कविता
“इन पहाड़ों की कुछ छोटी नदियाँ”
रचना :- हरदेव नेगी
इन पहाडों से निकलती कुछ छोटी नदियाँ,
जो अज्ञात सा जीवन जी रही हैं,,
जो कभी सयानी नहीं हुई,
कल – कल, छल – छल करता हुआ इनका जीवन,
किसी छोटे बच्चे की खिखलाहट सा लगता है,,
इनको पहचानती हैं तो सिर्फ दो चार गाँव के लोग
मवेसी, घस्यारी, पाळसी इसके आँचल से प्यास बुझाते कुछ पशु – पक्षी,,
जब ये बरसात में उफान पर होती हैं ऐंसा लगता है,
जैंसे कोई स्त्री या छोटा बच्चा अपनी किसी जिद्द पर अड़ा हो,,
रो – रो कर अपना हक्क मांग रही हो,
उस बड़ी नदी से जिसने इसका अस्तित्व मिटा दिया है।।
जिसको मानव ने सिर्फ एक बरसाती नाला (गदेरा) समझा
मगर ये खुद का नदी होने का एहसास दिलाती रही,
कहती रही ये छोटी नदी कि मैं भी उस हिमालय में हिमाच्छादित
बर्फ की एक आँसू की बूँद हूँ, जिसको तुम अनदेखा कर रहे हो।।
कहती है ये प्रलय मैं भी ढाल सकती हूँ, बाढ़ मैं भी ला सकती हूँ,
मगर मैं नहीं चाहती जो दो चार गाँव, मवेसी पशु पक्षी मुझे जानते हैं
कहीं वो मेरे इस रूप को देखकर मुझे ही दोषी ना ठहरा दें,
मुझे काल न समझे लैं।। इसीलिए अज्ञात का द्वेष झेल रही हूँ।।
“इन पहाडों से निकलती कुछ नदियाँ””
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नदी का नाम “खळगाड” गडगू गाँव मनसूना (ऊखीमठ)
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घस्यारी – घास काटने वाली महिला
पाळसी – बकरी चराने वाले
हरदेव नेगी, गुप्तकाशी(रुद्रप्रयाग)