आलेख
जॉर्ज एवरेस्ट का आंगन।
प्रतिभा की कलम से
धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ काफल जैसा दिखने वाला एक छोटा सा फल ख़ूब खिल रहा है इन दिनों जॉर्ज एवरेस्ट के मसूरी वाले आंगन में। साहित्य प्रेमी लोग मसूरी जाते हैं रस्किन बॉन्ड से मिलने। यूं ही घूमने-फिरने के शौकीनों को पसंद है यहां का कुलड़ी बाजार। प्रकृति का सानिध्य और भीड़ जिन्हें बराबर चाहिए वो रुख़ करते हैं इसलिए थोड़ा आगे धनोल्टी या फिर काणाताल का। इसके अलावा कैमलबैक, गनहिल, लाल टिब्बा, हाथी पांव और केंपटी फॉल में भी पर्यटकों का खूब जमावड़ा लगा रहता है साल भर।
मगर इन सबसे परे प्रकृति का एक अनमोल खजाना है जॉर्ज एवरेस्ट के घर से आगे का एक खूबसूरत छोटा-मोटा सा जंगल। यह पर्यटकों की नजर से अभी भी अंनछुआ है, इस बात की तस्दीक करते हैं वहां खिले छोटे-छोटे क्रीम कलर के अनगिनत जंगली फूल। हरे रंग की कालीन सी घास पर यह फूल जैसे हिरन की आंख में बसी पिछली रात की चांदनी।
इंसान तो वहां कोई नजर आ ही नहीं रहा मगर दूर से उड़ता हुआ कोहरा जब साफ होता है तो कहीं-कहीं कोई मकान जरूर नजर आ जाते हैं,जहां सर्दियों के मौसम का इंतजाम लिए सूखी लकड़ियों का ढेर, क्यारियों में करीने से आलू की पौध लगी हुई हैं। जरा सी जमीं पर थोड़े से आसमां के नीचे पेड़ -पौधों से सजे ये इक्के-दुक्के घर लगें ऐसे .. ‘शहर बनते जा रहे इंसान के दिल के किसी कोने में छुपा हरा-भरा गांव हो जैसे ‘ ।
कंपनी गार्डन भी मसूरी का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है, जहां फौजियों ने कुदरत को रंग-बिरंगी फूलों के रंग से सजाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है, मगर फिर भी जॉर्ज एवरेस्ट वाली इस घाटी में ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने स्वयं चित्रकार बनकर कैनवास पर कूची चलाई हो ।
घनघोर नींद में सोए हुए कुंभकर्ण की तरह प्रतीत होते हुए किसी बड़े से पत्थर पर चढ़ घाटी में झांकने पर आसमान में सलेटी रंग के बादलों की छाया से चांदी का कटोरा मालूम होती देहरादून शहर की तस्वीर अद्भुत है।
हल्के-हल्के कोहरे के बीच सरसराकर आती हुई हवा के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के मौन संवाद से चुराए शब्द नन्हें-नन्हें खूबसूरत फूल बनकर बतकही कर रहे हैं अपने आसपास उगे हरे-भरे घास के तिनकों से ।
इस तिलिस्म पर एक और जादू जगाते हुए गाय- बैलों के गले में बंधी घंटियों की रुनझुन-रुनझुन आवाज़ का संगीत जैसे हम विचर रहे हों परियों के देश में।
घाटी में खिले फूलों पर आये शबाब की वजह इन जानवरों की गोबर की खाद का सबूत भी जगह-जगह बिखरा पड़ा है, मगर इन बेजुबानों की समझदारी भी देखिए कि कहीं कोई फूल इनके खुरों से कुचलने का निशान नहीं । कच्चे रास्ते पर घर की ओर लौटते गाय-बैलों की अनुशासित पंक्ति शहरी शामों से गुम हो गई गोधूलि बेला की भूला-बिसरी झलकियां दिखाती हुई सी।
हालांकि अब जॉर्ज एवरेस्ट के घर का सौंदर्यीकरण हो गया है , लेकिन कुछ समय पहले तक इस एक सदी पुराने खंडहर की पहचान शराबियों के इकट्ठे होने की जगह भर था।डर मुझे भी है इस बात का कि सैलानियों की नजरों से छुपकर काले-भूरे, सफेद-सुनहरे रंग वाले बादलों का जाम उठा घूंट-घूंट चांदनी पीती अपने ही नशे में मस्त इस अल्हड़ जगह का पता सार्वजनिक करने में कोई कुफ़्र तो नहीं?
प्रतिभा नैथानी