये सवेरा ।
क्रंदन मन का बढ़ता जाता
चैन नहीं फिर मन को आता ।
लगती प्रेम सुधा रस झूठी
दुनिया लगती सारी रूठी ।
सुर ताल नहीं साथ निभाते
किस्मत लगती क्यों कर फूटी ।।
अंतर्मन की गाथा कहना
कितना मुश्किल है सब सहना ।
मौन कभी जब मुखरित होता
तोड़ सभी बंधन को बहता ।
बाँध सकें कब बंधन कोई
जीवन नौका लगे है छुटी ।
सुर ताल नहीं साथ निभाते
किस्मत लगती क्यों कर फूटी ।।
विरहा की ज्वाला में तप कर
जीवन कुंदन है बन जाता ।
साँस साँस में भले समाये
हाथ नहीं फिर कुछ भी आता ।
बंद करूँ अंतर्मन नैना
मुखरित होती आशा टूटी ।
सुर ताल नहीं साथ निभाते
किस्मत लगती क्यों कर फूटी ।।
निशा”अतुल्य” वरिष्ठ कवियित्री(देहरादून)