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सुंदरता तन की नहीं मन की विषय-वस्तु है।

आलेख

सुंदरता तन की नहीं मन की विषय-वस्तु है।

(लेखक: नीरज कृष्ण)

स्वस्थ शरीर, आँखों और बालों में चमक और बेदाग त्वचा ही सौन्दर्य है। स्थान और समयकाल के हिसाब से सौन्दर्य की परिभाषा भिन्न -भिन्न होता है। अलग-अलग देशों और संस्कृतियों में सुंदरता के मापदंड भी अलग है। सुंदरता खुद को स्वीकार करने और सहजता में है। जब आप सहज होते हैं, आप सुन्दर महसूस करते हैं।

ईश्वर से या विरासत में जो भी शारीरिक रूप और आकार हमें मिला है वह विश्व में अकेला है, नायब है, दूसरा ऐसा हो ही नहीं सकता, इसको जब हम समझ लेते हैं तो हम अपने को सुन्दर समझने लगते हैं। इस समझ से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और हम सहज होते है। जैसे ही हम सहज हो जाते हैं; हमारा हीन भावना समाप्त हो जाता है और हम सुन्दर हो जाते हैं। सुन्दर विचार, मधुर व्यव्हार, स्वस्थ शरीर, आत्मविश्वास तथा हीन भावना से मुक्त व्यक्ति सुन्दर दिखता है।

सभ्यता के प्रादुर्भाव से ही मनुष्य स्वभावतः तत्कालीन परिभाषा से अनुभूत हो कर अपने को सुन्दर रखने हेतु प्रयत्नशील रहता है। शारीरिक स्वास्थ्य और सौंदर्य मनुष्य के आतंरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वस्थता पर निर्भर है पर भर भी वाह्य सुंदरता को निखारने हेतु मनुष्य परापूर्व कल से ही सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग करते आ रहे हैं। वैदिक साहित्य, कौटिल्य अर्थशास्त्र, शारंगधर पद्धति, वात्सायन कामसूत्र, ललित विस्तार, भारत नाट्यशास्त्र, अमरकोश सभी में सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोगात्मक एवं रचनात्मक वर्णन उपलब्ध है। गंगाधरकृत गन्धसार नामक ग्रन्थ में सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण के छह प्रकार के विधियों का उल्लेख है।

रघुवंश, ऋतुसंहार, मालतीमाधव, कुमारसंभव, कादंबरी, हर्षचरित और पाली ग्रंथों में भी सौंदर्य प्रसाधन हेतु विविध द्रव्यों के प्रयोग का विवरण पाया जाता है। पूर्व काल में इन सौंदर्य प्रसाधनों का निर्माण प्राकृतिक एवं वानस्पतिक संसाधनों के उपयोग से किया जाता रहा है।

पर आज सौंदर्य प्रसाधन का निर्माण रासायनिक एवं पशु चर्बी के उपयोग से होने लगा है। अन्धाधुन्ध अर्थ लोभ के कारण पाश्चात्य निर्मातक सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में सहज सुलभ रासायनिक वस्तुओं का उपयोग करने लगे और लुभावने विज्ञापनों द्वारा उनके दुष्प्रचार से आकर्षित हो लोग इनका प्रयोग करने लगे हैं।
हर आदमी अपने आपको इसलिए सुंदर दिखाना चाहता है ताकि वह लोगों को अट्रैक्ट कर पाए। अब बात यह आती है कि वह अपने आप को अट्रैक्ट क्यों करना चाहता है? तो जहां तक मैं समझता हूं यह जो अट्रैक्शन है वह सामने वाले व्यक्ति को उसके सुंदरता को कॉपी करने के लिए मजबूर करता है कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे सुंदर होने से अगला आदमी भी सुंदर होने की लालसा अपने अंदर पैदा कर लेता है।और इसी आकर्षण के कारण अगला व्यक्ति उस सुंदर व्यक्ति के बारे में जानने की इच्छा रखने लगता है।

अब कुछ लोग इसलिए सुंदर दिखना चाहते हैं ताकि उनके ढेर सारे मित्र बन सके।वह सुंदर देखेंगे लोग अट्रैक्ट होंगे, उनसे बात करने की कोशिश करेंगे और अंत में मित्र बन जाएंगे। अब कभी-कभी यह भी होता है कि लोग उन्ही व्यक्ति को ज्यादा अहमियत देते हैं जो सुंदर होते हैं। ऐसे बहुत से कारण जिनकी वजह से लोग सुंदर देखना चाहते हैं।

शायद हम सोलांगे मेग्नेनो(Solange Magnano –( Miss Argentina 1994) को भूल चुके हैं जिनकी असमयीक मृत्यु का कारण अपने शरीर को और खूबसूरत बनाने की चाह में अपनी जान गंवा दी। मैग्नेनो अपनी शरीर की खूबसूरती बरकरार रखने के लिए कसरत और खान-पान तक ही नहीं रुकीं और खूबसूरती का यही जनून उनकी मौत का कारण बना। कई बार प्लास्टिक सर्जरी द्वारा अपनी खूबसूरती में इजाफा करने वाली मैग्नैनो को 38 साल की उम्र में यह एहसास होने लगा था कि उनकी सुन्दरता कुछ धूमिल सी पड़ गई है, इसलिए अपने कूल्हे के आकार को ठीक कराने के लिए उन्होंने कॉस्मेटिक सर्जरी कराई लेकिन बदकिस्मती से कुछ यूं हुआ कि इस सर्जरी ने उनकी जान ले ली।

