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कहाँ गई हो तुम गौरैया…

कविता

कहाँ गई हो तुम गौरैया…

निशा गुप्ता

कविता

कहाँ गई हो तुम गौरैया
लौट कभी तो आओ जी
मेरा आँगन सुना लगता
थोड़ा तो चहकाओ जी ।

तुमरी मीठी बोली सुनने
कान बड़े अधीर हुए अब
नहीं कहीं कलरव सुनता है
सूना घर उपवन लगता ।

छोटी चिड़िया रही फुदकती
आँगन था गुलजार मेरा
चुनचुन जब तुम दाना खाती
मुन्ना कितना खुश होता ।

नीड़ बनाती तिनके चुनकर
से, अंडों से जीवन निकला
ची ची करते शोर मचाते
घर में था गुँजार भरा ।

ढूँढ ढूँढ थक गई हैं आँखे
नहीं तुम्हारी छवि दिखे
मानव के ही अतिक्रमण से
पंछी विलुप्त कगार खड़े ।

निशा”अतुल्य”

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