Connect with us

क्या उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचा पाएंगे 10 हजार वन प्रहरी??

उत्तराखण्ड

क्या उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचा पाएंगे 10 हजार वन प्रहरी??

त्रिलोचन भट्ट

उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने 10 हजार वन प्रहरियों की नियुक्ति की घोषणा की है, लेकिन क्या इस पर अमल हो पाएगा??

उत्तराखंड में इस वर्ष फरवरी का महीना औसत से ज्यादा गर्म रहा और मार्च भी अब तक औसत से 4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म है। वनों में आग लगने के आसार बढ़ गये हैं। पिछले सालों के अनुभव बताते हैं कि आम नागरिकों की सहभागिता के बिना जंगलों को आग से बचाना संभव नहीं है। ऐसे में राज्य सरकार ने 10 हजार वन प्रहरियों की भर्ती करने की घोषणा की है, लेकिन क्या सरकार की यह कवायद सफल होगी, यह एक बड़ा सवाल है।

सामान्य से कम बारिश, सामान्य से ज्यादा अधिकतम तापमान और पश्चिमी विक्षोभों के बार-बार बिना बरसे लौट जाने से ये गर्मियां उत्तराखंड के जंगलों पर भारी पड़ने की आशंका बनी हुई है। इस बार सर्दी के दिनों में भी राज्य में वनों में बार-बार आग लगती रही है। 15 फरवरी को वन विभाग का औपचारिक फायर सीजन शुरू होने से पहले की जंगलों में आग लगने की 600 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी थी।

उत्तराखंड का पिछले वर्षों का अनुभव बताता है कि आम लोगों की भागीदारी के बिना जंगलों को आग से बचाना संभव नहीं है। जंगलों में पहले भी आग लगती रही है। आग लगने पर आसपास के गांवों के लोग भारी संख्या में आग बुझाने पहुंचते थे। वे पेड़ों की हरी टहनियों के झाड़ू बनाकर आग बुझाते थे। यह एक सामाजिक कार्य माना जाता था और हर समर्थ परिवार का इसमें शामिल होना आवश्यक होता था। जंगलों की आग बुझाने के इस सामूहिक प्रयास को ’झापा लगाना’ कहा जाता था।

जब से राज्य के लोगों को जंगलों में हक-हकूकों से वंचित किया गया, जंगलों से सूखी लकड़ी और चारा पत्ती लाने तक की मनाही कर दी गई, तब से लोग जंगलों से दूर हो गये और साल दर साल ज्यादा जंगल आग की भेंट चढ़़ने लगे। राज्य सरकार ने  लोगों को फिर से जंगलों की सुरक्षा से जोड़ने के नये तरह के प्रयास शुरू किये हैं। इस कड़ी में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने राज्य में 10 हजार वन प्रहरी भर्ती करने की घोषणा की है। इनमें 5 हजार महिलाएं होंगी।

राज्य वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ऐसी योजना पिछले कुछ सालों से विभाग के पास है। पिछले मुख्यमंत्री ने भी इसकी घोषणा की थी, लेकिन प्रक्रिया घोषणा से आगे नहीं बढ़ी। अब तक यह भी तय नहीं किया गया है कि ये भर्तियां सीजन के लिए की जाएंगी या हमेशा के लिए। वन प्रहरियों को मासिक वेतन दिया जाएगा या फिर केवल उस दिन की मजदूरी मिलेगी, जिस तक काम करेंगे। वेतन अथवा मजदूरी कितनी मिलेगी, यह भी अब तक तय नहीं है।

रुद्रप्रयाग के वयोवृद्ध पत्रकार रमेश पहाड़ी जंगलों की आग पर नजदीक से नजर रखने वाले लोगों में शामिल हैं। वे कहते हैं कि वन प्रहरियों के भर्ती तो हो जाएगी। लेकिन, लोगों के मन जंगलों की आग बुझाने की हिम्मत और जज्बा पैदा करने के लिए जंगलों के प्रति अपनत्व की भावना होनी जरूरी है। ऐसा तब तक संभव नहीं जब तक कि जंगलों पर आम लोगों के हक-हकूक उन्हें वापस नहीं दिये जाते। वे राज्य में जंगलों के विस्तार और हर साल लगने वाली आग की घटनाओं की तुलना में 10 हजार वन प्रहरियों को बहुत कम मानते हैं।

उत्तराखंड वानिकी और औद्यानिक विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष एसपी सती कहते हैं कि इस बार स्थितियां वनों के आग के लिए बेहद अनुकूल हैं। यदि अत्यधिक सावधानी नहीं बरती गई तो हालात 2016 और 2018 से ज्यादा भयावह हो सकते हैं। 2016 में राज्य के जंगलों में अब तक की सबसे ज्यादा भयावह आग की घटनाएं हुई थी। उस समय 4538.75 हेक्टेयर वन संपदा नष्ट हो गई थी और 7 लोगों की मौत हो गई थी। 2018 में 4480.04 हेक्टेयर वन आग से जल गये थे। पिछले 11 वर्षों के दौरान हर साल औसतन 2200 हेक्टेयर वन आग से नष्ट हुए हैं। इस वर्षों के दौरान 2020 में कोविड-19 लाॅकडाउन के कारण राज्य में आग की सबसे कम 126 घटनाएं हुई, जिनमें 155.89 हेक्टेयर वनों को नुकसान पहुंचा।

Continue Reading
You may also like...

More in उत्तराखण्ड

Trending News

Follow Facebook Page

About Us

उत्तराखण्ड की ताज़ा खबरों से अवगत होने हेतु संवाद सूत्र से जुड़ें तथा अपने काव्य व लेखन आदि हमें भेजने के लिए दिये गए ईमेल पर संपर्क करें!

Email: [email protected]

AUTHOR DETAILS –

Name: Deepshikha Gusain
Address: 4 Canal Road, Kaulagarh, Dehradun, Uttarakhand, India, 248001
Phone: +91 94103 17522
Email: [email protected]