आलेख
“चाँद पर मेहंदी”
(व्यंग)
___ ✍️ राजीव नयन पाण्डेय
जी नहीं, चॉद पर कोई मेहंदी लगाने वाला नहीं पहुंच गया जो इतनी बडी खबर बन गई। वैसे तो खबरों की खबर रखने वालों को खबर तो होगी ही कि सोशल मिडिया में सच्च और झूठ के खजाने में न जाने कितने अमूल्यवान रत्नों के भण्डार भरे पडें है। उसी खजाने से यह बहुमूल्य रत्न रुपी तस्वीर मिली, जैसे सागर मंथन के बाद अमृत मिला था।
वैसे तो यह एक साधारण सी तस्वीर है पर इस तस्वीर ने जो उदाहरण “बाल वालों” के बीच प्रस्तुत की हैं, उसकी कीमत भला बाल वाले क्या समझेंगे जो सिर्फ उपरी रंग रोगन कर खुश हो जाते है, क्योकि बात ही “जड़ो से” जुडी हुई है।
नमन है, उस महान व्यक्तिव को जिसने यह नई तरकीब इजाद किया है, नमन है उस मेहदीं के रचयिता को जिसने बिन बाल वालो को भी आज “यूरेका” कहने पर मजबूर कर दिया, और प्रशंसनीय तो वो कैमरामैन हैं जिसने सही तरीक़े से तस्वीर ली।
बाल वालो तुम्हारे दिन लद गये जो, अब तो बिन बाल वाले भी “मेंहदी लगा के रहना” गुनगुना सकते है और अपनी चॉद के लिऐ वे भी अपने ” चमकते_चॉद_पर_मेहंदी रचा सकते है।
जिसे देख उनके घर की चॉद..बादलो के बीच चमकते चॉद को देख गुनगुना सकेगी….”छुप गया बदली में देखो चॉद भी शर्मा गया, चॉद को देखा तो फूलो को पसीना आ गया…
राजीव नयन पाण्डेय (देहरादून)