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जीरो टौलरैंस दिल – “बातें कम रिचार्ज ज्यादा”

आलेख

जीरो टौलरैंस दिल – “बातें कम रिचार्ज ज्यादा”

“हरदेव नेगी”

जब इंसान 15 पंद्रह या 25 की उमर का होता है तब उसका दिल प्यार में इंटलारैंस होता है, ये वही उम्र होती है जहाँ प्यार को पाने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाता है, क्योंकि ये प्यार उस समय होता है जब पिताजी कॉलेज कि दिनों में जेब खर्चा देते हैं और उसी मे से चंद पैंसे अपनी लबर के साथ बाजार में आइस्क्रीम, पिज्जा, चौऊमीन, मोमो कॉलेज कैंटीन में पार्टी या फिर जन्मदिन पर टैडीबियर देते हैं, अगर बाईक दिला दो फिर कॉलेज लाईफ और भी औसम हो जाती है, क्योंकि निब्बा निब्बि इन दिनों सिर्फ प्यार देखते हैं, फर्क नहीं पड़ता दुनिया क्या कहती है, और वो जाती, धर्म, पैंसा, घरबार, कुछ नहीं देखते हैं देखते हैं भी तो सिर्फ प्यार, और इससे ज्यादा एक लड़का या लड़की अपनी ज़िंदगी में इंटलारैंस (असहिष्णुता) कर ही नहीं सकते समाज में, तब समाज आरोप भी लगा देता है कि ये तो असहिष्णुता हैं, और कईं बार प्यार इंटलारैंस की बलि चड़ जाता है, 100 प्रतिशत प्यार करने वालों में से 2 या 3 % लबर ही इस इंटलारैंस से लड़ते हैं और प्यार में जीत हासिल करते हैं, पर इंसान का दिल जीरो टौलरैंस होता है 25 की उम्र के बाद, जब कॉलेज लाईफ ख़त्म हो जाती है और जिम्मेदारियां शुरू हो जाती है, क्योंकि इसके बाद स्कूल कॉलेज के दिनों को अनुभव दिल को सहिष्णुता में लपेट लेते हैं, अगर किसी को दिल भी दे बैठा तो फिर निब्बि निब्बियों कि तरह पीछे पड़ने वाला सीन नहीं होता, छिछोरापन भी नहीं, क्योंकि जीरो टौलरैंस दिल तब होता है जब इंसान में मैच्युरिटि (वयस्कता) आ जाती है. एैंसी ही जीरो टौलरैंस दिल कहानी है बिरजू की जहाँ बाते कम रिचार्ज ज्यादा वाला सीन है,
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बिरजू गढ़वाल यूनिवर्सिटी से एम बी ए करने के बाद दिल्ली में आई टी कंपनी में नौकरी कर रहा है, कॉलेज के दिनों से उसको एक दगड़या पंसद थी, और वो भी बीएड और यूटैट पास करके गाँव स्कूल में पढ़ा रही थी, दोनों के बीच हफ्ते मे बात कम ही होती थी, मतलब रोज घंटो बात करने वाला सीन नहीं था वो बिचारी गाँव में रहती थी तो अच्छा भी नहीं लगता, लोग क्या कहेंगे बिरजू भी कंडीशन समझता था उसकी, इस लिए जब भी टैम मिलता तो पांच दस मिनट की सेवा सौंळी में ही दोनों एक दूसरे का हाल – चाल जान लेते थे. बिरजू साल भर एक दो बार घर आता तो उस से मिल भी नहीं पाता था, गाँव के बाजार में किसी मिलना बदनामी की डौर होती थी बस बिरजु यही सोचता था कि “जु होलु दिखै जालु” या फिर “जेन सारि तैन कखि नि हारी”… एक बार बिरजू बग्वाळ्यों मि जब बिरजू घर आया तो बिरजू ने मैसेज करके बोल दिया कि बिज्यां टैम हो गया आमणी -सामणी मुलाकात नहीं हुई. कम से कम इस बार तो मिल लेते हैं. फोन का सारा कब तलक दिन काटणं, ये तो एैंसी छ्वीं हो गई कि “मैनो बिटि मिलणूं नि व्हे अब उमाळ काबू मा नि रै, रुणमुण लैगि मुखड़ी कि म्येरि त्वे जरा सी याद भी नि एै.. इस ऐत्वार को जरूर मिलने की कोशिश करना बल, मैं तुमरा गौं का बाजार ओलु, उधर लड़कि साहस नहीं कर पा रही थी कि कैंसे मिले बाजार में मेरे चाचा की दुकान भी है कहीं देख लिया अंजान लड़के के साथ घमूते हुए तो फिर मिन ज्यूंदु भि रौंण” क्या बाना बणौंण ऐत्वार दिन कु.
