कविता
“सि त् चांणा छन्न”
(गढ़वाली कविता)
लेख्वार : हरदेव नेगी
सि त् चांणा छन्न कि पैलि त् क्वे गिच्चु नि ख्वौळ,
गिच्चु त् ख्वौळ् फर हमरि पोल नि ख्वौळ।।
अरे लोकतंत्र की पैलि परिभाषा च् राजतंत्र,
अर् जनता चुप बौगा बंणी रौ यूहि चा सच्चु परजातंत्र।।
अरे ब्वनो हक्क् सिरफ राजा तैं व्हौंदु,
परजा टक्क लगै सुढणीं रौ यूहि चा राज कनौ मूल मंत्र।।
सि त् चांणा छन्न जनता भ्यौरा बाखरों सी ज्हिंदगी जींणी रौ,
अर् हम पळस्यों सी चार पटा सुलगरि मना रौं,
भ्यटा कुकरौं सि चार हमरा च्यौला चाँठा तौंका एैथर पैथर बीच रौ
अर् हमरि पौलिसि का गीत तौं सणि सुढ़ाणां रौं।।
हमरि बणांयी नीति मा क्वे भेद भौ नि व्हौंण चैंद,
भले भितरा भितरी लड़ै, झगड़ा, जातिवाद बण्यूँ रौ,
नौ कखि हमरु नि फंस्यूँ चैंद, फर,
जनता का भितर यु भेद भौ कु डाळु खिल्यूँ रौ।।
सि त् चांणा छन्न, तौंकु क्वे भि कारिज हमरा बिगर सुफल नि हो,
बट्टा-घट्टा, ब्यो-बरात, पंच-पूजा, सब जगा हमरु नौं हो।।
जु भि यक्ख हमरा खिलाफ़ क्वे हेकु चुनौ लढणैं कि स्वोचु,
जाळ साज कैरि जनता व्हेका खिलाफ़ हो, हमरु गुंणगान हो।।
हरदेव नेगी,गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग)