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“प्रेमचंद” और “समाज” तब और आज।

आलेख

“प्रेमचंद” और “समाज” तब और आज।

31 जुलाई
(मेरे प्रिय साहित्यकार प्रेमचंद जी का जन्मदिवस)

दीपशिखा

जी हाँ कितना कुछ लिखा जा चुका आप पर, हाँ तो लिखेंगे भी,, आपने भी तो समाज के उस हर दर्द को उकेरा है जो हम अनदेखा कर जाते हैं,, उस तबके को अपनी कहानी का नायक बनाया जिसे हम अन्य शायद हेय दृष्टि से देखते रहे,, हमें दिखाया कि वो भी इंसान हैं,, तभी तो आप एक किवदंती बन पाए और आपका हिंदी साहित्य में एक अहम् किरदार रहा ,, जिनका जिक्र किये बिना हिंदी साहित्य का अस्तित्व ही अधूरा,, जिया आपने वो हर किरदार, तभी तो कलम आपकी उन किरदारों को उकेरने पर लगा रहा।

क्योंकि एक चित्र देखा था आपका पत्नी संग सर पर मोटे कपडे कि टोपी, कुर्ता और धोती पहने,, कनपटी चिपकी सी और गालों कि हड्डी निकली हुई पर घनी मुझे,, ऐसा था शायद ब्यक्तित्व आपका,, पर मेरी दृष्टि जहां अटकी वो थे आपके फटे जूते,, सोचती रही इतना महान लेखक और इतना साधारण पहनावा,, हाँ तो होगा ही न वह उनका गुण था जो उन किरदारों संग खुद को जी लेते थे।

खैर उनकी कई कृतियां पढ़ी मैंने,, पर आजकल में माँ और घासवाली पढ़ रही थी,, सच में स्त्रीप्रधान किरदारों को जिस तरह गढ़ा गया अद्भुत है,, जहाँ माँ में ममता और बुद्धि के द्वन्द में जीत ममता की हुई,, हाँ मुझे पसंद आया वो घासवाली कहानी की पात्र मुलिया और चैनसिंह,, कितना खूबसूरत गढ़ा आपने,, जब में कहानी पढ़ रही थी तो ये पात्र मेरे आस पास ही कहीं दिखने लगे।

मुलिया एक मलिनजाति की स्त्री जो खूबसूरत होने के साथ एक दोष के साथ पैदा हुई,, दोष था निम्न जाति में पैदा होना,, और साथ ही खूबसूरत होना,, हर किसी की नजर उसकी खूबसूरती पर अटक कर उसे पाने की चाहत करना,, ऊपर से ऊँची जाति के पुरुषों का सोचना कि उनका अधिकार कि वो जब चाहे उसका भोग कर सकते हैं,, लेकिन गरीब होना माना खूबसूरत स्त्री के लिये अभिशाप रहा हो पर उनका आत्म सम्मान उन्हें अपनी देह को बचाने का भरपूर हिम्मत दे जाती,, यहाँ मुलिया पर नजर रखी थी ऊँची जाति के चेनसिंह ने,,वो भोरें की तरह मुलिया के चारों और घूमता रहता पर मजाल कभी मुलिया ने कभी उसे देखा हो,, कई बार घास लेते हुए सामने छेड़ते चेनसिंह को दो टूक जवाब दे डाला,, हाँ उसकी इसलिए तरह दुत्कारने से और उसकी ब्यथा से द्रवित हो चेनसिंह जैसा क्रूर का भी हृदयपरिवर्तन हो उठा।

जी हाँ यह संक्षेप में घासवाली की कहानी,, ये कहानी बहुत कुछ याद दिलाती मुझे,,

कई बार सुना था कि गरीब और निम्न जाति की औरतों के ऊपर बहुत तरह के अत्याचार हुआ करते थे,,उनकी देह पर अकसर जमींदारों की नजर हुआ करती थी,, किस्सा सुना था कि जब निम्न जाति में किसी की शादी हुआ करती थी तो दुलहन की डोली जमींदार के घर एक रात ठहर कर घर जाती थी,,दुल्हन मजबूर होती थी, अधिक समझाने की जरुरत नहीं पड़ेगी अब,, आपने उन्ही किरदारों को जीवंत किया,, पर हाँ गरीब औरतों का अपना आत्म सम्मान होता था,,यही यहाँ मुलिया के किरदार में दिखाया,, और साथ ही उसने चेनसिंह जैसे भँवरे को सही राह भी दिखाई पर हाँ हकीकत में कई बार गरीबी तोड़ जरूर देती है।

मुझे हमेशा ये किस्से सुनकर जमींदार नाम से नफरत हुई थी,, जबकि खुद मैं जमींदार घराने से ताल्लुख रखती,, पर माँ के किस्से जमींदारों पर मुझे बाद में प्रेमचंद जी की कहानी के किरदारों में दिखे,, और आपको पढ़ते हुए ही तो हमने लेखन के करीब जाना सीखा,,और खुद को गढ़ना सीखा।
…..

“दीप”

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