कविता
“छोटी सी जिंदगी”
“कविता“
(हरदेव नेगी)
छोटी सी जिंदगी
उसमें भी भ्रष्टाचार,
जवानी गुजरी कॅम्पीटीशन में
सपने हो गये हैं लाचार ।।
मेहनतकश फीके पड़ गये,
किताबें हो गई हैं लाचार
पैन की नोक काँटों सी चुभ गई
दलालों से हार गये यहाँ के होनहार।।
लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ गई
बिक गई हो जहाँ सरकार
जनता का हक्क जो छीनके,
अपनों के लिए खुले हैं द्वार ।।
तुम्हारे ही अपने पढ़े लिखे हैं
बाकी जनता है अनपढ़ गवाँर,
पैमाने सब ताक पर रखे हैं,
फिर कहते हो जीरो टॉलरैंस की सरकार।।
हरदेव नेगी, गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग)