Connect with us

कम होता आंचल का चलन

आलेख

कम होता आंचल का चलन

अंतराष्ट्रीय साड़ी दिवस विशेष

वीरेंद्र सिंह

‘माँ का पल्लू’ एक मार्गदर्शक का काम करता था। जब तक बच्चे ने हाथ में पल्लू थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती थी। जब मौसम ठंडा होता था, माँ उसको अपने चारों ओर लपेट कर ठंड से बचाने की कोशिश करती

समय के बदलाव और सुविधाजनक पहनावे के प्रचलन से साड़ी पहनने के चलन कम होता जा रहा है। उत्सवों में अभी भी साड़ी पहनना शुभ माना जाता है। वह दिन दूर नहीं जब आंचल केवल मुहावरों, लोकोक्तियों में ही दिखाई देगा। ममता का आंचल, पल्लू में छुप जाना, दामन छोड़ना, चोली दामन का साथ जैसी तमाम कहावतें तिरोहित हो जाएंगी।कविता, शायरी, फिल्मी गानों में आंचल शब्द का उपयोग मां की ममता, प्रेयसी की लज्जा या महिला की इज्जत के लिए किया गया है। नारी की स्थिति का वर्णन-
अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। कह कर किया गया।
सच है आंचल नारी को गरिमामयी छवि प्रदान करता है। भारतीय संस्कृति की पहचान है साड़ी, सभ्यता और संस्कार है।

एक समय था जब गरम बर्तन को चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आंचल आता था।
पल्लू की तो बात ही निराली है। बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने, गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल कर लेती थी। खाना खाने के बाद
पल्लू से मुँह साफ करने का अपना ही आनंद होता था। कभी आँख में दर्द होने पर अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके
आँख में लगा दिया जाता था औरदर्द उसी समय गायब हो जाता था। माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चादर का काम करता था।
जब भी कोई अंजान घर पर आता, तो बच्चा उसको माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था।जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से अपना मुँह ढक कर छुप जाता था। जब बच्चों को बाहर जाना होता, तब ‘माँ का पल्लू’
एक मार्गदर्शक का काम करता था। जब तक बच्चे ने हाथ में पल्लू थाम रखा होता, तो सारी कायनात
उसकी मुट्ठी में होती थी।
जब मौसम ठंडा होता था,
माँ उसको अपने चारों ओर लपेट कर ठंड से बचाने की कोशिश करती। जब वारिश होती,
माँ अपने पल्लू में ढंक लेती। इतना ही नहीं, पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले जामुन और मीठे सुगंधित फूलों को लाने के लिए किया जाता था। पल्लू में धान, दान, प्रसाद भी संकलित किया जाता था। कभी कोई वस्तु खो जाए, तो एकदम से पल्लू में गांठ लगाकर निश्चिंत हो जाना , कि जल्द मिल जाएगी। पल्लू में गाँठ लगा कर महिलाएं अपनी तिजोरी बना लेती थी। मुझे नहीं लगता, कि विज्ञान पल्लू का विकल्प ढूँढ पाया है। पल्लू कुछ और नहीं, बल्कि एक जादुई एहसास है। सच कहा है-
मां का होना इस धरती पर, स्वर्ग सा नरम बिछौना है।
दुनिया के सब सुख से बढ़कर, मां के आंचल का कोना है।

अपने बच्चों की खुशियों के लिए वो अपना आंचल सदा ईश्वर के समक्ष फैलाए रहती है। मां का आंचल संपूर्ण अध्याय होता है हमारी जिंदगी की किताब का। आंचल की ठंडी छाया हर बुरे साए को दूर रखने की ताकत रखती। मां जब आंसू आंचल से पोंछती है, हर जख्म पर मरहम लग जाता है। वो अपने पल्लू का बिछौना बना देती, खुद को खिलौना बना लेती, मां काजल का टीका लगाकर अपने आंचल में उसे सलोना बना देती। और तो और कीमती से कीमती तौलिए से पोंछने पर भी बाल इतने नहीं सूखते जो मां की सस्ती साड़ी के आंचल से सूख जाया करते।
‘मां के आंचल में कभी दर्द का एहसास भी न हुआ।’
आंचल की छांव में इतना भरोसा है-
‘कुछ नहीं होगा, वो आंचल में छुपा लेगी मुझे,
मां कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी।’

ग्रन्थ-काव्य-महाकाव्य सभी में आंचल का चित्रण है। रामायण में सीता का अपने पल्लू में सारे आभूषणों को बांधकर फेंकना और मिलने पर श्रीराम द्वारा उस पल्लू की महिमा का बखान क्या कम महत्वपूर्ण है।आंचल/ पल्लू/ दामन में छुपकर बैठना कभी-कभी कायरता को भी दर्शाता है तो वहीं दामन/ आंचल में दाग, दामन/ आंचल तार-तार हो जाना, दागदार हो जाना, मैला हो जाना, कलंकित होने व इज्जत के प्रश्न से जोड़कर देखा जाता है तो चोली-दामन के साथ को जोड़ी दर्शाने में। कहा जाता है कि सिर ढंकने से ध्यान एकाग्रचित्त रहता है। इसलिए पूजा-पाठ में पल्लू रखा जाता है। पल्लू रखना आदर का सूचक भी है। शास्त्रों में कहा गया है कि यदि एकाग्रचित्त पूजा न की जाए तो फलित नहीं होती। वेदों में कहा गया है कि सिर के मध्य में एक केंद्रीय चक्र पाया जाता है। सिर ढंकने से इस पर जल्द प्रभाव पड़ता है। नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती। मन मस्तिष्क में सकारात्मकता बनी रहती है। दूसरे, सिर पर पल्लू होने से बालों के टूटकर गिरने की संभावना घट जाती है।

परंतु अब समय बदल गया है। परिवेश और वातावरण के साथ परवरिश भी बदल गई। सुविधाजनक होने के नाम पर आंचल, पल्लू या दामन से नाता टूट रहा है। आधुनिकता की चकाचौंध में खोता आंचल अब बच्चों को इस सुख से वंचित कर रहा है। जींस व पश्चिमी वस्त्र पहनने वाली मम्मी को आंचल की गरिमा का, जादुई एहसास का मतलब नहीं पता। शायर ने जगाया-
तेरे माथे पे ये आंचल बहुत खूब है लेकिन,
तू इस आंचल को परचम भी बना लेती तो अच्छा था।
वह दिन दूर नहीं जब आंचल,दामन,पल्लू बीते समय की बातें हो जाएं। और बच्चे इस आंचल की सतरंगी दुनिया से वंचित हो जाएं। हम खुशनसीब हैं जो मां के आंचल की जन्नत को, उस दुनिया को नाप आए हैं जो अपने में सारे ब्रह्मांड का सुख समाए हुए है।

वीरेंद्र सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)

Continue Reading
You may also like...

More in आलेख

Trending News

Follow Facebook Page

About Us

उत्तराखण्ड की ताज़ा खबरों से अवगत होने हेतु संवाद सूत्र से जुड़ें तथा अपने काव्य व लेखन आदि हमें भेजने के लिए दिये गए ईमेल पर संपर्क करें!

Email: [email protected]

AUTHOR DETAILS –

Name: Deepshikha Gusain
Address: 4 Canal Road, Kaulagarh, Dehradun, Uttarakhand, India, 248001
Phone: +91 94103 17522
Email: [email protected]