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समीक्षा: “हर दरख़्त में स्पंदन”।

आलेख

समीक्षा: “हर दरख़्त में स्पंदन”।

【सुनीता भट्ट पैन्यूली

बहुत सुखद है नीलम जी के वैचारिक मंथन द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड की यात्रा अपने भीतर ही कर लेना।
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हर मन की अपनी अवधारणा होती है और हर दृष्टि की अपनी मिल्कियत किंतु कुछ इस संसार को मात्र देखते नहीं हैं इस पर प्रयोग भी करते हैं।यह भी सत्य है कि हम सभी अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार अपनी ज़िंदगी और आस- पास के परिदृश्यों का आंकलन करते हैं।नीलम जी के काव्य संकलन “हर दरख़्त में स्पंदन” पढ़कर मुझे यह अनुभूति हुई कि ध्यान देने वाली आंखों के लिए प्रत्येक क्षण का रसास्वादन करना है। एक ही क्षण की वह ध्यान मग्न आंखें विभाजित तस्वीर देखती हैं।यद्यपि जीवन का संपूर्ण वितान सौंदर्यजनक नहीं होता है इसमें कुछ हाशिए पर पड़े हुए बदरंग भी हैं जो उन्हीं के लिए ध्यातव्य है जिनके भीतर संवेदनाओं और रचनात्मकता के सुदृढ़ अंश जन्म से ही पैठ बनाकर बैठे हुए हों। “हर दरख़्त में स्पंदन” काव्य संकलन यही कहता है कि कविताएं जगत और अनंत में विद्यमान दृश्यों द्वारा चैतन्य होने की वह पराकाष्ठा है जब स्वयं जगत और ब्रह्मांड चलकर कवि या कवयित्री के भाव रुप-विधान धारण कर लेते हैं।
कवियत्री नीलम का “काव्य संग्रह”हर दरख़्त में स्पंदन” संभवत: यह भी आभास कराता है कि हर किसी के लिए आसमान का रंग मात्र नीला नहीं होता है जीवन के इस छोर से उस छोर प्रच्छन्न सौंदर्य है। यह उस मन के लिए है जिसने स्थापित एवं जमे हुए से इतर गतिहीन,निश्चेत, अपारंपरिक, आच्छादित वस्तुओं में कंपन महसूस किया है। नीलम जी की कविताएं इस अवधारणा की उत्कृष्ट बानगी हैं।”बुदबुदाती कहानी” में कवयित्री द्वारा पलायन का दर्द जर-जर हो आये घरों में भविष्य की चिंता,टूटे हुए स्वप्नों का मंथन है‌।नदी, पहाड़,औरत कविता” में स्त्री का नदी और पहाड़ होना पहाड़ में दो प्रकार की स्त्रियों के होने एक अनूठा तुलनात्मक विश्लेषण है जहां नदी की मानिंद स्त्री सहृदया, सहमना सलिला अपने परिवार एवं गांव को समृद्धता प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर पहाड़ सी ही कठोर स्त्री के कुमर(कांटे) चुभने जैसी ग्रामीण स्त्रियों की रोज़मर्रा की वेदना और पहाड़ में जीवन-यापन में आड़े आये अनेक संकटों को अपनी अंगड़ी में लेकर चलने और असहनीय कष्ट सहने पर विनाशकारी बन जाने, कष्टप्रद जीवन में ही जीवन का संगीत और उससे जूझने की पहाड़ के जीवन की व्याख्या है।

कविताओं में भावों की प्रचुरता के साथ शब्द और वाक्यांश भी आकृष्ट करते हैं।कविताओं का मापदंड यही है कि सूक्ष्म में वृहद का परिभ्रमण हो,नीलम जी की कविताएं इस परिप्रेक्ष्य में पन्ने-दर-पन्ने कविताएं रसानुभूति कराती हैं।
शब्द और वाक्यांश का यही भावपूर्ण संयोजन नीलम जी की कविताओं में दृष्टिगोचर है बानगी देखिये,
बहुत सुंदर लिखा है कवयित्री ने
मन की मंद-मंद बयारों में
किसे खबर होगी कि कब हिमालय
की ऊंचाई में कहीं जीवन सदृश
ब्रहम कमल गुपचुप खिल रहे हैं