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ऐत्वार को बिरजु ने सुबह फिर मैसेज किया कि मैं आज आ रहा हूँ, तुम भी जरूर आना समूण लाया हूं बल दिल्ली बटी, फिर अगले हफ्ते वापस जाना है. प्लीज प्लीज। उधर लड़की की ब्वे ने सुबेर होते ही बोला कि आज कोदा लूंण जाना है बांदरों ने सपाचट कर दिया. अब वो छिड़ाछिड़ी में पड़ गई जांदू त कख जांदू मि, उसने बिरजू को मैसेज किया कि “यार ब्याळि हमने क्वोदा झंगोरा का काटा और शाम को उसका न्यार सारा ब्याळि रात से ही मेरे गात पिड़ा” हो रही है मैं बिलकुल भी हिट नहीं पा रही हूँ. सच्चि बोल रही हूँ “भै का सौं”. जैंसे ही बिरजू ने मैसेज पढ़ा उसकी जिकुड़ी झस्स हो गई. ठीक है रिप्लाई करके बिरजू भी अपने गायों के साथ जंगल चला गया. और खुद से बातें करने लगा क्या करना जियो के सिम का भी और इस डाटा पैक का भी जब बात नि हौंण मुलाकात नि हौंण सुद्दि कि खर्चा है, बातें कम रिचार्ज ज्यादा बल. ज्वोग ही ठीक नहीं है. एक हफ्ते बाद दिल्ली वापस औफिस चला गया. मंगसीर में बिरजू के दगड़या का ब्यो था बिरजू एक हफ्ते के लिए घर आया, फिर बिरजू ने मैसेज किया कि इस बार तो मिललो, यार ये कैंसी माया है ना मिलणू ना ढंग पर ब्वलणूं, उसने भी रिप्लाई किया कि मिलण त मैं भि च्हांदु पर मजबूरी तुम भी द्यखदा होला.
फिर बिरजू ने मैसेज किया कि इस शनिवार को कोशिश करना मिलने की.
उसने रिप्लाई किया कि इस शनिवार को मिल ही नहीं सकती, बिरजू बोला क्यूँ?
उसका रिप्लाई आया कि मै एक महीने पहले बौंण गई थी ग्वोरू दगड़ी वहां हल्का छिबणाट हुआ और मैं डर गई, चिल्लाई और मुझ पर बणद्यों लग गये. बार – बार बिमार हो रही हूँ, फिर माँ पर द्यबता ओतरा और उसने ताड़ा भी मारे और कहा कि लड़की पर छौळ लग गया बल, फिर बामण को बुलाया तो इस शनिवार को मुझमे एक रथ भिर्याना है बल. और तीन दिन तक गाँव के गदरों को पार नहीं करना है बल.
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बिरजू ने ये पढ़कर रिप्लाई किया :- बणद्यों तुम पर नहीं मुझ पर लग गया है बिना मतलब के अभी तक तुमरि माया मा छळ्या रखा हूँ.
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उसने भी रिप्लाई किया यार ऐंसा मत बोलो, हम जरूर मिलेंगे एक दिन.
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वहीं ब्यो में एक दगड़या ने बिरजू से पूछ लिया भैजी तम्हे इतने साल हो गये नौकरी करते हुए, और तुमारी तो गरलफिरेंड भी है बल ब्यो क्यूं नहीं कर रहे बल, अब तो उम्र भी हो गई फकाफट पुंणखी खिलाओ.
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बिरजू ने कहा अरे भुला हो गया ब्यो, यहाँ तो वही हाल हो रखे हैं बल गुठ्यार में गाय तो है पर “लैंणा गैबणां के जोग नहीं हैं बल. कुज्याणि क्य चा ब्यो का बाना किस्मत मा लिख्यूं बल.
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अरे दिदा सब्र करा व्हे जालू तुम हमथैं बतावा दिक्कत क्या चा.
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भुला दिक्कत या चि कि म्येरु ज्वोग मा ब्यो कु शनि चा लग्यूं.
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इंतजार बल दिदा इंतजार.
तबै होलि या माया पार
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भुला म्येरि छोड़ बरमाला होने वाली है तेरे लिए एक स्याळि खोजते हैं आज। पर भैजी तुमारे लिए क्यूँ नहीं दूसरी ढूंढे?
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भुला अपना दिल अभी जीरो टौलरैंस है जिस दिन इनटोलारैंस होगा उस दिन ढूंढैंगे।

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लेख :- हरदेव नेगी

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