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यन मा कनक्वे रौंण।

कविता

यन मा कनक्वे रौंण।

गढ़वाली कविता

हरदेव नेगी

बिठा पाखा बाटा लग्यां,
ना सुख घौर,‌ ना बौंण
तुमि बथा, हे चुछों
यन मा कनक्वे रौंण,।

दिन खांणि नी,‌रात स्येंणि नी
ये काल सौंण ज्यिंदगी क्वे गांणि नी,
यूं आंसुन, यु मुख़ कति दफे ध्वोंण
तुमि बथा, हे चुछों
यन मा कनक्वे रौंण,,।

अब त गौं क्या, सैर क्या
संगति यनि ढौर-भै चा,
यु दुःख के-के मु सुणोंण
तुमि बथा, हे चुछों
यन मा कनक्वे रौंण,,।

हम त ना यखा रैन, ना तखा रैन
कर्जदार भी ये माटा का बाना व्हेन,
अब यु मुंडो ट्वपलू भि के-के मु फैलोंण
तुमि बथा, हे चुछों
यन मा कनक्वे रौंण।।

गिच्चे पॉलिसी सरकार कनी
बिकास का बाना ये पाड़ की छांसि – नासि कनी,
अब बिरांणा माटा मा कति खांण, कति कमौण
तुमि बथा, हे चुछों
यन मा कनक्वे रौंण।।

हरदेव नेगी गुप्तकाशी(रुद्रप्रयाग)

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