आलेख
क्यूँ मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार?
【कल्पना डिमरी शर्मा】
जितना पुराना भारत वर्ष का इतिहास है, उतना ही पुराना यहाँ मनाये जाने वाले त्योहार का इतिहास है । होली, दीपावली, दशहरा, रक्षाबंधन आदि त्योहार सदियों से इस धरती पर बड़े हर्षोल्लास से मनाये जाते हैं।
रक्षाबंधन ,भाई बहन के निश्छल प्रेम का प्रतीक है।ये त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता है । पूरे साल बहन इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करती है।भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार यह त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इस दिन बहन ईश्वर को साक्षी मानकर अपने भाई के माथे पर कुमकुम का टीका लगाती है और हाथ पर राखी का पवित्र धागा बांध कर भाई की लम्बी उम्र की और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है ।वहीं दूसरी और भाई जीवन भर अपनी बहन की रक्षा का वादा करता है और जीवनभर अपनी बहन की रक्षा करता है ।
ये राखी का धागा , रक्षा सूत्र के नाम से भी प्रचलित है। वैसे तो बहन ही अपने भाई के हाथ पर राखी बाँधती है, लेकिन कई जगह ब्राह्मण, गुरु, पुत्री या परिवार में कोई बड़ा किसी की रक्षा के लिए ये रक्षा सूत्र बाँधते हैं। इतिहास और पुराणों में ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं जहां पत्नियाँ युद्ध में जाते हुए अपने पतियों को रक्षा सूत्र बाँधती हैं।
देश के अलग-अलग प्रांतों में यह त्यौहार अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है ।उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल में यह त्योहार जन्यो-पुण्यू और महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
हमारे हर त्योहार के पीछे कोई ना कोई पौराणिक कहानी ज़रूर होती है। रक्षाबंधन के बारे में भी कई पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियाँ प्रचलित हैं।
सबसे पहले जानते हैं पौराणिक कथाएँ ।
रक्षा बंधन का त्योहार कब शुरू हुआ ये कहना तो मुश्किल है, पर भविष्य पुराण में लेख मिलता है कि जब एक बार देवता और दानवों के बीच महासंग्राम हो रहा था, तब दानव, देवताओं से ज़्यादा पराक्रमी हो गये, वे देवताओं पर हावी पड़ रहे थे, तब देवराज इंद्र, दानवों की शक्ति देख के घबरा गये और सहायता के लिये गुरु बृहस्पति के पास गये, इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने यह सब सुन लिया था।तब देवी इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति देवराज इंद्र की कलाई पर बाँध दिया, संयोगवश उस दिन श्रावण माह की पूर्णिमा का दिन था।इंद्र उस युद्ध में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए।उसी दिन से सावन की पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है।पुराने ज़माने में जब राजपूत राजा युद्ध पर निकलते थे तब उनकी पत्नियाँ उनकी विजय के लिये उनके माथे पर तिलक और हाथ पर कलावा बांधती थी। यह प्रथा आज भी हमारे समाज में है।
एक और प्रसंग हमारे पुराणों में मिलता है । श्री कृष्ण और रानी द्रौपदी का क़िस्सा कौन नहीं जानता । एक बार श्री कृष्ण भगवान जी के हाथ से ,शिशुपाल का वध करते हुए, रक्त बहने लगा था तब रानी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर भगवान श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया, द्रौपदी का यह स्नेह श्री कृष्ण जी के हृदय को छू गया । इस उपकार के बदले श्री कृष्ण जी ने द्रौपदी को जीवन भर सहायता करने का वचन दिया । जब दुर्योधन ने भरी सभा में रानी द्रौपदी के चीर हरण का आदेश दिया, तब श्री कृष्ण भगवान ने रानी द्रौपदी की लाज बचा कर अपने वचन की लाज रख ली ।
पुराणों में, एक और कथा बहुत प्रचलित है, एक बार जब राजा बलि ने अपनी भक्ति से भगवान विष्णु को बंदी बना लिया था तब देवी लक्ष्मी जी बहुत परेशान हो गई थी, तब मुनिराज नारद जी ने देवी लक्ष्मी जी को राजा बलि को राखी बांधने की सलाह दी, और देवी लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बाँध कर अपना भाई बना लिया, और बदले में देवी लक्ष्मी अपने पति को साथ ले आयीं।
अब कुछ किस्से इतिहास के पन्नों से..
इतिहास के पन्नों में राखी के साथ एक प्रसिद्ध कहानी जुड़ी है, मेवाड़ की रानी कर्णावती और बादशाह हुमायूँ की ।एक बार जब मेवाड़ की रानी कर्णावती को बहादुरशाह द्वारा उनके राज्य पर आक्रमण करने की सूचना मिली, तो रानी ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की विनती की। मुग़ल शासक ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और रानी को बहन का दर्जा दिया, और मेवाड़ की रक्षा के लिए बहादुरशाह के विरुद्ध लड़े।
एक और क़िस्सा इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गया जब विश्व विजेता सिकंदर अपने राज्य का विस्तार करते-करते भारत वर्ष पहुँचा। भारत वर्ष पहुँचते-पहुँचते उनकी सेना थक चुकी थी और अब उनका सामना महान शक्तिशाली राजा पुरु से होने वाला था, सिकंदर की पत्नी डरी हुई थी।सिकन्दर की पत्नी ने राजा पुरु को राखी बांध कर अपना मुँहबोला भाई बना लिया, और युद्ध में राजा पुरु से सिकंदर को जान से ना मारने का वचन ले लिया । महान पुरु ने अपनी मुँहबोली बहन से किये गये वादे का सम्मान रखते हुए युद्ध के दौरान सिकंदर को जीवन दान दिया।ऐसे कई क़िस्से हैं जो आज भी हर रक्षाबंधन में याद किए जाते हैं।
आधुनिक भारत में रक्षाबन्धन बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है ।आजकल बाज़ारों में क़िस्म क़िस्म की रखियाँ उपलब्ध हैं। सूत के धागे से लेकर सोने और चाँदी तक की राखियाँ बाज़ारों में आने लगी है ।
आज भी हर बहन उतने ही प्रेम और श्रद्धा से ईश्वर को साक्षी मानकर अपने भाई को राखी का धागा बांधती है, मिठाई खिलाती है और भाई अपनी बहन को उपहार के साथ आजीवन रक्षा करने का वचन देता है।