हिंदी फिल्म जगत की बेहतरीन अदाकारा श्रीदेवी की असामयिक मृत्यु (2018) के बाद यह कयास लगातार लगाये जा रहे थे कि श्रीदेवी की मृत्यु या तो अल्कोल के नशे में बाथटब में गिरकर दम घुट जाने से हुई है या उनके बार-बार अपने होठों को आकर्षक बनाये रखने के लिए कराये गए कोस्मेटिक सर्जरी (29 बार) के कारण हुई है।

भारत में भी खूबसूरती की ये चाहत दिनों-दिन बढ़ रही है, चाहे बात छोटे-बड़े पर्दे की हो या हमारे घर-परिवार की। पर्दे पर दिखने वाली अभिनेत्रियों की छवियां आम युवतियों के हृदय में सपने पैदा करती हैं। सूचना एवं तकनीक के इस दौर में महिलाएं इस बात से भली-भांति वाकिफ हैं कि रुपहले सुनहरी पर्दे की नायिकाओं की खूबसूरती दैविक नहीं बल्कि कृत्रिम तरीके से हासिल किया गया है मगर फिर भी आधुनिक समाज में महिलाएं सुंदरता के लिए कुछ भी कर गुजरने से गुरेज नहीं करती। सुन्दरता के सपने बेचने वाले उद्योगों और कम्पनियों ने महंगे कॉस्मेटिक्स प्लास्टिक सर्जरी और ब्यूटी पार्लर के जरिए महानगरीय एवं उप-महानगरीय महिलाओ में खूबसूरत बनने की होड़ मचा रखी है।

काले को गोरा और बूढ़े को जवान बनाने का दावा करने वाली तमाम क्रीम बाजार में उपलब्ध है। दुनिया भर में सौन्दर्य प्रसाधनों का बाजार लगभग 25 से 30 अरब डालर से ज्यादा का है। ‘विको टर्मरिक क्रीम 15 दिन में गोरा न बनाये तो पैसे वापस’!( बचपन से बुढ़ापे की तरफ बढ़ चला हूँ पर आज तक गोरा न कर सका यह क्रीम मुझे) जाहिर है, दावे बहुत ऊंचे हैं इसीलिए मीडिया के जरिए सुन्दरता के ऐसे मानक तैयार किए जाते हैं जो आम महिलाओं के लिए शायद सम्भव न हों। बावजूद इसके भारतीय महिलाएं भी सौन्दर्य की मृगतृष्णा के पीछे निरन्तर भागती चली जा रही हैं।

एक शोध के अनुसार हर चार में से तीन महिलाएं स्वयं की खूबसूरती को लेकर चिंतित रहती हैं एवं अपनी तुलना फिल्मी हीरोइनों से करती हैं और उनके बनिस्बत खुद को कम खूबसूरत मानती हैं, यही कारण है कि वे सौन्दर्य उद्योगों का सहारा लेने के लिए विवश हो जाती हैं। महिलाओं की चिंता का विषय उनका बढ़ता वजन भी है वे छरहरी काया के पीछे पूरी शिद्दत से हर सम्भव कोशिश करती हैं। महिलाओं के इसी असुरक्षा के भाव के चलते सौन्दर्य उद्योगों अपनी साख बनाए रखने में कामयाब है। भारत के ग्रामीण इलाकों तक यह उद्योग पूरी तरह अपना पांव पसार चुका है।

चलते-चलते


सोच का सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे पर पड़ता है। चिंता और थकान से चेहरे की रौनक गायब हो जाती है। शरीर में साइकोसोमैटिक प्रभाव के कारण स्वास्थ्य बनता है और बिगड़ता है। देखा जाये तो इंसान की सबसे मूल्यवान अनुभूति सोच ही है। संसार का प्रथम सुख निरोगी काया को माना गया है परन्तु जब पूर्णतया निरोगी काया मिलना दुर्लभ है तो संसार में सुखी कौन हो सकता है। किसी को शारीरिक तो किसी को मानसिक और किसी को दोनों कम या अधिक रोग किसी न किसी रूप में अपना शिकार बनाए हुए हैं। हममें से अधिकांश लोगों का जीवन दवाओं पर ही आधारित है, कुछ रोगों का कारण आनुवांशिक या कोई शारारिक समस्या हो सकता है परन्तु अधिकांश रोग हमारे अपने ही पाले हुए हैं। अपने पाले होने से अभिप्राय है जिस शत्रु से है वह है हमारी ‘नकारात्मक सोच’।

सुंदरता मनुष्य के मस्तिष्क में है। सुन्दर विचार, निश्छलता, ईर्ष्या और अहंकार रहित, पांच विकारों से दूर परोपकार की प्रवृति वाले मानव तो सदा से दिव्य होते हैं। उन्हें सौंदर्य प्रसाधन की आवश्यकता नहीं होती है। सुंदरता मानव के मन मंदिर में है, न कि बाजार में बिकने वाले सौंदर्य प्रसाधन में। सौंदर्य में निखार श्रृंगार से नहीं सदाचार से आते हैं। हालांकि सुंदरता को अगर काबिलियत के साथ जोड़ दिया जाए तो सोने पर सुहागा होने का काम होता है। क्योंकि ऐसे में सबसे जल्दी कोई भी किसी के प्रति अट्रैक्ट हो जाते हैं।

लेखक परिचय:” नीरज कृष्ण”
(एडवोकेट पटना हाई कोर्ट। आरा(पटना)
बिहार

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