अधिकांश कविताएं संबोधनात्मक हैं या आत्मसंवाद करती हुई परिलक्षित हैं। कभी कवयित्री धरती, आकाश, पेड़,आदमी,स्त्री,कभी लड़की और कभी स्वयं से संवाद करती हुई महसूस की जा सकती है।
प्यास महज़ जल पिपासा नहीं,
“अंतिम प्यास” कविता में इंसान द्वारा इंसानियत बनाये रखने के उपक्रम में प्रत्येक में नम पिपासा की आकांक्षा निम्न पंक्तियों में न्योचित प्रतीत होती हैं।
पीड़ा देने वाले लोग
नहीं जानते हैं कि
आदमी की अंतिम प्यास
लोटे भर जल की नहीं बल्कि
बूंद भर नमी की
मोहताज ‌होती है बस
नीलम जी की कविताओं का धरातल बहुत गहन व विस्तृत है कहीं वह परिवर्तन का आह्वान करती हैं तो कहीं स्त्री की आजादी को उसके मातृत्व व कर्तव्य परायण से जोड़कर,स्त्रीयों के लिए आजादी का बिगुल फूंकना उन्हें उन के स्त्रैण से ही मुक्त कर देने की उद्घोषणा हैं। कविता संदेशप्रद है। यह वैशिष्ट्य है कविता का,जहां कवयित्री आजादी पर परोक्ष प्रहार करके मन के कमरे में कैद स्त्रियों की पनपती स्वच्छंद रचनात्मकता को आजादी का पर्याय मानती हैं।

हर बार दूब सी सूख कर
फिर हरी होती है जिंदगी

हरी दूब की जीवन प्रवृत्ति मानव जीवन के समस्त नैराश्य के अपकर्ष को आशा के उत्कर्ष की ओर ले जाने का मुलायम किंतु तार्किक मंतव्य है। बहुत सुखद है नीलम जी के वैचारिक मंथन द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड की यात्रा अपने भीतर ही कर लेना।
“जीभ के छाले “ कविता में एक अदृश्य वेदना का स्वर संभवतः अपनी कविता के माध्यम से किसी छूटे हुए अपने की स्मृतियों पर संवेदनाओं का मलहम लगाने का मार्मिक प्रयास है। नीलम की कविताएं उनके सांस्कृतिक परिवेश और पहाड़ के प्रति अतिशय प्रेम को भी दर्शाती हैं जहां उनकी सशक्त कल्पनाशीलता उनकी संस्कृति से रल-मिलकर कविताओं का एक अद्भुत रचनात्मक संसार गढ़ती हैं। उत्तराखंड का लोक-पर्व फूल देयी पर नीलम जी द्वारा लिखी गयी कविता तो यही अभास कराती है।
ब्रह्मा ने पृथ्वी के कान में
एक बीज मंत्र दे दिया है
आज भी बादलों के गरजने और
धरती पर फ्यूंली के फूलने से
यूं लग रहा है
कि पृथ्वी बुदबुदा रही है
कविताओं का प्रवाह प्रांजल एवं सारगर्भित है जैसे कि निम्न पंक्तियां पढ़ी जा सकती हैं।
सच्चे संगी साथी समय के बंद द्वार हैं
खटखटाओगे तो खुल जायेंगे
“सुमन” कविता प्रेम ,परिकल्पना,आक्रोश और उलाहना की मिली-जुली प्रतिक्रिया का उत्पादन हैं। जहां किसी स्त्री को चट्टान कहे जाने की गहरी वेदना और पुष्प के चट्टान पर ही पुष्पित, पल्लवित होने के उपालंभ की सशक्त अभिव्यक्ति है। यद्यपि “अन्तिम हस्ताक्षर” कविता आत्मबोध से मुक्तिबोध तक जीवन के सत्य का सार समझा रही हैं
यह नीलम जी की कविताओं की अपनी बुनावट है कि यहां ना जटिल शब्दों का जुटान है न ही वैश्विक सरोकारों का संगठन। नीलम जी का आसन्न परिवेश ही उनकी अधिकांश कविताओं का उद्गम हैं। किंतु यह भी गौरतलब है कि मानवीय मूल संवेदनाओं का सशक्त आह्वान हैं नीलम जी की कविताएं। पहाड़ के बड़े-बड़े प्रभावी शब्द और मैदान की मिश्रित भाषा का कहीं पर सुरीला और कहीं पर तंज भरा हुआ गीत भी हैं “हर दरख़्त में स्पंदन “
“पहली भिटोली” कविता में पहाड़ के समस्त संस्कार,थान,देवी,-देवता,वन,खेत, खलिहान,अपनी मिट्टी, अपनी वैखरी, बाखली,परिवेश,मान्यता मां की पुरानी धोती के टुकड़े में बंधकर नीलम जी की कविता में उतर आये हैं।
हम सभी कुछ रूपकों को लिये हुए जन्म लेते हैं।
नीलम जी का काव्य संकलन “हर दरख़्त में स्पंदन” में आत्मसंवाद करती हुई कविताएं किताब का आकर्षक बिंदु हैं।कभी वह आडंबरों पर कटाक्ष करती हैं कभी सामाजिक व्यवस्था पर तीखा प्रहार।
जीवन,बचपन, प्रकृति और स्मृतियों की काव्यात्मक लय हैं नीलम की कविताएं या यूं कह सकते हैं कि जीवन के विभिन्न संदर्भों से उत्पन्न मन की भट्टी में विदग्ध
कविताएं हैं “हर दरख़्त में स्पंदन”

अतीत की पड़ताल जब हम एकांत में बैठकर करते हैं तो बचपन की स्मृतियां उसमें सबसे परिष्कृत स्वरूप में होती हैं यह वैचारिक उन्माद ”तुम्हारी स्मृतियां” जहां पहाड़ की चिर-परिचित शब्दावली और कवयित्री की गंभीर अवलोकन क्षमता, प्राकृतिक परिदृश्यों के आसपास का संपूर्ण वातावरण स्मृतियों की मंजूषा से गिरी हुई एक आत्मीय अनूभूति की कविता है।
कुछ कविताएं अदम्य साहस और चुनौतियों से भरी हुई होती हैं जो न केवल बनी बनाई एतिहासिक और पारंपरिक पृष्ठभूमि को चुनौती देने का माद्दा रखती हैं अपितु मिथक तोड़ने और समाज में बदलाव का आह्वान भी करती हैं।
“लक्ष्मण रेखा” बनी बनाई सांस्कृतिक और पारंपरिक पृष्ठभूमि में प्रचलित मान्यताओं पर प्रश्नचिन्ह लगाती हुई,स्त्रियों के लिए सदियों से चली आ रही ईश्वर, पुरुष और समय की निरंकुश सत्ता पर कठोर प्रतिक्रिया और स्त्रियों के आत्मजनित गुणों को उजागर करती हुई कवयित्री का बेबाक कथन है।
जीवन का सार सृष्टि ,जीवन अनंत, ब्रह्मांड को समझना है।इसी उपक्रम में कभी हम अतीत के गह्वर और कभी वर्तमान के समतल में बैठ जाते हैं हमारे लिए यह चुनौती हमेशा बनी रहनी चाहिए कि हम अपने चारों ओर, बाहर-भीतर जो भी है जीवन के रहस्यों को सहजता पूर्वक ढूंढें।
अंत में
कविताएं नैतिक, समावेशी,निर्मल संकीर्णता से परे,ज़िंदगी के रहस्यों को ढूंढती,शाब्दिक संसार में स्वच्छंद विचरती,जीवन की गहराई में डूबती हुई, सामाजिक ताने-बाने को उलटती-पलटती हुई ,दैनिक विषयों के चिंतन का सुंदर दस्तावेज हैं “हर दरख़्त में स्पंदन”
जब तक तुम्हारा वजूद है यूं ही अपनी रचनात्मकता से ऊर्जस्वित रहो।
अनंत शुभकामनाएं।।


(सुनीता भट्ट पैन्यूली)

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