कविता
“मुट बौटि ले”
हरदेव नेगी
गढ़वाली कविता
नौंळा पंदेरों मा पंदेरी ब्वनी छन,
बाटा घाटों मा बट्वे,
सैरु बाजारु मा छापा छप्यां छन,
भू कानून कि लड़ै,
चुप रैकि कुछ हाथ नि औंण्यां, भौत व्हेगे अब नि रै बिंगौंण्यां,
तू हक मांगी ले, तू मुट बौटि ले।।
माटी हमरि, थाती हमरि हमरु चा यु गौंऊ,
पुरुखौंन यु सैंती पाळी यु चा गढ़ कुमाऊँ,
बंण बुग्याळु मा हक्क हमारु, खांणा लांणा कु सारु हमारु।
भैराकु कनक्वे हक्क जमोलु, हक्क का खातिर मर मिटि जौंलु।।
तु बात सुंणि ले, तु मुट बौटि ले।।
सता मा बेठ्या नेत्यों तुम बात चितै जावा,
जौंका पैथर सता मा एैन जनता कि सूंणि ल्यावा,
हे नेतों तुम होस समाळा, ईं धरती कु लाज रखि द्यावा,
जौंन यख बलिदान दीनि, तौंका का खून कु कर्ज द्यावा।।
तू धापना धौरि ले, तू मुट बौटि ले।।
सैंत्या पाळ्या पुंगड़ों मा करखानों कि बटणिं डड्वार,
सोकारूं तैं बसैकि यख बिकास बतौंणीं सरकार,
भू-कानून कि मांग चा हमरि, चकबंदी कु अधिकार चा,
देवभूमि तैं बचौंणां का खातिर, गढ़ कुमों येका हकदार चा,
तू कानून बणैं दे, तू मुट बौटि ले।।
हरदेव नेगी, गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग)